मंच पर संस्कृति मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव सुश्री अमिता प्रसाद साराभाई, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव डॉ.नि ला सच्चिदानंद जोशी, कला निधि विभाग के अध्यक्ष एवं डीन प्रशासन प्रो. रमेश चंद्र गौड़, नेशनल मैन्यूस्क्रिप्ट मिशन के निदेशक डॉ. अनिर्बाण दास, संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव समर नंदा, निदशक इंद्रजीत सिंह भी उपस्थित थे।
गौरतलब है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ‘ज्ञान भारतम्’ सम्मेलन के दूसरे दिन प्रतिष्ठित सभा को संबोधित करेंगे। इस सम्मेलन में 1,400 युवा विद्वानों, शोधकर्ताओं और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं सहित 1,100 से अधिक प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। दूसरे दिन, माननीय प्रधानमंत्री का संबोधन विचार-विमर्श का केंद्रबिंदु होगा। उनकी भागीदारी इस पहल के राष्ट्रीय महत्व की पुष्टि करती है और भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रति सरकार की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में सम्मेलन के प्रतिनिधियों और अतिथियों को सम्बोधित करते हुए केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा, “आप सबकी ऊर्जा, आप सबके पुरुषार्थ, आप सबके महत्त्वपूर्ण योगदान, आप सबकी सक्रिय सहभागिता के चलते जो विचार मंथन होगा, और इस मंथन के बाद जो अमृत निकलेगा, नवनीत निकलेगा, वह निश्चित रूप से इस मिशन को उत्कर्ष तक पहुंचाने और सफल बनाने का माध्यम बनेगा।”
उन्होंने कहा कि सबका विज्ञान भवन में एक साथ एकत्रित होना, इस बात का परिचायक है कि हम सब भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा को एक फिर विश्व पटल पर लाने के लिए एकत्रित हुए हैं और एक ऐसे महत्त्वपूर्ण दिन पर एकत्रित हुए हैं, जो दिन भारत के दर्शन और भारत की सनातन संस्कृति को आधुनिक विश्व के साथ परिचित कराने वाला दिन हैं।
उन्होंने कहा, इस मेन्यूस्क्रिप्ट मिशन की सफलता के लिए, इसे आगे बढ़ाने के लिए, इस विचार मंधन के यज्ञ को प्रारम्भ करने के लिए इससे बेहतर दिन नहीं हो सकता। हम सब जिस मिशन के साथ आज जुड़ने के लिए एकत्रित हुए हैं, वो मिशन आने वाले समय में भारत की नई पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों को भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा परिचित कराएगा। उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों में जो ज्ञान संरक्षित है, उस ज्ञान की समृद्धि को जब देश की आने वाली पीढ़ियां और वर्तमान पीढ़ी के लोग जानेंगे, तभी उस पर गर्व कर सकते हैं।
हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषियों मनीषियों ने उन सब विषयों पर चर्चा करके, अपने अपने अनुभव से, अपनी अनुभूति से ऐसे ग्रंथों का सृजन किया, जो आज भी विश्व के लिए उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने तब थे, जब उनकी रचना की गई थी। जीवन से जुड़े ऐसे कोर सब्जेक्ट्स, जिनके ऊपर गहन अध्ययन करके उन ग्रंथों की रचना की गई, जो हजारों हजार साल बीत जाने के बाद भी आज भी मनुष्य जीवन के लिए और मनुष्य जाति के लिए, विश्व के पर्यावरण के लिए और कंप्लीट इकोसिस्टम के लिए आज भी उनकी महत्ता एक अंश भी कम हुए बिना सजीव रूप से विद्यमान हैं।
भारत की सुदीर्घ ज्ञान परम्परा जो हज़ारों वर्षों से चली आ रही है, उसे भारत के ऋषियों-मनीषियों ने, अपनी अनुभूति से, अपनी साधना से अर्जित किया था। दुर्भाग्य से भारत पर आक्रांताओं ने हमले किये और हमारे ग्रंथालयों को जला दिया। उस ज्ञान परम्परा को सहेजने के लिए भारत में श्रुति-स्मृति परम्परा को अंगीकृत किया गया और और कालांतर में फिर उन्हें अलग-अलग माध्यम से, अलग-अलग तरीकों से उन्हें संजोया गया। कहीं वृक्ष की छाल पर संजोया गया, कहीं ताड़पत्र पर, कहीं भोजपत्र पर, कहीं रेशम के कपड़े पर लिखा गया, कहीं हस्तलिखित कागजों पर उन्हें संजोया गया। लेकिन दुर्भाग्य से, बीच के गुलामी के कालखंड में, जब हमें अपनी जड़ों, जिनके साथ जुड़ करके हम गर्व करते थे, सजीव रहते थे, उनसे विच्छेदित कर दिया गया, उनसे दूर कर दिया। अपनी जड़ों को न जानने के कारण हमने उस पर अभिमान करना समाप्त कर दिया। लेकिन माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश आज सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर से गुज़र रहा है।
अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय में नेशनल मैन्यूस्क्रिप्ट मिशन प्रारंभ हुआ था। उसमें कुछ कैटेलॉगिंग भी हुआ, कुछ काम भी हुआ, कुछ आइडेंटिफिकेशन के लिए भी हमने काम किया। लेकिन कालांतर में देश में जो व्यवस्थाएं आईं, उसमें ये काम पूरी तरह रुक गया। लेकिन मैं मानता हूं कि आज से जो ये यज्ञ प्रारम्भ हुआ है, वो निश्चित रूप से सफल होगा। माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में हमने मैन्यूस्क्रिप्ट की एक नेशनल रिपॉजिटरी बनाने की संकल्पना की है।
संस्कृति मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल ने सम्मेलन की प्रस्तावना पेश करते हुए कहा कि यह संस्कृति मंत्रालय की महती ज़िम्मेदारी है, महती दायित्व है कि जो भारत की परम्परा है, भारत की प्राचीन संस्कृति है, भारत में जो मूर्त और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है, उसको संरक्षित करें, उसका रखरखाव करें, जो आने वाली पीढ़ियां हैं हम उनके सामने प्रस्तुत करें। इस विरासत से हमें जो सीख मिली है, उसको नई पीढ़ी के सामने ले आएं। उन्होंने कहा कि विश्व धर्म सम्मेलन में किसी ने पूछा “यू वर्शिप आइडल” (आप लोग मूर्ति पूजा करते हैं), तो स्वामी विवेकानंद ने कहा “वी डोंट वर्शिप आइडल, वी वर्शिप आइडियल बिहाइंड द आइडल” (हम मूर्ति पूजा नहीं करते, बल्कि मूर्ति में निहित आदर्श की पूजा करते हैं), इस कथन का संदर्भ देते हुए श्री विवेक अग्रवाल ने कहा कि ठीक इसी तरह हम पांडुलिपि को वस्तु की तरह नहीं देखते, बल्कि उसे ज्ञान के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में होने वाले विचार-विमर्श के आधार पर ‘ज्ञान भारतम्’ की आगे की कार्ययोजना बनेगी।
प्रो. मंजुल भार्गव ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि भारत, एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों के साथ, संभवतः शास्त्रीय और स्थानीय परंपराओं का सबसे समृद्ध भंडार रखता है। ये ग्रंथ साहित्य, विज्ञान, गणित, दर्शन और कला को गहनता से समाहित करते हैं।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने ‘रीपैट्रिएशन ऑफ इंडियन मैन्यूस्क्रिप्ट्स – प्रिजर्विंग हेरिटेज, रिस्टोरिंग आइडेंटिटि’ (भारतीय पांडुलिपियों का प्रत्यावर्तन – विरासत का संरक्षण, पहचान की पुनर्स्थापना) विषय पर आयोजित सत्र की सह-अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रत्यावर्तन महत्वपूर्ण है, लेकिन पहला काम यह पता लगाना है कि ये पांडुलिपियाँ वास्तव में कहां हैं। आज भी, हमारे पास भारत में मौजूद कथित एक करोड़ पांडुलिपियों का सटीक रिकॉर्ड नहीं है, न ही उन लगभग दस लाख पांडुलिपियों का, जो फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, डेनमार्क, स्वीडन, नीदरलैंड जैसे देशों और यहां तक कि हर्मिटेज संग्रहालय में भी मौजूद हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि तत्काल कदम डिजिटल प्रतियों की पहचान, सूचीकरण और सुरक्षा सुनिश्चित करना होना चाहिए, ताकि उनमें निहित ज्ञान के विशाल भंडार का अध्ययन, संरक्षण हो सके और अंततः भारत वापस लाया जा सके। उद्घाटन सत्र के अंत में, समर नंदा ने अतिथियों और आगंतुकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
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