कोर्ट में दायर याचिका में राबड़ी देवी की ओर से यह आरोप लगाया गया था कि मौजूदा न्यायाधीश के कुछ आदेशों और टिप्पणियों से पक्षपात का आभास होता है, जिससे निष्पक्ष सुनवाई पर सवाल खड़े होते हैं। इसी आधार पर उन्होंने अपने और अपने परिवार के खिलाफ चल रहे चार मामलों को किसी अन्य जज की अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की थी।
इस पर सीबीआई ने कड़ा विरोध दर्ज कराया। एजेंसी ने अदालत से कहा कि यह याचिका ‘फोरम शॉपिंग’ का प्रयास है और इसका मकसद न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करना है। सीबीआई ने यह भी दलील दी कि विशेष जज ने अब तक सभी पक्षों को समान अवसर दिया है और किसी तरह के पक्षपात का आरोप निराधार है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि केवल आशंका या असहमति के आधार पर जज बदलने का कोई ठोस आधार नहीं बनता। अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया को यूं ही बाधित नहीं किया जा सकता और मामले नियत अदालत में ही चलेंगे।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राबड़ी देवी की यह याचिका IRCTC होटल टेंडर घोटाले, लैंड-फॉर-जॉब मामले और उनसे जुड़े सीबीआई व ईडी के मनी लॉन्ड्रिंग मामलों से संबंधित थी। इन मामलों में लालू प्रसाद यादव परिवार के अन्य सदस्य भी आरोपी हैं।
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब इन मामलों में आगे की सुनवाई तय कार्यक्रम के अनुसार होगी। लैंड-फॉर-जॉब मामले में आरोप तय करने की प्रक्रिया भी अगले चरण में प्रवेश कर चुकी है।
इस आदेश को लालू-राबड़ी परिवार के लिए बड़ा कानूनी झटका बताया है। अधिकांश रिपोर्टों में इसे न्यायिक प्रक्रिया की मजबूती और एजेंसियों की दलीलों की स्वीकार्यता के तौर पर देखा गया है। अदालत के फैसले से यह संदेश भी गया है कि केवल आरोप या असंतोष के आधार पर जज बदलने की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
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