एक बालक की भक्ति का अमर उदाहरण है ध्रुव का चरित्र

बालक ध्रुव का चरित्र न सिर्फ बच्चों के लिए बल्कि उनके माता-पिता और शिक्षकों के लिए भी अनुकरणीय है। ध्रुव चरित्र केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक दिशा है। यह हमें सिखाता है कि जब संसार हमें ठुकरा दे, तब भी भगवान हमारी पुकार अवश्य सुनते हैं।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: August 19, 2025 9:09 pm

प्राचीन काल में स्वायंभुव मनु के पुत्र राजा उत्तानपाद थे। उनकी दो रानियाँ थीं। सुनीति जो धर्मपरायण, लेकिन उपेक्षित थी और सुरूचि  रूपवती, घमंडी और राजा की प्रिय रानी थी। सुनीति का पुत्र था ध्रुव, और सुरूचि का पुत्र था उत्तम। राजा उत्तानपाद सुरूचि के प्रेम में इतना डूबा था कि वह सुनीति और उसके पुत्र ध्रुव की उपेक्षा करता था। एक दिन ध्रुव ने देखा कि उसका सौतेला भाई उत्तम राजा की गोद में बैठा है। वह भी प्रेमपूर्वक पिता की गोद में जाना चाहता था, लेकिन रानी सुरूचि ने उसे कठोर शब्दों में अपमानित करते हुए कहा:

तू मेरी कोख से नहीं जन्मा है, इसलिए तू राजा की गोद में बैठने योग्य नहीं। यदि यह स्थान चाहिए, तो भगवान से वर प्राप्त कर।”

मासूम ध्रुव का मन आहत हुआ। वह रोता हुआ माँ सुनीति के पास गया। माँ ने समझाया बेटा, जब संसार में कोई साथ न दे, तब ईश्वर ही हमारा सच्चा सहारा होते हैं। तू भगवान नारायण की शरण में जा।”

पाँच वर्ष का वह नन्हा बालक एक महान उद्देश्य के साथ घर छोड़ कर वन की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसकी भेंट देवर्षि नारद से हुई। पहले तो नारद जी ने उसे रोकने का प्रयास किया, परंतु जब उन्होंने ध्रुव की अडिग निष्ठा देखी, तो उसे एक दिव्य मंत्र दिया।

“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
(अर्थ: मैं भगवान वासुदेव को नमन करता हूँ)

नारद जी ने उसे ध्यान और तपस्या की विधि भी सिखाई।

ध्रुव ने मधुबन (वृंदावन) में जाकर कठोर तपस्या शुरू की। धीरे-धीरे वह केवल फल खाता रहा। फिर सूखे पत्तों पर रहा। उसके बाद केवल जल पिया। अंततः केवल प्राणवायु पर जीवन बिताने लगा। उसकी तपस्या से समस्त लोकों में हलचल मच गई। तब भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुए और बोले-
“वत्स! मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूँ। जो चाहे वर माँग लो।”

ध्रुव ने सिर झुकाकर कहा: “प्रभु! मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस आपके चरणों की भक्ति चाहिए।”

भगवान विष्णु मुस्कराए और वरदान दिया – तुम्हें अमर लोक — ध्रुव लोक — प्राप्त होगा। यह स्थान ब्रह्मा लोक से भी ऊँचा होगा। सब ग्रह और नक्षत्र उसकी परिक्रमा करेंगे।” ध्रुव को अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ और वह ध्रुव तारा (Polaris Star) के रूप में आकाश में प्रतिष्ठित हो गया। यह तारा आज भी उत्तर दिशा में स्थिर है और सभी तारे इसकी परिक्रमा करते हैं।

भक्ति की कोई उम्र नहीं होती एक पाँच वर्षीय बालक भी ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। अपमान से जन्मता है, संकल्प। रानी सुरूचि के अपमान ने ध्रुव को महान बना दिया। मंत्र जाप की शक्ति असीम है “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र ने ध्रुव को दिव्य बना दिया। सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती । भगवान स्वयं ध्रुव के सामने प्रकट हुए। धैर्य और संकल्प से कुछ भी संभव है। कठिन तपस्या से ध्रुव ने परम पद प्राप्त किया। यदि हम भी ध्रुव की तरह भक्ति, निष्ठा और धैर्य रखते हैं, तो भगवान हमारे जीवन में भी अवश्य प्रकट हो सकते हैं। इसके लिए जरूरी है:

 “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप 108 बार प्रतिदिन करें।

मन को एकाग्र कर ईश्वर में ध्यान लगाएं।

जीवन में संयम, सत्य और सेवा का पालन करें।

(मृदुला दूबे योग शिक्षक और ध्यात्म की जानकार हैं ।)

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