2019 में हरियाणा विधानसभा चुनावों में 10 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली जननायक जनता पार्टी (JJP) को 2024 के चुनावों में तगड़ा झटका लगा। इस बार JJP एक भी सीट जीतने में नाकाम रही, जबकि प्रमुख नेता दुष्यंत चौटाला समेत अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
उचाना कलां में शर्मनाक हार
2019 के चुनावों में उचाना कलां सीट से 92,504 वोट हासिल कर बड़े अंतर से जीतने वाले दुष्यंत चौटाला, इस बार सिर्फ 7,950 वोट प्राप्त कर पांचवें स्थान पर रहे। भाजपा के देवेंद्र चतर भुज अत्री ने 48,968 वोटों के साथ इस सीट पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह 32 वोटों से पीछे रहकर दूसरे स्थान पर रहे। स्वतंत्र उम्मीदवारों, जैसे वीरेंद्र घोगरियान और विकास, ने भी दुष्यंत से अधिक वोट प्राप्त किए, जो JJP के पतन का स्पष्ट संकेत है।
गठबंधन और जमानत जब्ती
JJP ने चुनाव से पहले चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (ASP) के साथ गठबंधन किया था और हरियाणा की 90 में से 66 सीटों पर JJP चुनाव लड़ी। ASP ने 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। लेकिन नतीजे बेहद निराशाजनक रहे। दुष्यंत के भाई दिग्विजय चौटाला को छोड़कर JJP के सभी उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। दिग्विजय चौटाला डबवाली सीट से चुनाव लड़ रहे थे, जहाँ वे तीसरे स्थान पर रहे। इस सीट पर INLD के आदित्य देवीलाल ने 56,074 वोटों के साथ जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस के अमित सिहाग मात्र 610 वोटों से पीछे रहे।
JJP के प्रमुख नेता और दुष्यंत के करीबी अमरजीत धांडा, जो 2019 में जुलाना सीट से विधायक चुने गए थे, इस बार मात्र 2,477 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे। इस सीट पर कांग्रेस की विनेश फोगाट ने 65,080 वोटों से जीत हासिल की, जबकि भाजपा के योगेश कुमार दूसरे स्थान पर रहे।
किसान आंदोलन के बाद से गिरावट
JJP की गिरावट का सफर 2019 के चुनावों के बाद ही शुरू हो गया था, जब दुष्यंत चौटाला ने चुनावी वादों के विपरीत भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई। इस फैसले ने उनके समर्थकों और खासकर किसानों के बीच नाराजगी पैदा की। हालात तब और बिगड़ गए जब दुष्यंत ने किसान आंदोलन के दौरान उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया और भाजपा की सरकार में बने रहे।
चुनाव प्रचार के दौरान दुष्यंत और उनके पिता अजय चौटाला को कई गांवों में किसानों का विरोध झेलना पड़ा। कई जगहों पर उन्हें गांव में घुसने तक नहीं दिया गया। दुष्यंत और अजय चौटाला ने बाद में कहा कि 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन करना एक “गलती” थी। इस वजह से उनकी दोनों तरफ से किरकिरी हो गई।
विधायकों का पलायन और पार्टी का विघटन
JJP के पतन की एक और वजह पार्टी के विधायकों का पलायन है। 2019 में 10 विधायकों के साथ शुरू हुई पार्टी में से 7 विधायकों ने दुष्यंत का साथ छोड़ दिया। इनमें से चार विधायक कांग्रेस में और तीन भाजपा में शामिल हो गए। दुष्यंत चौटाला, उनकी माँ नैना चौटाला और अमरजीत धांडा ही पार्टी में बचे रह गए।
JJP के टूटने की एक और बुरी खबर तब आई जब कई पूर्व JJP नेताओं ने अन्य पार्टियों से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। राम करन काला, जिन्होंने शाहबाद (SC) सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, जीत गए। राम कुमार गौतम, जिन्होंने सफीदों से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, और देवेंद्र सिंह बबली, जिन्होंने तोहाना से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, दोनों जीत गए। JJP के बागी नेता अनूप धनक, जिन्होंने उकलाना से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, हार गए, लेकिन उनके पार्टी छोड़ने से JJP को बड़ा झटका लगा।
भविष्य के लिए चुनौती
JJP के लिए 2024 का चुनाव एक बड़ी हार के रूप में सामने आया है। 2019 में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली यह पार्टी अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। पार्टी के भीतर मची उथल-पुथल और नेताओं के पलायन ने JJP के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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