Film Review : महिला सशक्तिकरण का संदेश देती मनोरंजक फिल्म है ‘कहां शुरू कहां खतम’

फिल्म कहां शुरू कहां खतम फिल्म शुक्रवार 20 सितंबर को देशभर में रिलीज हुई। इस फिल्म की विशेषता है कि ये फिल्म भरपूर मनोरंजक तो है ही महिला सशक्तिकरण का संदेश भी देती है।

Written By : रामनाथ राजेश | Updated on: November 5, 2024 1:44 pm

kahan shuru kahan khatam

विनोद भानुशाली द्वारा निर्मित और सौरभ दास गुप्ता द्वारा निर्देशित ये फिल्म कॉमेडी से भरपूर है और परिवार के साथ सिनेमा हॉल में बैठकर देखी जा सकती है।

इस फिल्म से ध्वनि भानुशाली ने अपना डेब्यू किया है और फिल्म में हीरो के रूप में आशिम गुलाटी हैं। राकेश बेदी और सुप्रिया पिलगांवकर की भी अहम भूमिका है। फिल्म की बात की जाए तो ध्वनि भानुशाली ने इस फिल्म के माध्यम से अपना जबरदस्त प्रभाव छोेड़ा है। ध्वनि भानुशाली को लोग अब तक सिंगर के रूप में जानते हैं लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद लोग उनके अभिनय की तारीफ किए बिना नहीं रहेंगे।

फिल्म की कहानी हरियाणा की पृष्ठभूमि पर आधारित है जहां आज भी महिलाओं की आबादी पुरुषों की तुलना में कम है और समाज पुरुष प्रधान है और आज भी ग्रामीण इलाकों में घूंघट प्रथा है। कहानी हरियाणा के कुख्यात आपराधिक पृष्टभूमि वाले परिवार की बेटी मीरा (ध्वनि भानुशाली) की शादी समारोह से शुरू होती है। अपने को आधुनिक दिखाने के लिए मीरा का पिता उसे पढ़ने के लिए आस्ट्रेलिया तो भेज देता है लेकिन लौटने पर उसकी शादी में उससे यह भी नहीं पूछता की उसे अभी शादी करनी भी है या नहीं। दरवाजे पर बारात लगने के समय मीरा घर से भाग जाती है वहीं उस शादी में बगैर निमंत्रण मजा लेने पहुंचे (वेडिंग क्रैशर)  कृष्णा ( आशिम गुलाटी) को भी अपनी जान बचाने के लिए मीरा के साथ भागना पड़ता है। फिर फिल्म में दर्शकों को एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी के साथ आगे बढ़ती है।

दोनों के भागने और उनकों ढूंढने के लिए मीरा के पिता के गुंडों का दल का उनके पीछे पड़ना जारी रहता है। मीरा जब कृष्णा के घर बरसाने पहुंचती है तो वहां अपने परिवार के विपरीत महिला प्रधान समाज देखती है। फिल्म का अंत सुखद होता है।

ध्वनि भानुशाली और आशिम गुलाटी दोनों की जोड़ी फिल्म kahan shuru kahan khatam में अच्छी जमती है। कुल मिलाकर फिल्म पैसा वसूल है। ये एक साफ सुथरी फिल्म है और परिवार के साथ फिल्म देखने लायक है।

निर्देशक सौरभदास गुप्ता लक्ष्मण उतेकर के शागिर्द हैं। सामाजिक मुद्दों को उभारती इस फिल्म की कहानी अच्छी है, कुल मिलाकर अच्छा निर्देशन भी किया है लेकिन कुछ स्थानों पर फिल्म निर्देशन के स्तर पर कमजोर नजर आती है। यदि 5  में से फिल्म को नंबर देने की बात की जाय तो 3.5 से 4 तक दिया जा सकता है।

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