गणतंत्र दिवस के ठीक पहले रिलीज़ हुई फिल्म Sky Force वास्तव में देश भक्ति की भावना से परिपूर्ण है। ‘तेजस’, ‘फाइटर’ और ‘ऑपरेशन वैलेंटाइन’ जैसी फिल्में भारतीय वायुसेना के साहस, युद्ध कौशल और वीरता दर्शाने वाली फिल्मों से ये अलग है।
ऐसे में फिल्म ‘स्काईफोर्स’ (Sky Force) के ट्रेलर और पोस्टर देखकर यह लग रहा था कि यह फिल्म भी बीजेपी शासनकाल के दौरान पाकिस्तान पर हुई भारतीय वायु सेना की एयरस्ट्राइक की एक और कहानी तो नहीं है? लेकिन, ऐसा नहीं है। फिल्म संवेदना से परिपूर्ण है। आलम ये है की एडवांस बुकिंग के मामले में भी ये फिल्म बहुत अच्छा लार रही है।
यह फिल्म उस दौर में जाती है जब देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे और ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा हर जुबां पर था। तब पाकिस्तानी वायुसेना अमेरिका की बदौलत भारत से ज्यादा मजबूत थी। लेकिन तब भी ऐसा क्या हुआ जिसने पाकिस्तान के बीचोंबीच स्थित सरगोधा एयरबेस पर भारतीय जांबाजों ने इतिहास रच दिया? और उस युवा पायलट ने ऐसा कौन सा कारनामा किया जिसने विमानन इतिहास को नया आयाम दिया? आइए,
इस कहानी को करीब से जानें।
फिल्म ‘स्काईफोर्स’ की शुरुआत से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि यह कहानी पाकिस्तान को विलन के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास नहीं करती।
फिल्म की पृष्ठभूमि 1971 के युद्ध से शुरू होती है, जहां भारतीय सेना एक पाकिस्तानी एयरफोर्स अफसर को पकड़ती है। उसे वह सम्मान दिया जाता है, जो वर्दीधारी किसी भी अफसर को दुश्मन देश में भी मिलना चाहिए। स्क्वाड्रन लीडर टी के विजय ( वीर पहाड़िया) और विंग कमांडर ओम आहूजा (अक्षय कुमार) दोनों ने फिल्म पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
इसके बाद कहानी फ्लैशबैक में जाती है, जब 1965 की लड़ाई के दौरान इस पाकिस्तानी अफसर को वीरता के लिए एक बड़ा सम्मान दिया गया था।
फिल्म का केंद्र भारतीय और पाकिस्तानी एयरफोर्स के दो अफसरों के बीच की गहन बातचीत है। भारतीय अफसर अपने जूनियर को छोटे भाई की तरह मानता है और उसकी खोज में जुटा रहता है। अंततः वह उस जूनियर अफसर का पता लगाता है।
भारतीय वायु सेना इस अफसर के परिवार से माफी मांगती है और उसे महावीर चक्र से सम्मानित करती है। दर्शक इन भावनात्मक पलों पर ताली बजाते हैं, अपनी आंखों के आंसू पोंछते हैं और एक गहरी भावुकता के साथ थिएटर से बाहर आते हैं। देश भक्ति से ओत प्रोत ये फिल्म वास्तव में देखने लायक है।
रेटिंग -4/5
यह भी पढ़े:-कल्पवृक्ष से सोने की चिड़िया तक: झांकी में भारत की रचनात्मकता की झलक गणतंत्र दिवस पर
8ipsxr