उन्होंने अपने शोध में यह भी इकठ्ठा किया कि बाढ़ का पानी पिछले चालीस-पचास सालों में औसतन कितनी देर टिकता रहा प्रत्येक वर्ष. स्थानीय अखबारों ,राज्य की अखबारों में और राष्ट्रीय अखबारों में उन त्रासदियों एवं बाढ़ से उत्पन्न मुसीबतों को किस रूप में रेखांकित किया गया . स्थानीय अधिकारियों की विभिन्न प्रकार की कार्यवाई, विधान सभा में बाढ़ की इन समस्याओं पर कब कब और कितनी चर्चा हुई और सरकारों ने कब कब क्या क्या निर्णय लिया और क्या क्या वास्तविक कदम उठाए गए ये सारी बातें मिश्र ने अपने गहन शोध में इकट्ठा किया है. इन समस्याओं पर ये आधा दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं जो इस समस्या के अलग-अलग दृष्टिकोण से समझाने का प्रयत्न है.
प्रस्तुत पुस्तक में तीस अलग-अलग अध्यायों में बाढ़ की समस्या को समझाने का एक कुशल प्रयास है. कुछ अध्याय देखिये :1 धरातल का जन्म 2. भारतीय धरातल पर नदियों का अवतरण 3.नदी और सभ्यता 4. बाढ़ और मनुष्य 5. नदियों पर शिकंजा 6.बाढ़ नियंत्रण की कीमत 7.बाढ़ नीति 8. तटबंध 9.बाढ़ की समस्या पर पहल 9. जल -निकासी का महत्व 10.बाढ़ के साथ ताल – मेल 11.बाढ़ -नियोजन बनाम बाढ़ नियंत्रण12.बाढ़ :संवाद बनाम सामना इत्यादि. आज़ाद भारत में विकास के जिस मॉडल को अपनाया गया इसकी विस्तार से चर्चा है.
नदियों को बांधने के साथ ही जल निकासी के प्राकृतिक तरीकों में व्यवधान उत्पन्न हो गया .तथ्यों और सारे आंकड़ों के साथ यह विवेचना करने की कोशिश की गई है कि गांव के उस अंतिम व्यक्ति/भुक्तभोगी पर क्या असर हुआ है. 124 पृष्ठ की इस पुस्तक में अपने तकनीकी ज्ञान के साथ साथ प्रवाहमान सुंदर भाषा की भी झलक मिश्र जी दिखाते हैं . देश के विकास और आम आदमी के बारे में सोचने वालों के लिए यूं तो दिनेश कुमार मिश्र की सारी पुस्तकें पठनीय और संग्रहणीय हैं पर प्रस्तुत पुस्तक तो अति पठनीय है. साफ सुंदर कागज और अच्छी छपाई पुस्तक को आकर्षक बना देती है
पुस्तक: बोया पेड़ बबूल का(बाढ़ नियंत्रण का रहस्य)
लेखक : दिनेश कुमार मिश्र, पृष्ठ: 124 ,प्रकाशक :पृथ्वी प्रकाशन, नई दिल्ली ,मूल्य :रु.150
(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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बाढ़ नियंत्रण पर केंद्रित पुस्तक निश्चित ही पठनीय है।
श्री प्रमोद झा द्वारा की गई समीक्षा से पुस्तक के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला, बहुत आभार!