कल्पवृक्ष से सोने की चिड़िया तक: झांकी में भारत की रचनात्मकता की झलक गणतंत्र दिवस पर

कल्पवृक्ष से सोने की चिड़िया तक: भारत की रचनात्मकता की झलक, गणतंत्र दिवस पर प्रस्तुत केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय की भव्य झांकी भारत की सांस्कृतिक विविधता और रचनात्मकता का शानदार उत्सव है।

कल्पवृक्ष से सोने की चिड़िया तक:- भारत की रचनात्मकता की झलक
Written By : आंचल कुमारी सिंह | Updated on: January 23, 2025 12:23 am

यह झांकी माननीय प्रधानमंत्री के ‘विरासत भी, विकास भी’ मूलमंत्र से प्रेरित होकर देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और सतत विकास की अपार संभावनाओं को प्रदर्शित करती है। यह झांकी भारत के विकसित राष्ट्र बनने के ‘विज़न 2047’ में संस्कृति और रचनात्मकता के योगदान को रेखांकित करती है। यह कला, संगीत और परंपराओं की गहराई को आधुनिक व्यवसाय और नवाचार से जोड़ती है।

भारत की रचनात्मकता के अवसर पर संस्कृति सचिव अरुणीश चावला ने कहा, “संस्कृति मंत्रालय की यह झांकी हमारे देश की अद्वितीय सांस्कृतिक विविधता, रचनात्मकता और सतत विकास की झलक है। यह झांकी न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सम्मान देती है, बल्कि देश के हर नागरिक को एक उज्ज्वल भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। कुम्हार के चाक पर प्राचीन तमिल वाद्य यंत्र याढ़ हमारी परंपरा की गहराई और निरंतरता का प्रतीक है। वहीं, काइनैटिक कल्पवृक्ष जो ‘सोने की चिड़िया’ में बदलता है, हमारी रचनात्मकता और आर्थिक प्रगति का संदेश देता है।”
झांकी के मुख्य आकर्षण
1. कुम्हार के चाक पर याढ़ : प्राचीन तमिल वाद्य यंत्र, जो भारत की संगीत परंपरा की स्थिरता और निरंतरता का प्रतीक है।

2. काइनैटिक कल्पवृक्ष : यह रचनात्मकता से भरपूर एक संरचना है, जो धीरे-धीरे ‘सोने की चिड़िया’ का रूप ले लेती है। यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक प्रगति का प्रतीक है।

3. डिजिटल स्क्रीन : झांकी के दोनों ओर लगे दस डिजिटल स्क्रीन प्रदर्शन कला, साहित्य, वास्तुकला, डिज़ाइन और पर्यटन जैसे रचनात्मक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
संस्कृति मंत्रालय की यह झांकी न केवल भारत के गौरवशाली अतीत को दर्शाती है, बल्कि एक सशक्त और रचनात्मक भविष्य का सपना भी दिखाती है। यह झांकी हर नागरिक को अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करने और विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने का आमंत्रण देती है।

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