हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने कांग्रेस सरकार के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बुधवार को उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhwinder Singh Sukhu) सरकार द्वारा नियुक्त किए गए छह मुख्य संसदीय सचिवों (CPS) की नियुक्ति को रद्द कर दिया। इस फैसले ने न केवल भाजपा को सरकार पर हमला करने का मौका दिया, बल्कि मुख्यमंत्री सुक्खू को भी संकट में डाल दिया है, जिनके ऊपर “अपनी पसंदीदा” नेताओं को प्रमोट करने का आरोप लग रहा था।
कोर्ट का आदेश: CPS नियुक्तियां संविधान के खिलाफ
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि CPS की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164(1-A) का उल्लंघन करती है, जो राज्य मंत्रिमंडल के आकार को विधानसभा की ताकत के 15 प्रतिशत तक सीमित करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhwinder Singh Sukhu) सरकार ने CPS को मंत्रियों के बराबर अधिकार दिए गए थे, जैसे सरकारी फाइलों तक पहुंच, मंत्रियों के साथ काम करना, और यहां तक कि सरकारी गाड़ी पर तिरंगा और अशोक चक्र का प्रतीक लगाने की अनुमति देना, जो अनुशासन और सार्वजनिक संपत्ति के दुरुपयोग की स्थिति बनाता है।
कांग्रेस पार्टी के लिए नयी चुनौती
कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि अगर पार्टी उच्च कमान ने मंत्रिमंडल में खाली पड़ी एक सीट को भरने का फैसला किया तो महिला विधायक को प्राथमिकता दी जाएगी, क्योंकि अभी तक मंत्रिमंडल में कोई महिला नहीं है। हालांकि, पार्टी के भीतर चर्चाएं हैं कि पूर्व CPS अपने लिए मंत्री पद की मांग करेंगे, लेकिन इसे लेकर पार्टी के भीतर असंतोष भी बढ़ सकता है।
सीएम सुक्खू का रुख: फैसले पर पुनर्विचार की तैयारी
सीएम सुक्खू ने कहा कि वह हाई कोर्ट के फैसले पर अध्ययन करेंगे और इस पर वरिष्ठ नेताओं से विचार विमर्श करेंगे। सूत्रों के अनुसार, सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर विचार कर रही है। इसके लिए राज्य सरकार का एक दल दिल्ली भी जाएगा, जहां वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से सलाह ली जाएगी।
भाजपा का हमला: CPS खर्च की वसूली की मांग
भाजपा ने सरकार से CPS के खर्चों की वसूली की मांग की है और आरोप लगाया है कि यह नियुक्तियां केवल राजनीतिक फायदे के लिए की गई थीं। अब सवाल यह उठता है कि क्या सुक्खू सरकार इस फैसले से उबर पाएगी या यह मामला और अधिक विवादों में फंस जाएगा।
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