हास्य-व्यंग्य : बुढ़ऊ का अचानक चले जाना

शर्माजी चले गए। अरे भाई कैसे ? क्या हुआ था उन्हें ? अभी पता नहीं चला, क्यों चले गए। लेकिन कुछ तो बीमारी रही ही होगी ? अचानक कैसे चले जाएंगे ? हो सकता है, कोई रोग रहा हो। घर-परिवार से छिपाए रखा हो। लेकिन क्या दोस्तों को भी उन्होंने कभी कुछ बताया नहीं ? नहीं कभी किसी को कोई जानकारी नहीं दी। पड़ोस के गुप्ताजी तो उनके लंगोटिया यार थे। दोनों सुबह-शाम साथ-साथ पार्क में टहलते थे। उन्हें भी भनक नहीं लगी।

Written By : अनिल त्रिवेदी | Updated on: November 5, 2024 1:49 pm
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कतई विश्वास नहीं हो रहा है कि शर्माजी अचानक चले जाएंगे।
सुबह फोन से मिली जानकारी
शर्माजी के चले जाने की खबर फैली तो नुक्कड़ पर दो-चार लोग और जमा हो गए। फिर एक ने पूछा- कुछ पता चला, क्या हो गया था शर्माजी को ? नहीं अभी तो यही पता चला कि सुबह-सुबह ही चले गए। आपको पता कैसे लगा ? कुछ देर पहले ही मिश्राजी का फोन आया था ? बस यही कह पाए कि शर्माजी निकल गए हैं और फोन कट गया। बहुत बुरा हुआ। शर्माजी को एकाएक नहीं जाना चाहिए था। कल शाम को ही तो मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। कुछ लगा ही नहीं कि जाने वाले हैं। दूसरे की जिज्ञासा थी- क्या शर्माजी पूरी तरह चले गए हैं। मतलब वेंटिलेटर वगैरह पर तो नहीं हैं ? मिश्राजी के फोन से तो यही लगा कि वे चले ही गए हैं। कुछ बचा नहीं है।
अभी जाने लायक नहीं थे
सभी को शर्माजी के चले जाने का गहरा अफसोस था। किसी ने दुख व्यक्त किया- शर्माजी को असमय नहीं जाना चाहिए था। लेकिन जाना, न जाना किसी के हाथ में नहीं होता। कितनी उमर रही होगी शर्माजी की ? दूसरे ने कहा- नब्बे के पार तो होंगे ही। असमय तो नहीं कहा जा सकता लेकिन वह अभी जाने लायक नहीं दिखते थे। लेकिन जाने वाले को कौन रोक सका है। शर्माजी अगर चाहते तो कुछ समय और रुक सकते थे। कैसे रुक सकते थे भाई ? हर हफ्ते चेकअप करवाते रहते तो यह संभव था। क्या बात करते हो, चेकअप से कोई जाने को टाल सकता है। पड़ोस के गिरधर तो हफ्ते में दो बार चेकअप कराते थे फिर भी चले ही गए।
बच्चों से बहुत प्यार था
शर्माजी का अचानक चले जाना सभी को द्रवित कर रहा था। सबको उनके साथ बिताए पुराने दिन याद आ रहे थे। बहुत मिलनसार थे। सबसे हंसकर ही बात करते थे। बुढ़ापे में वे बच्चों से बहुत प्यार करते थे। हो सकता है जवानी में भी इसी तरह प्यार लुटाते रहे हों। कोई कमी नहीं थी, भरा-पूरा परिवार छोड़कर गए हैं। कोई उन्हें मोहल्ले की शान बता रहा है तो कोई उन्हें शहर का गौरव मान रहा है। सभी उनका यशगान कर रहे हैं। तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं। वैसे भी अपने यहां किसी के चले जाने पर प्रशंसा करने का रिवाज है इसलिए कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता था।
शर्माजी तो बनारस निकल गए
कुछ देर बाद सभी शोकाकुल लोगों ने तय किया कि अब शर्माजी के घर की ओर चलें। देखें अंतिम यात्रा में कितनी देर है। शर्माजी के घर के बाहर पहुंचे तो सभी अचंभित। वहां तो सब कुछ सामान्य, रोज की तरह। कुछ पूछने से पहले सभी ठिठके। फिर एक ने डोरबेल बजाई तो बेटा बाहर आया। बेटे से पूछा- शर्माजी को क्या हुआ ? वह बोला- अंकल पापा बनारस निकल गए हैं। बहुत दिन से जाना चाहते थे, सो सुबह ही चले गए हैं। यह सुनते ही सभी चुप हो गए। श्रीवास्तवजी ने बात संभाली- ठीक है, हम लोग तो ऐसे ही शर्माजी का हालचाल पूछ रहे थे। फिर शर्माजी का बेटा घर के अंदर चला गया। अंतिम यात्रा देखने गए लोग लौटने लगे।
(humor-satire) मिसरवा ने सब गड़बड़ किया
शर्माजी के जाने की खबर किसने दी थी ? यार मिश्राजी ने फोन पर कहा था। मिश्राजी से बात की जाए कि अफवाह क्यों फैलाई। यादवजी ने मिश्राजी का नंबर मिलाया तो उन्होंने कहा-मैंने तो यह कहा था कि शर्माजी सुबह-सुबह ही निकल गए हैं। जब तक मैं बनारस यात्रा की बात बताता तब तक फोन कट गया। कहीं समझने में चूक हुई है। शर्माजी के चले जाने पर दुख जताने वाले अब उनके न जाने से दुखी हो गए। यादवजी बोले-यह मिसरवा सब गड़बड़ किया है। अधूरी बात बताकर सबका पूरा दिन खराब कर दिया। एक ने कहा-यह बुढ़ऊ अभी नहीं जाएगा। नौकरी से ज्यादा साल पेंशन लेता रहेगा। मोहल्ले में दो-तीन को निपटाने के बाद ही जाएगा। अब अगर कहीं शर्माजी यह सब सुन लेते तो बनारस के बजाय ऊपर चले ही जाते। धीरे-धीरे सभी दुखी मन से अपने-अपने घर चले गए।

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