कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के निदेशक प्रो. महेश जी. ठक्कर थे। इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, डीन (अकादमिक) प्रो. प्रतापानंद झा, शैक्षणिक इकाई के प्रभारी प्रो. अरुण भारद्वाज और आईजीएनसीए के विभिन्न प्रभागों के प्रमुख भी उपस्थित थे। समझौता ज्ञापन पर आईजीएनसीए की ओर से डॉ. सच्चिदानंद जोशी और बीएसआईपी की ओर से प्रो. महेश जी. ठक्कर ने हस्ताक्षर किए।
आईजीएनसीए के संरक्षण प्रभाग के प्रमुख प्रो. अचल पंड्या और बीएसआईपी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शिल्पा पांडे इस सहयोग के लिए नोडल अधिकारे होंगे। बीएसआईपी और आईजीएनसीए के बीच समझौता ज्ञापन का उद्देश्य बहुविषयक विषयक अनुसंधान (इंटर डिसिप्लिनरी रिसर्च), संयुक्त आयोजनों और साझा विशेषज्ञता के माध्यम से विज्ञान और संस्कृति को एकीकृत करना है। इस सहयोग में अनुसंधान, डॉक्यूमेंटेशन, संरक्षण, संग्रहालय विकास, क्षेत्रीय कार्य, दृश्य-श्रव्य अभिलेख (ऑडियो-विजुअल रिकॉर्ड), संयुक्त प्रकाशन, संरक्षण एवं विरासत प्रबंधन में प्रशिक्षण के साथ-साथ जन-पहुंच शामिल होगा। इस पहल का उद्देश्य इनोवेटिव कार्यक्रमों के माध्यम से भारत की विरासत का संरक्षण, व्याख्या और प्रस्तुति करना और राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाना है।
इस अवसर पर प्रो. महेश जी खट्टर ने कहा कि आईजीएनसीए और बी.एस.आई.पी. का यह सहयोग विज्ञान, कला और संस्कृति को एक साथ लाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इसके माध्यम से अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जन-जागरूकता बढ़ेगी तथा नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह पहल हमारे इतिहास और धरोहर को समझने के साथ-साथ आने वाले समय के लिए उसके संरक्षण की दिशा में भी एक अहम कदम है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आईजीएनसीए के साथ यह हमारा साझा प्रयास है कि विज्ञान, कला और संस्कृति को एक ही मंच पर लाया जाए। यही कारण है कि आज यह समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया जा रहा है, ताकि भविष्य में और भी प्रदर्शनियां, शोध और प्रकाशन किए जा सकें।
यह समझौता ज्ञापन भारत में विज्ञान और संस्कृति को एक मंच पर एकीकृत करने का पहला ऐसा प्रयास है, जिसका उद्देश्य देश की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करना है। इस अवसर पर, आईजीएनसीए द्वारा संचालित ग्यारह पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के छात्रों लिए एक ओरिएंटेशन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इन पाठ्यक्रमों में सांस्कृतिक सूचना विज्ञान (कल्चरल इनफॉर्मेटिक्स) से लेकर भारतीय साहित्य तक शामिल हैं। कार्यक्रम में समकालीन शिक्षा में पारंपरिक ज्ञान को समाहित करने के उद्देश्य पर प्रकाश डाला गया। कुशल पेशेवरों को विकसित करने के लिए डिज़ाइन किए गए ये पाठ्यक्रम व्यावहारिक प्रशिक्षण और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने वाले हैं, जिससे शिक्षार्थियों, विशेषज्ञों और जीवंत परंपराओं के बीच सार्थक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा।
इस अवसर पर डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि आईजीएनसीए एक जहाज़ की तरह है, जिसका केवल एक-तिहाई भाग सतह पर दिखाई देता है, जबकि दो-तिहाई इसकी गहराइयों में छिपा है। जितना आप इसे जानने की कोशिश करेंगे, उतना ही आपको महसूस होगा कि अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। यह भारत की कला और संस्कृति की सबसे बड़ी रिपॉज़िटरी है, जहां संस्कृति से जुड़े लगभग हर पहलू की झलक मिलती है।
उन्होंने बताया कि 2016 में कार्यभार संभालने के बाद, विशेष प्रशिक्षित कार्यबल की आवश्यकता को देखते हुए 2017 में तीन पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किए गए, जो अब बढ़कर 11 हो गए हैं, जिनमें युवाओं से लेकर अवकाशप्राप्त लोग तक भाग लेते हैं। यहां शिक्षा स्वेच्छा और प्रेम पर आधारित है, जिससे सीखना केवल डिग्री तक सीमित न रहकर जीवंत और व्यावहारिक बन जाता है।
डॉ. जोशी ने आईजीएनसीए की गतिविधियों के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि संस्थान की गतिविधियां संसद भवन की कलाकृतियों, भारत मंडपम के सामने स्थित विश्व की सबसे बड़ी अष्टधातु नटराज प्रतिमा, ओसाका एक्सपो में भारत पवेलियन के डिज़ाइन और मेरा गांव, मेरी धरोहर जैसे महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट तक फैली हैं। अंत में उन्होंने कहा कि आईजीएनसीए में अवसर असीमित हैं और विद्यार्थियों को चाहिए कि वे हर गतिविधि में सक्रियता से भाग लेकर संस्कृति के सच्चे दूत बनें।
एमओयू का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “विज्ञान और संस्कृति को एक साथ लाकर हम इस बात की मिसाल कायम कर रहे हैं कि कैसे धरोहर का संरक्षण, व्याख्या और वैश्विक स्तर पर प्रस्तुतीकरण किया जा सकता है।” यह सहयोग वैज्ञानिक विधियों को सांस्कृतिक समझ के साथ जोड़कर धरोहर संरक्षण के लिए एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो भविष्य में विश्व स्तर पर ऐसे प्रयासों के मार्ग को प्रशस्त करेगा।
डॉ. शिल्पा पांडे ने कहा कि यह एमओयू भारतीय संस्कृति, कला और विज्ञान पर नए तरीके से फोकस करेगा, जो विज्ञान, संस्कृति और समाज के बीच अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाने वाले संबंधों को उजागर करेगा। यह सहयोग भारत भर में, हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के तटों तक, लुप्त होती सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए डॉक्यूमेंट्री, लेख और जागरूकता अभियान चलाएगा। प्रो. अचल पंड्या ने जोड़ा कि यह गठजोड़ वैज्ञानिक सटीकता को सांस्कृतिक सार के साथ मिलाकर भारत की कहानी को वैश्विक स्तर पर साझा करने का काम करेगा।
कार्यक्रम के समापन पर आईजीएनसीए के शैक्षणिक इकाई के प्रभारी प्रो. अरुण कुमार भारद्वाज ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन दिया। साथ ही, अपने-अपने विषयों के पाठ्यक्रम संचालित करने वाले विभागाध्यक्षों ने अपने प्रभागों द्वारा संचालित कार्यक्रमों का संक्षिप्त ब्योरा भी प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ अमिताभ मुखर्जी द्वारा सरस्वती वंदना और उपनिषदों के श्लोकों के पाठ से हुआ। इस अवसर पर विभिन्न पाठ्यक्रमों में पंजीकृत छात्राओं ने नृत्य प्रस्तुतियां भी दीं। कार्यक्रम के दौरान, पाठ्यक्रमों की इन्फॉर्मेशन बुलेटिन का लोकार्पण भी किया गया।
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