बेहद पठनीय है इन्द्रनारायण झा की शोधपूर्ण पुस्तक “मिथिला अन्वेषण एवं दिग्दर्शन”

भारतीय इतिहास और संस्कृति की चर्चा जब भी होती है तो बिना मिथिला की चर्चा किये हुए अधूरी रहती है. प्राचीन काल से राजा जनक से लेकर आज तक ज्ञान, परम्परा और संस्कृति की रक्षा में मिथिला का क्षेत्र अग्रणी रहा है. मिथिला का क्षेत्र हमेशा सामाजिक सौहार्द और सामंजस्य का उदाहरण प्रस्तुत करता रहा है. प्रायः इसीलिए जगज्जनिनी सीता ने अवतरण के लिए मिथिला की भूमि को चुना.

पुस्तक के आवरण पृष्ठ का अंश
Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: October 15, 2025 10:54 pm

सीरध्वज जनक माँ सीता के पिता बने. राजा जनक की सभा में कपिल और कणाद जैसे विद्वान उपस्थित रहते थे. मिथिला पर सैकड़ों पुस्तक विभिन्न भाषाओं में लिखी गयी हैं. हज़ारों सालों से सैकड़ों विद्वान दुनिया भर से मिथिला आते रहे हैं और यहां की सभ्यता, संस्कृति से अभिभूत होते रहे हैं. इसी श्रृंखला में प्रस्तुत पुस्तक भी है. लेखक इन्द्र नारायण झा लंबे समय तक केंद्रीय सतर्कता विभाग और कोल इंडिया के सतर्कता विभाग से सम्बद्ध रहे. अपनी व्यस्त ज़िंदगी में भी इन्होंने अध्ययन, शोध और अन्वेषण जारी रखा. इसी का परिणाम है कि  इन्द्रनारायण मिथिला विषयक महत्वपूर्ण पांच पुस्तक एवं झारखंड से संबंधित दो पुस्तकों की रचना की. पिछले पांच दशकों में इन्होंने दर्जनों महत्वपूर्ण शोधपरक लेख लिखे. प्रस्तुत पुस्तक में तेरह अध्याय हैं. इनके शीर्षक को देखकर आपको अनुमान हो सकता है कि इसे क्यों पढ़ा जाय. देखिए अध्यायों के नाम: अध्याय एक: स्वनामधन्य मिथिला, अध्याय दो: प्राचीन मिथिला, अध्याय तीन: विदेह राज्य की राजधानी मिथिला, अध्याय चार: जानकीमय मिथिला, अध्याय पांच: पुरातात्विक मिथिला, अध्याय छह: मिथिला: जीवन और संस्कृति, अध्याय सात: मिथिला चित्रकला (मधुबनी पेंटिंग), अध्याय आठ: मिथिला के कुछ ऐतिहासिक ग्राम और नगर अध्याय नौ: मिथिला की जीवनदायिनी नदियाँ, अध्याय दस: मैथिली भाषा, लिपि और साहित्य, अध्याय ग्यारह: जनकवि विद्यापति, अध्याय बारह: वैदिक साहित्य के मुकुटमणि आचार्य मंडन मिश्र, और अध्याय तेरह : पर्यटकों का स्वर्ग मिथिला.

इन अध्यायों को देखकर एक सरसरी नज़र से मिथिला को देखा-समझा जा सकता है. इस पुस्तक में प्रमुख विद्वानों, नैयायिकों ,वैयाकरणों, व्याकरणाचार्यों के माध्यम से भारत की विशद ज्ञान परम्परा को समझने में सहायता मिल सकती है. पांच सौ अड़तीस पृष्ठ की पुस्तक के अंत में सारे संदर्भ ग्रन्थों की सूची और ऐतिहासिक स्थानों के कुछ महत्वपूर्ण चित्रों का भी समावेश किया गया है. पुस्तक की प्रस्तुति रोचक ढंग से की गई है और लेखक की भाषा उत्तम है. पुस्तक के कई अध्याय को कुछ संक्षेप में समेट लिया गया है पर शायद यह लेखक की विवशता रही होगी. बेहतर तो ऐसा होता कि पुस्तक कई खंड में लिखी गयी होती तो मिथिला के विद्वानों की कुछ लेखनी का भी समावेश किया जा सकता ! यह पुस्तक अति पठनीय और संग्रहणीय है. इसके पढ़ने के बाद मिथिला को और समझने के लिये अन्य पुस्तकों को पढ़ने में सहायता मिलेगी.

पुस्तक:- मिथिला: अन्वेषण एवं दिग्दर्शन, भाषा: हिंदी, लेखक: इन्द्रनारायण झा पृष्ठ:538, प्रकाशक:- हरि-अन्नपूर्णा स्मृति प्रकाशन, ग्राम: सड़रा, मधुबनी, बिहार, मूल्य: रु.600.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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