यह पुस्तक प्रसिद्ध फोटो जर्नलिस्ट आशीष शर्मा द्वारा लिखी गई है और इसमें जम्मू-कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक धरोहर, स्मार्ट सिटी पहल, कृषि, हस्तशिल्प और आध्यात्मिक स्थलों को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। प्रदर्शनी दर्शकों के लिए 16 से 25 जून 2025 तक आईजीएनसीए की चित्रदीर्घा दर्शनम्-1 में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुली रहेगी। चर्चा सत्र के मुख्य अतिथि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा, “जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में 5 अगस्त 2019 की तारीख एक महत्त्वपूर्ण तारीख है, जब जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ पूरी तरह से एकीकृत किया गया। इसी तरह 6 जून 2025 की तारीख भी ऐसी ही है।
उस जम्मू-कश्मीर भौतिक रूप से देश के साथ एकीकृत हुआ, जब कश्मीर रेलमार्ग के ज़रिये कन्याकुमारी से जुड़ गया। 5 अगस्त और 6 जून देश के इतिहास में याद रखे जाने वाले दिन हैं। जिन्होंने इसे संभव बनाया, वे लोग भी याद रखे जाएंगे। सात दशकों तक जम्मू-कश्मीर जड़ था। 5 अगस्त और 6 जून इस जड़ता को दूर करने वाले दिन हैं।” उन्होंने आगे कहा कि आशीष शर्मा की ये कॉफी टेबल बुक पिछले पांच वर्षों में जम्मू-कश्मीर में आए बदलावों को दिखाती है। ये पुस्तक तथ्यात्मक रूप से निरंतर राज्य में हो रहे बदलावों को प्रस्तुत करती है।
जम्मू-कश्मीर के लोगों की पीड़ा को बताते हुए उन्होंने कहा “पहले सुबह उनकी नहीं थी, शाम उनकी नहीं थी। सड़कें उनकी नहीं थीं और कभी-कभी लगता था कि शहर भी उनका नहीं था। अब कश्मीर के लोगों को उनका शहर मिल गया है।” उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने यह भी कहा, जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत सरकार और राज्य प्रशासन की नीति यही है कि शांति को खरीदा नहीं जा सकता। शांति को स्थापित करना पड़ता है। हम अपने सुरक्षाबलों को कहते हैं, बेगुनाह को छेड़ो मत और गुनाहगार को छोड़ो मत। उन्होंने रेखांकित किया कि सभी मामलों में जम्मू-कश्मीर के विकास में गति आई है। आशीष ने 2019 के बाद राज्य में जो बदलाव आए हैं, उसे 225 पृष्ठों की पुस्तक में दिखाने का प्रयास किया है।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पहलगाम आतंकी घटना के संदर्भ में बात की और कहा कि 22 अप्रैल, 2025 की तारीख ऐसी है, जिसे देश कभी नहीं भूल सकता। उस दिन आतंकियों हमारी बहनों का सिंदूर उजाड़ दिया। लेकिन इस घटना के बाद एक महत्त्वपूर्ण बात हुई। ऐसा पहली बार हुआ कि उस बर्बर घटना के विरोध में जम्मू-कश्मीर के लोग स्वतःस्फूर्त सड़कों पर उतरे। उन्होंने यह भी कहा कि जहां देश की एकता-अखंडता का सवाल हो, वहां जिम्मेदारी दिखानी चाहिए, तथ्यहीन बातें नहीं करनी चाहिए। अंत में उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर आम आदमी जितना मजबूत होगा, राज्य भी उतना ही मजबूत होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा, इस पुस्तक का महत्त्व पहलगाम की घटना के बाद और बढ़ गया है। ये एक फोटो की बड़ी किताब भर नहीं है, बल्कि एक किताब में हज़ारों किताबें छिपी हैं। इसमें बदलते कश्मीर की कहानी है। दुनिया को बताना चाहिए कि कश्मीर बदल गया है। जिन्होंने कश्मीर को बदलने का काम किया है, उनके हाथों किताब का लोकार्पण एक सुखद संयोग है। इस पुस्तक को ई-बुक के रूप में लाना चाहिए। इसे एक छोटी पुस्तक के रूप में भी लाना चाहिए, ताकि यह लाखों लोगों तक पहुंचे।
विशिष्ट अतिथि के रूप में मीनाक्षी लेखी ने कहा, कश्मीर के साथ हर भारतीय का रिश्ता मन और आत्मा का रिश्ता है, चाहे वह देश के किसी भी कोने में बैठा हो। अनुच्छेद 370 हटने के बाद, जम्मू-कश्मीर में जो बदलाव आया है, वह आशीष जी ने अपनी पुस्तक में दिखाया है। कश्मीर को बदलते हुए मैंने देखा है, अच्छे संदर्भों में भी और बुरे संदर्भों में भी। इस पुस्तक में सबसे अच्छी तस्वीर लाल चौक की है, जिसमें महिलाएं रात में वहां सेल्फी ले रही हैं। ये वही लाल चौक है, जहां तिरंगा फहराने में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को, मुरली मनोहर जोशीजी को और नरेंद्र मोदी जी को भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने पुस्तक के बारे में कहा, पुस्तकें कागज पर लिखी जाती है और कैमरे से खींची तस्वीरें उसमें होती हैं, लेकिन यह पुस्तक कागज पर नहीं, हृदय पर लिखी गई है। यह एक भावनात्मक यात्रा है, इसमें निजी पीड़ा छिपी हुई है। पुस्तक के बारे में बताते हुए लेखक आशीष शर्मा ने कहा, यह मेरे लिए सिर्फ एक पुस्तक नहीं है, बल्कि उससे बहुत बढ़कर है। यह मेरे लिए एक निजी यात्रा है। यह पुस्तक जम्मू-कश्मीर के लोगों को समर्पित है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने अतिथियों का परिचय और उनके प्रति आभार प्रकट करते हुए स्वागत भाषण दिया।
पुस्तक के बारे में
इस किताब का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर के बदलते रूप, उसकी सांस्कृतिक धरोहर, प्राकृतिक सुंदरता और वहां के लोगों की उम्मीद व जिजीविषा को दिखाना है। लेखक आशीष शर्मा खुद कश्मीरी हैं और उन्होंने दशकों तक संघर्ष, डर और बदलाव को करीब से देखा है। उनकी प्रेरणा थी अपने घर की असली तस्वीर, उसकी शांति, प्रगति और रंगीन जीवन को दुनिया के सामने लाना।
फोटोज के ज़रिए वे दिखाना चाहते हैं कि कैसे जम्मू-कश्मीर अब सिर्फ संघर्ष नहीं, बल्कि उम्मीद, विकास, स्मार्ट सिटी, कला, हस्तशिल्प और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है। इस किताब में जम्मू-कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक धरोहर, और छुपे हुए खजाने जैसे अनदेखे गांव, घाटियां और पर्वतों की शानदार तस्वीरें शामिल हैं। इसमें श्रीनगर और जम्मू की स्मार्ट सिटी पहल, नए इंफ्रास्ट्रक्चर, रिवाइटलाइज्ड पब्लिक स्पेसेज़, कश्मीरियत की नई ऊर्जा, कृषि, हस्तशिल्प, और प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों की झलक मिलती है। किताब में शामिल फोटो सिर्फ जम्मू-कश्मीर की खूबसूरती ही नहीं, बल्कि उम्मीद, शांति और तरक्की की नई कहानी को भी दिखाते हैं। यह किताब जम्मू-कश्मीर के जज़्बे और भविष्य को सेलिब्रेट करती है। इस महत्वपूर्ण आयोजन के माध्यम से कला प्रेमियों, शोधकर्ताओं एवं आम नागरिकों को जम्मू-कश्मीर की विविध छवियों एवं अनुभवों से रूबरू होने का अवसर मिला।
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