कबीरदास और रामभक्ति : एक संत की सहज साधना

भारतवर्ष की संत परंपरा में कबीरदास जी का नाम सर्वोपरि है। वे केवल एक संत या कवि नहीं थे, बल्कि एक सामाजिक क्रांतिकारी, दार्शनिक, और ईश्वर-प्रेम के सच्चे साधक थे। उनका जीवन समाज की रूढ़ियों, आडंबरों और झूठे धार्मिक पाखंडों के खिलाफ संघर्ष की मिसाल है।लेकिन इस संघर्ष के मूल में जो आधार था, वह था — रामभक्ति। कबीर के राम कोई अवतारी पुरुष नहीं, बल्कि निर्गुण ब्रह्म हैं — जो साकार और निराकार दोनों से परे हैं। उनकी भक्ति सहज, सच्ची और मानवतावादी थी। आइए, उनके जीवन, विचार और रामभक्ति के दोहों को समझें।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: August 12, 2025 9:11 pm

कबीर का जीवन : जाति से ऊपर, प्रेम से गहरा।

कबीर का जन्म रहस्यमय रहा। लोककथाओं के अनुसार वे लहरतारा तालाब के पास पाए गए और एक जुलाहा दंपत्ति, नीरू और नीमा ने उन्हें पाला। उनका पालन-पोषण मुस्लिम परिवार में हुआ, लेकिन विचारों में वे न किसी धर्म से बँधे और न किसी रूढ़ि से। उन्होंने रामानंद जी से गुरुमंत्र लिया और आत्मज्ञान की राह पर चल पड़े। उनके दोहे आज भी लोगों को सोचने, जागने और समझने के लिए प्रेरित करते हैं।

राम — कबीर के निर्गुण ईश्वर:

कबीर के राम मंदिरों में नहीं रहते, वे मूर्तियों में नहीं बसते। वे कहते हैं:

“कंकर-पाथर जोड़ि के, मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥”

उनके राम निर्गुण ब्रह्म हैं — न जन्मते हैं, न मरते हैं। वे सर्वत्र हैं, और हृदय में वास करते हैं।

राम रहीम एकै है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाव में, कबहुँ न होए खेव॥”

यह दोहा कबीर की उस एकेश्वरवाद की सोच को दर्शाता है, जो धार्मिक एकता और इंसानियत की बात करती है। कबीर और रामभक्ति के प्रसिद्ध दोहे जो कबीर की आध्यात्मिक ऊँचाई को दर्शाते हैं:

“राम नाम उर में धरो, राम बिना सब सून।
कह कबीर यह जाहिरा, और न काहू दूँ॥”

भावार्थ: कबीर कहते हैं कि राम नाम को हृदय में धारण करो। राम के बिना जीवन शून्य है। यही सच्चा मार्ग है।

“जप माला छोड़ि दे, मन का फेर मरो।
राम सुमिरन कर हिय से, तन को झूठो घरो॥”

भावार्थ: केवल माला फेरने से कुछ नहीं होता। मन को सुधारो और हृदय से राम का स्मरण करो।

“राम नहीं तो कुछ नहीं, राम नाम सुख होय।
राम नाम उर धारिए, दुःख निकसे सब कोय॥”

भावार्थ: राम का नाम ही सच्चा सुख देता है। जो हृदय में राम को धारण करता है, उसका हर दुःख दूर हो जाता है।

“राम रसायन प्रेम का, सिर पीवो मतवार।
तन माटी मन पवन सम, बोलै सब्द विचार॥”

भावार्थ: राम नाम प्रेम की वह मधुशाला है, जिसे पीकर मन मतवाला हो जाए। राम का स्मरण शरीर को हल्का और आत्मा को शांत कर देता है।

कबीर के विचार: धर्म से नहीं, प्रेम से ईश्वर मिलते हैं

कबीरदास जी ने धर्म, जाति, ऊँच-नीच जैसी सभी संकीर्णताओं का विरोध किया। उनका मानना था कि:

“जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥”

उन्होंने बार-बार कहा कि ईश्वर किसी मंदिर, मस्जिद, पोथी, वेद या कुरान में नहीं, मानव-हृदय में है।

कबीर की मृत्यु एक अंतिम संदेश:

कबीरदास जी की मृत्यु के समय हिन्दू और मुसलमान उनके अंतिम संस्कार को लेकर झगड़ने लगे। जब उनकी चादर हटाई गई तो वहाँ केवल फूल मिले। यह घटना एक प्रतीक है — कबीर किसी धर्म में सीमित नहीं थे। वे पूरे मानव समाज के लिए सत्य, प्रेम और रामभक्ति के दूत थे।

कबीर के राम — सबमें और सबसे परे । कबीर का राम न तुलसीदास के राम की तरह अयोध्या के राजा हैं, न मंदिर में विराजमान मूर्ति। वे कहते हैं:

“राम मकहै कबीर की उलटी बात।
माया को तजि भजे जो, सोई साँच सनाथ॥”

कबीर के राम हृदय के भीतर की ज्योति हैं। वे सबमें हैं, और उनसे मिलना केवल प्रेम, त्याग और आत्मज्ञान से संभव है। उनकी वाणी आज भी हमें यही सिखाती है कि धर्म से नहीं, सच्चे प्रेम और विचारों की गहराई से ही ईश्वर प्राप्त होता है। कबीरदास जी का जीवन और रामभक्ति एक अद्वितीय समन्वय है — जहाँ आध्यात्म, प्रेम, तर्क और सत्य एक साथ चलते हैं।

(मृदुला दूबे योग शिक्षक और ध्यात्म की जानकार हैं ।)

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