‘बिस्कोहर की वसंतसेना’, जाने माने कवि, लेखक और चित्रकार कुमार अनुपम की अप्सराओं, गणिकाओं, तवायफों की एक ऐसी लम्बी मार्मिक काव्यात्मक यात्रा है जो विष्णु पुराण और देवताओं के समय से शुरु होकर, बनारस की सुबह से लेकर अवध की शाम को गुलजार करते हुए, क्रांतिकारियों की पनाहगार बनती हैं तो बदलते समय के साथ वो अलग-अलग कोठों से होते कमाठीपुरा जैसी तमाम बदनाम गलियों में मर- खप जाती हैं। राजकमल से अपनी जल्द प्रकाश्य पुस्तक में अनुपम ने एक स्त्री की देह के व्यापार बनने और उसकी दारुण व्यथा को बड़े ही मार्मिक ठंग से बयान किया है जहाँ ये वसंत सेनाएं सवाल करती हैँ कि उनकी कला की कथा कलंक कथा कैसे बन गईं, किसने उसकी देह को दुकान बना दिया, काम को धंधा किसने बना दिया ? और फिर क्षोभ प्रगट करती हैँ कि सबने उसका रूप देखा, किसी ने उसकी बेबसी नहीं देखी..
कुमार अनुपम की ‘बिस्कोहर की वसंतसेना’ नाम की इस लम्बी काव्य कथा के कुछ अंशों को लेकर जानी मानी कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह ने अपनी अभिकल्पना और निर्देशन से मंच पर एक पूरा महाकाव्य रच दिया, ये एक अंश होते हुए भी प्रस्तुति के लिहाज से एक पूर्णता लिए हुए थी। कहना न होगा कि प्रसिद्द रंगकर्मी/ लेखक सुमन कुमार और नया थिएटर के पुराने कलाकार पुरुषोत्तम भट्ट के कुशल नरेशन, उमाशंकर द्वारा अपनी टीम के साथ कुशल संगीत संयोजन तथा अपनी टीम के साथ कुशल कथक नृत्यांगना प्रतिभा सिंह की प्रतिभा के अद्भुत मिश्रण ने इस काव्य कथा को यादगार बना दिया।
हालांकि सुमन कुमार के नरेशन में एक दो स्थानों पर संगीत चढ़ गया था, तो एक दो स्थानों पर लगा कि गीत के साथ नृत्य बंध भी होता तो और अच्छा रहता तो लगा कि साइक्लो रामा का और प्रयोग किया जा सकता था । वहीं एक स्थान पर पंक्तियों के साथ बनारस के घाट को दिखाने के लिए तर्पण का दृश्य जेल नहीं हो लेकिन इस सबके बावजूद दर्शक पूरे डेढ़ घंटे मंत्रमुग्ध से बैठे रहे, कभी संगीत पर तो कभी कुमार अनुपम की पंक्तियों पर प्रस्तुत हो रहे नृत्य दृश्यों पर करतल ध्वनि करते रहे। यहाँ ये बता दे कि कथक गुरु प्रतिभा सिंह अपनी प्रस्तुतियों में किन्नरों को भी शामिल करने के लिए जानी जाती हैं, जहाँ इस प्रस्तुति का शुभारम्भ किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर जगदम्मा ने किया तो एक किन्नर को भी इस प्रस्तुति में उन्होंने शामिल किया किन्तु उनके द्वारा बिना मेकअप के उतरना समझ नहीं आया।
प्रस्तुति के आरम्भ और अंत में उपस्थिति गणमान्य कलाकर्मियों को अंग वस्त्र और शंख देकर सम्मानित किया गया, इसी दौरान दिल्ली के प्रसिद्द कॉस्ट्यूम सप्लायर डालचंद को ‘आहार्य कला सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
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