पढ़ें, गीता चौबे ‘गूँज’ की लघुकथाओं का संकलन ‘ख्वाहिशें’

आज की पुस्तक चर्चा में गीता चौबे 'गूँज' की लघुकथाओं का संकलन 'ख्वाहिशें '........ इक्कीसवीं सदी की तीसरे दशक में जीवन के सभी क्षेत्र में त्वरित चाहिए सब कुछ. खाना मशीनों की मदद से कम से कम समय में तैयार होता है. विद्यार्थियों को लाइब्रेरी जाकर मोटी किताब पढ़ने में कोई खास रुचि नहीं रह गई है. पिछले दिनों मोटे और लंबे उपन्यास कम लिखे और पढ़े जा रहे हैं . लोगों की रुचि कथाओं में अधिक देखी जा रही है .

पुस्तक के आवरण का अंश
Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: December 24, 2025 11:49 pm

लघु कथाएं पिछले पचास सालों में मुख्य धारा में शामिल हो चुकी है .बहुत सारे हिंदी के महत्वपूर्ण कथाकारों ने लघु कथा को विकसित किया और एक सम्मानित स्थान दिलवाया. लघुकथा को विकसित और लोकप्रिय करने में हिंदी कथाकार डॉ सतीशराज पुष्करणा और सुकेश साहनी का नाम प्रमुखता से आता है.सुकेश तो दशकों से लघुकथा की पत्रिका भी निकालते रहे हैं. इन दोनों ने लघुकथा को एक स्वरूप देने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

लघुकथा में कथातत्व का ,जिज्ञासा का और गति का होना आवश्यक हो जाता है. हालांकि चूंकि लघुकथा में विस्तार नहीं होता इसलिए घटनाएं भी प्रतीक के रूप में ही सही पर होती ज़रूर है. हाल के वर्षों में मॉरीशस के प्रातिष्ठित विद्वान,लेखक डॉ. रामदेव धुरंधर ने हिंदी लघुकथा में अद्भुत नवीन प्रयोग किया है .उन्होंने डेढ़ सौ और दो सौ शब्दों में सैकड़ों लघुकथाएं लिखी हैं.

‘ख्वाहिशें’ गीता चौबे ‘गूँज’ के लघुकथाओं का संकलन है. गीता जी की कहानियों का संग्रह और कविताओं का संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं .स्पष्टतः गीता लेखन के क्षेत्र में अब नई नहीं हैं. प्रस्तुत संग्रह में गीताजी ने अपनी एक सौ एक लघु कथाओं को शामिल किया है. जाहिर है कि इन्होंने और भी बहुत लघु कथाएं लिखी होंगी. इन कथाओं को पढ़कर ऐसा लगता है कि गीता जी ने अपने आस पास बिखरी छोटी छोटी घटनाओं को ही लिपिबद्ध कर लघुकथा का रूप दे दिया है.

इनकी लघुकथाओं में मध्यवर्गीय परिवारों में बिखरी कहानियां अधिक हैं. किसी गृहणी, माँ ,सास की दृष्टि से कहानियों को सामने रखा गया है. कहानियों में पुरानी और नई पीढ़ी के दृष्टिकोण को भी कई जगह दिखाया गया है .विचारों में भिन्नता और एक पीढ़ी को दूसरी पीढ़ी द्वारा स्वीकार करने में होने वाले उलझन को भी सुंदर रूप में दिखाया गया है . कई लघु कथाओं में दुर्घटना से मृत्यु की भी चर्चा की गई है .कभी कभी सायास लेखिका की उपस्थिति और मंतव्य भी स्पष्ट रूप से दीखता है. प्रायः अपनी उपस्थिति को सायास लाने के लोभ से बचना लेखिका के लिए बेहतर होता.

कथाओं के कुछ शीर्षक देखिये : चुप्पी, मतदान, पशुता, नाम, अस्तित्व भूख इत्यादि. बहुत सारी लघुकथाओं में करारा व्यंग्य भी है, कटाक्ष भी है . गीता जी की भाषा प्रांजल है, विषय समसामयिक लिए गए हैं और अपने अनुभव से उन्होंने भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र की भी कहानी उठाई है. संग्रह रोचक और पठनीय है .बहुत छोटी घटनाओं पर गीता जी की पैनी नज़र रही और उसे लिपिबद्ध किया इसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए.

संग्रह: ख्वाहिशें, लेखिका: गीता चौबे ‘गूँज’

पृष्ठ:139, प्रकाशन: बोधि प्रकाशन, मूल्य: रू.150.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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