है क्रम में झारखंड के युवामन कवि(उम्र से बुजुर्ग) विद्याभूषण जी की नवीनतम कविता संग्रह “अथ से इति तक”की चर्चा यहां होगी. इस संग्रह में चुनी हुई पचास कविताएं हैं. लगभग छह दशकों से झारखंड के रांची में रह रहे चौरासी वर्षीय विद्याभूषण जी इस क्षेत्र के भौगोलिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक , वैयक्तिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, समजशास्त्रीय ,आर्थिक और राजनैतिक परिवर्तन के मूक साक्षी रहे हैं. मूक इसलिए कि अपनी सूक्ष्म, गहन दृष्टि से सभी बिंदुओं पर इन्होंने साहित्य में गंभीर विश्लेषण और अभिव्यक्ति तो दी पर मुखर होकर इसे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया, जो वह कर सकते थे.
इस संग्रह की लगभग सभी कविताएं झारखंड प्रदेश की पृष्ठभूमि में ही लिखी गई हैं. कवि यहां की प्रकृति, विरासत, इतिहास और समाज की दुहाई देता और अपनी व्यथा उजागर करता है. दो तीन दर्जन पुस्तकों के रचयिता विद्याभूषण जी के इस संग्रह ‘अथ से इति तक‘ की एक कविता “बिरसा मुंडा के नाम” कविता के इन पंक्तियों को देखिए:-
‘ओ दादा! कब तक हथकड़ियों में बंधे हाथ खड़े रहोगे
वर्षा-धूप-ठंड में एक ठूंठ साल के तने से टिके हुए ?
खूंटी-रांची-हटिया के तिराहे पर तेज रफ्तार गाड़ियों की आवाजाही कब तक देखते रहोगे खामोश ?
किसने तुम्हें भगवान कहा था !
पूजा गृह की प्रस्तर प्रतिमा की तरह राजनीतिक पुरातत्व का अवशेष बना दिया गया है तुम्हें,
जबकि तुम अमृत ज्वालामुखी थे,
जोर-जुल्म के खिलाफ और
‘दिककुओं ‘के शोषण से दुखी थे
” संग्रह की सभी कविताएं अलग अलग मिजाज की ज़रूर हैं पर उन सबों की अंतर्धारा झारखंड से जुड़ी हुई हैं . कविताओं की भाषा रोज़ उपयोग में आनेवाली हिंदी ज़रूर है पर क्षेत्रीय शब्द और भावों ने स्वतः ही अपनी जगह बना ली है. बुजुर्ग कवि की युवा आशावादी सोच उनकी अन्तिम कविता “बदलाव का रास्ता”में साफ दिखाई देती है:
“बदलेंगी स्थितियां आहिस्ता, समझेंगे लोग धीरे -धीरे,
क्रमशः हवा का रूख पलटेगा,
धीमे -धीमे आंच सुलगेगी,
राख हो चुकी अंगीठी फिर दहकेगी ।
” न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित इस कविता संग्रह की छपाई अच्छी है.पुस्तक का आवरण आकर्षक है. पुस्तक पठनीय है और झारखंड को समझने में नई दिशा प्रदान करेगा.
( पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)