लाल नाथ : हंसा तो मोती चुगे… कौआ दाना खाय

भारतीय संत परंपरा की महान धारा में अनेक ऐसे महापुरुष हुए, जिन्होंने अपने जीवन और वचनों से साधकों को दिशा दी। वे केवल उपदेशक नहीं थे, बल्कि स्वयं के अनुभव को जीवन में उतारकर दूसरों के लिए प्रकाश स्तंभ बने। इन्हीं में से एक थे — लाल नाथ।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: September 30, 2025 6:39 pm

नाथ परंपरा के इस संत ने अपने गूढ़ किन्तु सहज वचनों के माध्यम से मनुष्य को आंतरिक सत्य और आत्मा रूपी मोती को पहचानने की राह दिखाई।

ओशो की दृष्टि में लाल नाथ-

ओशो ने लाल नाथ के जीवन को अत्यंत अनूठा बताया। वे कहते हैं कि-

“अवल गरीबी अंग बसै” — यानी जब भीतर का अहंकार, ‘मैं हूँ’ का झूठा भाव समाप्त हो जाता है, तभी आत्मा में एक शीतल शून्यता उतरती है। यही संतत्व की पहली सीढ़ी है।

लाल नाथ के जीवन में भी यह घटना अप्रत्याशित रूप से घटी। न वह किसी गणितीय साधना का परिणाम थी, न ही किसी बाहरी परिस्थिति का। यह एक अनायास अवतरण था — जैसे कि आकाश से एक प्रकाश की किरण उतर आई हो। ओशो कहते हैं, संतत्व और बुद्धत्व का जन्म आत्मसाक्षात्कार से मिलता है।

लालनाथ का सबसे प्रसिद्ध दोहा है:

“हंसा तो मोती चुगे, कौआ दाना खाय।
मोती छाड़ि दाना चुगे, अंधा भेद न पाय।।“

भावार्थ:

हंसा विवेकी साधक का प्रतीक है, जो जीवन के मोती — ज्ञान, भक्ति, सत्य और ध्यान — चुनता है।

कौआ अविवेकी या अंधे मनुष्य का प्रतीक है, जो केवल सांसारिक दानों — भोग, कामना और लोभ — में उलझा रहता है।

जीवन रूपी सागर में मोती बिखरे पड़े हैं, लेकिन अधिकांश लोग उन अनमोल रत्नों को छोड़कर तुच्छ दानों में उलझ जाते हैं।

लाल नाथ बार-बार यही याद दिलाते हैं कि:

जीवन का उद्देश्य केवल भोग-विलास, धन या पद नहीं है। जो व्यक्ति विवेकपूर्वक ज्ञान और आत्मानुभूति के मोती चुनता है, वही सच्चा साधक है। सांसारिक आकर्षण क्षणिक हैं, लेकिन आत्मा का खजाना शाश्वत है।

उनका एक और प्रसिद्ध वचन है:

“लाल कहैं सुन रे मना, कर ले अपना काम।
तू ही तरिहिं भवसागर, जब तू लेहि नाम।।“

इसमें स्पष्ट संदेश है कि — उद्धार बाहर से नहीं, भीतर से होगा। जब मनुष्य स्वयं नाम-स्मरण और साधना करता है, तभी वह भवसागर से पार उतर सकता है।

आज के समय में प्रासंगिकता:

आज की दुनिया में जहाँ मनुष्य दौड़-भाग, प्रतियोगिता और भौतिक उपलब्धियों में ही उलझा है, लाल नाथ का संदेश पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

हम कौए की तरह केवल दानों — धन, पद, प्रतिष्ठा और सुख-सुविधाओं — को चुनने में लगे हैं। परंतु जीवन का असली खजाना तो मोती है — सत्य, करुणा, भक्ति और आत्मज्ञान।

यदि हम हंसा बनकर मोती चुनना सीख लें, तो जीवन का हर पल अनमोल और सार्थक हो सकता है।

लाल नाथ का संदेश केवल भक्ति या साधना का नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। उनका दोहा हमें यह स्मरण कराता है कि:

मोती (ज्ञान) चुनने वाला ही अंततः आनंद और मुक्ति को पाता है।लाल नाथ हमें यही सिखाते हैं — “हंसा बनो, मोती चुनो। तभी जीवन सार्थक होगा।”

(मृदुला दूबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं।)

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