निर्दलीय प्रत्याशी शत्रुघ्न के शत्रुघ्न के पिता भी विधायक रह चुके हैं और उन्हें भरोसा है कि पिता के किए गए विकास कार्यों का लाभ भी उन्हें मिलेगा।
कब कौन जीता
वर्ष 2009 के चुनाव में लोजपा प्रत्याशी जाकिर हुसैन खान को 2,60,240 मत मिले थे जबकि विजेता भाजपा के प्रदीप सिंह को 2,82,742 मत मिले थे। वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा के प्रदीप सिंह को 2,61,474 मत मिले जबकि विजेता राजद के तस्लीमउद्दीन को 4,07,978 मत मिले। इसी तरह से वर्ष 2019 के चुनाव में राजद के सरफराज अहमद को 4,81,993 जबकि विजेता भाजपा के प्रदीप सिंह को 6,18,434 मत मिले। प्रदीप सिंह तीसरी बार जीत के लिए कमर कस चुके हैं। उन्हें अपने विकास कार्यों के साथ मोदी के सफल नेतृत्व का भी भरोसा है। यहां 26 अप्रैल को फारबिसगंज हवाई अड्डे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभा को संबोधित कर चुके हैं।
पूर्व सांसद तस्लीमउद्दीन के बेटे हैं शाहनवाज आलम
शाहनवाज आलम को राजद के आधार वोट का भरोसा है। साथ ही वे इलाके के दिग्गज नेता व पूर्व सांसद तस्लीमउद्दीन के सुपुत्र हैं। वे जोकीहाट के विधायक भी हैं। जाहिर है कि भाजपा और राजद में कड़ा मुकाबला है। शत्रुघ्न के पिता भी विधायक रह चुके है और वे भी चर्चा में हैं।
संसदीय क्षेत्र में एनडीए के अधिक विधायक
अररिया संसदीय क्षेत्र में नरपतगंज, रानीगंज सु., फारबिसगंज, अररिया, जोकीहाट और सिकटी मिलाकर कुल छह विधानसभा सीटें हैं। इसमें चार विधायक एनडीए के हैं। कुल छह विधानसभाओं में तीन पर भाजपा का जबकि जदयू, राजद व कांग्रेस का एक- एक पर कब्जा है।
राष्ट्रीय की जगह स्थानीय मुद्दे उछल रहे
यहां राष्ट्रीय की जगह स्थानीय मुद्दे ज्यादा उछल रहे हैं। वैसे मुद्दे तो कई हैं लेकिन एयरपोर्ट और कार्न प्रोसेसिंग यूनिट सबसे बड़े मुद्दे बन गये हैं। वजहें भी हैं। यहां 153 एकड़ में हवाई अड्डा तो है लेकिन इसका उपयोग मैदान के तौर पर होता है। इलाके के लोग खास तौर से व्यवसायी वर्ग का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बने इस हवाई अड्डे का अगर समुचित उपयोग होने लगे तो अररिया की तो किस्मत बदल ही जाएगी , पड़ोसी देश नेपाल को भी फायदा होगा।
1976 में हुआ जूट मिल का शिलान्यास, आज तक नहीं बना
व्यवसायी प्रकाश गुप्ता ने कहा कि 26 अप्रैल को जब यहां प्रधानमंत्री मोदी चुनावी सभा करने आए थे तो युवाओं के हाथों में तख्तियां थीं जिस पर लिखा था- फारबिसगंज मांगे एयरपोर्ट। दूसरा बड़ा मुद्दा कार्न प्रोसेसिंग यूनिट का है। इसके पीछे यहां की खेती में क्रांतिकारी बदलाव है। दरअसल, यह इलाका जूट की खेती के लिए प्रसिद्ध था। 1976 में फारबिसगंज में जूट मिल का शिलान्यास संजय गांधी के हाथों हुआ तो एक नयी उम्मीद की किरण जगी। दुर्भाग्य रहा कि आज तक यह चालू ही नहीं हो सका और जूट के किसान नेपाल की जूट मिलों के ही भरोसे रहे। लिहाजा जूट की खेती भी घटती जा है।
जूट की खेती की जगह ले ली मक्के की खेती ने
बीस साल में 20 हजार हेक्टेयर से यह घटकर 16 हजार हेक्टेयर के करीब आ चुकी है। दूसरी ओर मक्के की खेती में बंपर वृद्धि हुई है। 20 साल में मक्के की खेती 500 हेक्टेयर से बढ़कर 90 हजार हेक्टेयर पर पहुंच चुकी है। हालांकि मक्के की बंपर पैदावार के बावजूद यहां प्रोसेसिंग यूनिट नहीं रहने से किसानों को खेती का फायदा नहीं मिल रहा है। इसके अलावा बाढ़, कटाव, पलायन, उच्च शैक्षिक संस्थान को भी स्थानीय लोग मुद्दा बनाये हुए हैं। कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के गांव औराही हिंगना को हेरिटेज विलेज का दर्जा देने की मांग भी जोरशोर से हो रही ही है। रेणु के पुत्र पद्म पराग वेणु भी विधायक रह चुके हैं।