शिव की जटाओं में गंगा — ज्ञान और मोक्ष की धारा, जो संसार को पवित्र करती है।
त्रिनेत्रधारी — तीसरी आँख द्वारा वे अज्ञान को जलाते हैं।
वृषभ वाहन (नंदी) — धर्म का प्रतीक।
डमरू और त्रिशूल — सृष्टि और संहार की लय।
भस्म रमाए हुए शरीर — वैराग्य और अनित्यता की शिक्षा।
शिव को अनादि कहा गया है, अर्थात उनका कोई आरंभ नहीं है। वे स्वयंभू हैं — किसी ने उन्हें जन्म नहीं दिया।
शिवलिंग को ब्रह्मा और विष्णु भी नहीं नाप सके — यह दर्शाता है कि शिव समय और स्थान के परे हैं।
सती, दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। जब उनके पिता ने शिव का अपमान किया, सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। बाद में उन्होंने पार्वती के रूप में जन्म लिया और कठोर तपस्या कर पुनः शिव को पति रूप में पाया।
तीन असुरों (त्रिपुरासुरों) द्वारा त्रैलोक्य में आतंक फैलाने पर, शिव ने त्रिपुरांतक रूप में उनका विनाश किया। समुद्र मंथन के समय जब कालकूट विष निकला, जिसे कोई भी नहीं पी सकता था, तो शिव ने उसे ग्रहण किया और अपने कंठ में रोक लिया — इस कारण वे नीलकंठ कहलाए। शिव का अर्धनारीश्वर रूप इस बात का प्रतीक है कि स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं।
भगवान शिव की आध्यात्मिक महिमा:
आदि योगी — शिव को योग का प्रथम गुरु (गुरु पूर्णिमा के मूल) माना गया है।
ध्यान का स्वरूप — शिव ध्यानस्थ मुद्रा में अनंत शांति का प्रतीक हैं।
वैराग्य के आदर्श — वे भोग से परे, भस्म से लिप्त, श्मशान वासी हैं — पर फिर भी करुणामूर्ति हैं।
भक्तों के प्रति शिव की करुणा:
भगवान शिव( Lord Shiva) को भोलेनाथ कहा जाता है क्योंकि वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं — बिना भेदभाव के, चाहे भक्त रावण हो या भील। रावण ने जब शिव को उठाने का प्रयास किया, तो शिव ने उसके अभिमान को तोड़ा, पर बाद में उसकी भक्ति पर प्रसन्न हो कर उसे चन्द्रहास नामक तलवार दी।
1. श्रीराम और शिवजी का संबंध
यह चौपाई श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड से है, जिसमें तुलसीदासजी ने शिवजी और पार्वतीजी के विवाह प्रसंग में शिवजी की महिमा गाई है:
“सियाराममय सब जग जानी। करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी॥”
(बालकाण्ड)
भावार्थ: जो यह जानते हैं कि यह पूरा जगत श्रीराममय है, वे दोनों हाथ जोड़कर सभी में राम के दर्शन करते हुए प्रणाम करते हैं। यह भावना स्वयं शिवजी की है।
2. शिवजी की श्रीराम भक्ति
यह चौपाई श्रीरामचरितमानस के लंका काण्ड में आती है, जब विभीषण श्रीराम की शरण में आते हैं:
“जासु नाम बल संकरु जपही। भूत पिशाच निकट नहिं तपही॥”
(लंका काण्ड)
भावार्थ: जिनके नाम के बल से स्वयं भगवान शंकर जप करते हैं, उनके नाम से भूत-पिशाच भी दूर भागते हैं।
3. शिवजी की वंदना – तुलसीदासजी द्वारा
रामचरितमानस के प्रारम्भ में तुलसीदासजी ने शिव-पार्वती की वंदना की है:
“वन्दौँ प्रथम भगवंत महेसा। जिन मन बचन क्रियामन लेसा॥”
(बालकाण्ड – मंगलाचरण)
भावार्थ: मैं उन आदिदेव भगवान महादेव को वंदन करता हूँ, जिनके मन, वाणी और कर्म में लेशमात्र भी विकार नहीं है।
4. शिवजी का श्रीराम की लीलाओं का वर्णन
जब शिवजी पार्वतीजी को श्रीराम की कथा सुनाते हैं:
“सुनहु सती निज अनुभव मोरा। सत्यमय रामु सर्बत्र थोरा॥”
(बालकाण्ड)
भावार्थ: हे सती! तुम मेरे अनुभव को सुनो, श्रीराम सत्यस्वरूप हैं, वे संपूर्ण जगत में थोड़े-थोड़े (अर्थात सर्वत्र व्याप्त) हैं।
5. राम का शिव भक्ति भाव
श्रीराम स्वयं भगवान शिव का पूजन करते हैं:
“रघुपति कीन्ही बहुत प्रकारा। सिव पूजा करि नृप सुखु पारा॥”
(अयोध्या काण्ड)
भावार्थ: रघुनाथ जी ने अनेकों प्रकार से भगवान शिव की पूजा की और अयोध्या नरेश को महान सुख प्राप्त हुआ।
महाशिवरात्रि — शिव और पार्वती के विवाह का पावन दिन।
श्रावण मास — पूरा महीना शिव को समर्पित।
बारह ज्योतिर्लिंग — भारत के विभिन्न भागों में स्थित हैं: काशी, उज्जैन, सोमनाथ, केदारनाथ, ओंकारेश्वर आदि।
भगवान शिव के अदभुत गुण:
वैराग्य और आत्मसंयम
संहार में भी करुणा
त्याग और सरलता
सत्य की रक्षा के लिए क्रोध भी आवश्यक है।
(मृदुला दूबे योग शिक्षक और ध्यात्म की जानकार हैं ।)
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