महाराष्ट्र सीएम की कुर्सी : बहुत मजबूरी में कुछ नहीं कह रहे एकनाथशिंदे

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई ऊपर से तो शांत दिख रही है लेकिन अंदर खाने बहुत तेज हो गई मानी जा रही है। संख्या बल की बदौलत भाजपा मुख्यमंत्री पर दावा कर पूर्व सरकार में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस का चेहरा आगे ला रही है लेकिन कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे विरोध नहीं करके भी बहुत कुछ कह रहे हैं।

Written By : रामनाथ राजेश | Updated on: November 29, 2024 11:39 pm

महाराष्ट्र सीएम  एकनाथ शिंदे ने मजबूरी में भले ही कह दिया कि उन्हें भाजपा के मुख्यमंत्री पर कोई आपत्ति नहीं हो लेकिन उनकी निराशा दिल्ली में भाजपा नेता अमित शाह के आवास पर एक घंटे से अधिक समय तक चली बैठक के बाद की तस्वीरों में साफ देखी गई।

उन्होंने मुख्यमंत्री पद का निर्णय अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भले ही छोड़ दिया और उनका हर फैसला मंजूर बता दिया लेकिन मुंबई लौटते ही वे सतारा स्थित अपने गांव के लिए रवाना हो गए। जिस महायुति यानि महाराष्ट्र के एनडीए गठबंधन पर शुक्रवार को बैठक होनी थी वह टल गई। इससे माना जा रहा है कि शिंदे रूठे हुए हैं।

अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस की बात की जाए तो महाराष्ट्र में उनके कद का भाजपा के पास कोई नेता है। दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके और महाराष्ट्र के पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे फडणवीस को शिंदे की सरकार में उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करना पड़ा था और अपने विनम्र ओर मृदुभाषी स्वभाव को बदौलत सबके चहेते बने रहे। देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने की संभावना बहुत अधिक है लेकिन ब्राह्मण होने की वजह से भाजपा को अन्य विकल्पों पर भी विचार करना पड़ रहा है।

संख्या बल ने शिंदे को चुप रहने पर विवश कर दिया है। महाराष्ट्र की 288 सीटों में से बीजेपी ने 132 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि बहुमत के लिए मात्र 145 सीटों की जरूरत है। शिंदे गुट की शिवसेना को 57 सीटें मिली है जबकि अजित पवार की एनसीपी को 41 सीटें मिली हैं। इस तरह शिंदे को यदि सरकार में शामिल नहीं भी होते हैं तो भाजपा को सरकार बनाने से नहीं रोक सकते, क्योंकि अजित पवार उप मुख्यमंत्री पद और मंत्रिमंडल में कुछ अतिरिक्त सीटें पाकर ज्यादा खुश रहेंगे।

शिंदे  उद्धव ठाकरे वाली स्थिति में नहीं हैं और वे चाहकर भी विपक्षी खेमे की गोद मैं बैठकर मुख्यमंत्री पद नहीं हासिल कर सकते। इस वजह से राजनीतिक मजबूरी में उन्हें भाजपा नेताओं का फैसला मानना पड़ा है।

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