पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पराशर ऋषि ने सत्यवती को देखा तो उन पर आसक्ति उत्पन्न हुई। सत्यवती ने तीन शर्तें रखीं—
1. कोई उन्हें देख न सके।
2. उनका कौमार्य अक्षुण्ण रहे।
3. उनके शरीर से आने वाली मछली की गंध दूर हो जाए।
पराशर मुनि ने योगबल से घना कोहरा उत्पन्न किया और सत्यवती को वरदान दिया।
इसी दिव्य संयोग से कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ।
वेदों का विभाजन:
महर्षि व्यास ने मानवता के कल्याण हेतु वेदों को चार भागों में विभाजित किय
प्रत्येक वेद को एक-एक शिष्य को सौंपा गया। इसी कारण वे वेदव्यास कहलाए।
साहित्यिक योगदान
महाभारत – विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ (1,00,000 श्लोक)।
अठारह पुराण – जैसे भागवत पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण।
ब्रह्मसूत्र – वेदान्त दर्शन का आधार।
महाभारत को उन्होंने “पंचम वेद” कहा।
श्लोक का भाग देखें ( महाभारत से ):
यदिहास्ति तदन्यत्र, यन्नेहास्ति न तत्क्वचित्।
(जो यहाँ है, वह अन्यत्र भी मिलेगा, और जो यहाँ नहीं है, वह कहीं नहीं मिलेगा।)
शिष्य और वंश :
उनके प्रमुख शिष्य थे – पैल, वैशम्पायन, जैमिनि और सुमन्तु।
उनके पुत्र शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को भागवत पुराण का उपदेश दिया। महर्षि व्यास के आशीर्वाद से ही धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म हुआ।
दिव्य स्वरूप और अवतार:
महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का 18वाँ अवतार माना जाता है। उन्होंने धर्म और ज्ञान की गंगा प्रवाहित की, जो आज भी मानवता का पथ प्रदर्शित करती है।
महर्षि व्यास की वंदना बिना कोई भी धार्मिक ग्रंथ आरंभ नहीं होता।
व्यास स्तुति :
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥
गुरु वंदना (गुरु पूर्णिमा पर गाई जाने वाली)
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
महर्षि वेदव्यास केवल एक ऋषि नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के गुरु हैं। उन्होंने धर्म, ज्ञान और भक्ति का ऐसा दीप जलाया जो आज भी अंधकार को दूर करता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व उनके ही स्मरण में मनाया जाता है। व्यास जी हमें यह शिक्षा देते हैं कि ज्ञान ही सबसे बड़ा धन है, और गुरु ही जीवन का सच्चा पथप्रदर्शक है।
(मृदुला दूबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं।)
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