व्यावसायिक रूप से किसी बड़े प्रतिष्ठान में महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत मयंक मुरारी यदा-कदा कविताएं भी लिखते रहते थे.एक दर्जन सेअधिक किताबों और छह सौ से अधिक लेखों के लेखक मयंक मुरारी जी को राज्य और देश का दर्जनों सम्मान और पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है . उनके कुछ पुस्तकों के नाम देखिये : ‘मानवता और राज्य व्यवस्था”,”झारखंड की लोककथाएं”, ‘माई :एक जीवनी”,”भगवा ध्वज” ,”पुरुषोत्तम की पदयात्रा”इत्यादि .
प्रस्तुत कविता संग्रह के लिए मयंक जी विषय चुना प्रेम. प्रेम एक शास्वत सत्य है. देश, काल, बएस, उम्र, स्थान, परिवेश, परिस्थिति एवं पात्र इत्यादि के कारण प्रेम के रूप में भी परिवर्तन होता रहा है. सभ्यता के प्रारम्भ से ही यदि कोई स्थाई भाव मनुष्य में रहा है तो वह प्रेम ही है. संग्रह का नाम बहुत विशेष है “शून्य की झील में प्रेम ” ! सच है कि शून्य की गहराई में भी यदि कुछ खोजा जा सकता है तो वह प्रेम ही है.
संग्रह में सारी कविताएं ‘रूमानी’ प्रेम पर नहीं बल्कि प्रेम को व्यापक अर्थ में लेकर ही लिखी गई हैं . २१४ पृष्ठ के इस संग्रह में प्रत्येक कविता के अंत में एक संक्षिप्त टिपण्णी भी संलग्न है जो उस कविता के पीछे की दृष्टि की ओर इशारा करती है. बहुत सारे पाठकों को ये टिपण्णी कुछ आदेशात्मक दिशा निर्देश लग सकता है क्योंकि कविता पढ़ने के तुरंत बाद टिपण्णी पढ़कर कविता को स्वतंत्र रूप से जानने समझने की संभावना न्यून हो जाती है. प्रायः जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के नाटकों की तरह एक एक वृहत प्रस्तावना बेहतर विकल्प हो सकता था. सौ से कुछ अधिक छोटी कविताओं के इस संग्रह में जीवन के अलग-अलग प्रसंगों में भी प्रेम को तलाशने का प्रयास किया गया है . कुछ शीर्षक ध्यातव्य है:-तेरा मेरा रिश्ता, मेरे पास आओ ना, अपने मन की गुल्लक में, तुम पत्थर नहीं हो लेकिन, रंग में, सोल जर्नी, मेरे और तेरे बीच, अप्रेम में दूरी, ऊब जाता हूँ तब, फूल विहीन पेड़ इत्यादि. कविताएं रोचक हैं , भाषा उत्तम है पर जैसी चर्चा हो चुकी है इसमें नातिया कव्वाली सुनने जैसा एहसास होता है. पूर्व कथन में लेखिका खुदैजा खान और कवि स्वयं ने भी विश्व भर के दार्शनिकों का उद्धरण देकर प्रेम के उस नैसर्गिक रूप को व्याख्यायित किया है. यह कविता संग्रह एक अलग स्वाद और महक की कविताओं से भरी है, पठनीय है .
पुस्तक : शून्य की झील में प्रेम, कवि: मयंक मुरारी
पृष्ठ:214 ,प्रकाशन वर्ष : 2025, प्रकाशक :राजकमल पेपरबैक , मूल्य:रु 350.
(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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