मन का स्वरूप और एकाग्रता के उपाय

श्रीमद्भगवद्गीता में मन को नियंत्रित करने और इसे एकाग्र करने के विषय में गहरा विवेचन किया गया है। गीता के अनुसार, मन यदि अनुशासित हो तो व्यक्ति को आत्म-कल्याण प्राप्त होता है, और यदि मन अनियंत्रित हो तो यह व्यक्ति के पतन का कारण बनता है।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: February 5, 2025 12:00 am

1. मन का स्वभाव (चंचलता और अशांतता)

श्लोक:
चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम (भगवद्गीता 6.34)

अर्थ:
हे कृष्ण! मन बहुत चंचल, अशांत, ज़िद्दी और अत्यंत बलवान है। इसे वश में करना वायु को रोकने के समान कठिन प्रतीत होता है।

👉 मन हमेशा एक विचार से दूसरे विचार की ओर भागता रहता है। इसे स्थिर करना कठिन होता है, परंतु संभव है।

2. मन का संयम और साधना:

श्लोक:
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥ (भगवद्गीता 6.35)

अर्थ:
हे महाबाहु अर्जुन! निःसंदेह मन को वश में करना कठिन है, परंतु अभ्यास और वैराग्य से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

👉 मन की चंचलता को ध्यान और संयम के द्वारा काबू किया जा सकता है।

3. एकाग्र मन की महत्ता:

श्लोक:
यः तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन् स विचरति॥
(भगवद्गीता 6.15)

अर्थ:
जो व्यक्ति अपने समस्त कर्म मुझे (भगवान) समर्पित करके एकाग्र योग द्वारा मेरा ध्यान करता है, वह सदैव मुझमें स्थित रहता है।

👉 एकाग्रता का मुख्य साधन भगवान का ध्यान और आत्म-समर्पण है।

4. ध्यान से मन को नियंत्रित करना:

श्लोक:
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्॥
(भगवद्गीता 12.12)

अर्थ:
अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है, ज्ञान से ध्यान श्रेष्ठ है, और ध्यान से भी श्रेष्ठ है कर्मफल का त्याग। त्याग से तुरंत शांति प्राप्त होती है।

👉 ध्यान मन को एकाग्र करने का श्रेष्ठ उपाय है। अभ्यास से ध्यान और त्याग से शांति प्राप्त होती है।

5. आत्म-नियंत्रण और सफलता

श्लोक:
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
(भगवद्गीता 6.5)

अर्थ:
मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं अपने द्वारा अपना उद्धार करे, स्वयं को नीचे न गिराए, क्योंकि आत्मा ही मनुष्य का मित्र है और आत्मा ही उसका शत्रु बन सकती है।

👉 स्वयं का आत्म-नियंत्रण ही व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र है, और यदि ये अनियंत्रित हो जाए, तो वही व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।

कैसे मन को एकाग्र करें?

1. ध्यान का अभ्यास करें – रोज़ 10-15 मिनट ध्यान करें।

2. मन को अनुशासित करें – एक समय में एक ही कार्य करें।

3. सकारात्मक जीवनशैली अपनाएं – सात्विक आहार, अच्छी नींद और व्यायाम करें।

4. विकारों को कम करें – लोभ, क्रोध, ईर्ष्या, मोह को दूर करें।

5. प्राकृतिक वातावरण में समय बिताएं – खुली हवा में टहलें और मानसिक शांति पाएं।

निष्कर्ष:

गीता हमें सिखाती है कि मन को वश में करना कठिन है, परंतु अभ्यास और वैराग्य से यह संभव है। ध्यान, संयम और आत्म-अवलोकन से इसे एकाग्र बनाया जा सकता है, जिससे व्यक्ति जीवन में शांति और सफलता प्राप्त कर सकता है।

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