भारतीय एंथ्रोपोलॉजी को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने की आवश्यकता है

कोलकाता स्थित एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में 20 से 23 फरवरी तक ‘इंडियन एंथ्रोपोलॉजी कांग्रेस 2025’ का आयोजन किया गया।

Written By : डेस्क | Updated on: February 25, 2025 9:01 pm

यह आयोजन आईएनसीएए ने एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से किया।

यह विश्व की सबसे बड़ी कांग्रेस है, जिसका उद्देश्य शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को एक साथ लाकर विचार-विमर्श करना तथा अपने शोध निष्कर्षों को साझा करना है।

आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर समापन भाषण दिया। अपने संबोधन में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनजाति समुदायों के अध्ययन की शुरुआत मानवविज्ञानियों के ‘अन्य संस्कृतियों’ के प्रति आकर्षण से हुई।

यह स्पष्ट है कि पश्चिमी दृष्टिकोण भारतीय दृष्टिकोण से काफी अलग है। शुरू में, पश्चिमी मानवविज्ञानी और सामाजिक वैज्ञानिकों ने इन समुदायों को ‘असभ्य’, उसके बाद ‘बर्बर’, फिर ‘आदिम’ और बाद में ‘आदिवासी’ के रूप में वर्गीकृत किया और अंततः उन्हें ‘मूलनिवासी’ (इंडीजिनस) के रूप में संदर्भित किया। इन शब्दों का इस्तेमाल अक्सर मुख्यधारा के समाजों से अलग माने जाने वाले समूहों का वर्णन करने के लिए किया जाता था। जहां तक भारत की बात है, तो इस संदर्भ में वेद, पुराण और उपनिषद् जैसे प्राचीन ग्रंथों से पता चलता है कि पहाड़ों और जंगलों के निवासी मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के साथ एक गहन विश्वदृष्टि, इतिहास, संस्कृति और आस्था को साझा करते हैं। इन दोनों की विश्वदृष्टि, इतिहास, संस्कृति और आस्था में कोई भेद नहीं था।

एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के इस कार्यक्रम में डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने भाषण का समापन करते हुए कहा कि भारतीय मानवशास्त्र (इंडियन एंथ्रोपोलॉजी) के विउपनिवेशीकरण यानी उसे औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त कराने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने भारतीय परिप्रेक्ष्य से मानवशास्त्र के मौजूदा साहित्य की समीक्षा और उसके पुनर्मूल्यांकन के महत्व पर बल दिया तथा पश्चिमी प्रतिमानों से स्वतंत्र नवीन शोध पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

ये भी पढ़ें :-डॉ. सच्चिदानंद जोशी के कहानी-पाठ से शुरू हुआ तीन दिनों का ‘जश्न-ए-अदब’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *