बुधवार को बिहार में नीतीश कुमार सरकार के कैबिनेट का विस्तार किया गया। इस विस्तार में सात नए मंत्रियों ने शपथ ली, और ये सभी भाजपा कोटे से आए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस विस्तार में आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की गई है।
कौन-कौन बने मंत्री?
बिहार कैबिनेट विस्तार में सात नए चेहरे शामिल किए गए। ये विधायक विभिन्न जिलों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं:
जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का संतुलन
इस विस्तार में भाजपा ने विभिन्न जातियों को संतुलित प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की:
यादव समुदाय को नहीं मिली जगह
राजनीतिक जानकारों का मानना था कि भाजपा राजद (RJD) के परंपरागत यादव वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए किसी यादव विधायक को मंत्री बना सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी ने तीन सवर्ण और चार पिछड़ी जातियों के नेताओं को शामिल किया, जिससे संतुलन बना रहे।
मंत्रियों की शिक्षा और संपत्ति का ब्योरा
शिक्षा स्तर:
संपत्ति:
सातों मंत्रियों ने 2020 के चुनावी हलफनामे में अपने ऊपर आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी थी:
कैबिनेट विस्तार के बाद सीटें फुल
बिहार विधानसभा में कुल 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं। इस विस्तार से पहले नीतीश कैबिनेट में 30 मंत्री थे। भाजपा कोटे के दिलीप जायसवाल के इस्तीफे के बाद संख्या घटकर 29 हो गई। अब सात नए मंत्रियों की शपथ के साथ कैबिनेट की अधिकतम सीमा पूरी हो गई है।
भाजपा की रणनीति और चुनावी तैयारी
इस विस्तार में भाजपा ने:
✔️ अगड़ी जातियों और पिछड़ी जातियों का संतुलन साधा
✔️ अपने कोर वोटबैंक (राजपूत, भूमिहार, बनिया) को मजबूत किया
✔️ नीतीश कुमार के कुर्मी वोटबैंक को भी साधा
✔️ EBC (केवट) और OBC (तेली, कुशवाहा) को जगह देकर सामाजिक संतुलन बनाने की कोशिश की
बिहार कैबिनेट विस्तार में भाजपा ने जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की है। यह विस्तार 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। आने वाले समय में देखना होगा कि भाजपा और नीतीश कुमार की जोड़ी राजनीतिक समीकरणों को किस तरह साधती है और जनता का समर्थन कैसे हासिल करती है।
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