पीएम मोदी ने जब ये कहा कि आप भारतभूमि से दूर लेकिन भारतवासियों के दिलों के सबसे करीब हैं तो शुभांशु ने उत्तर दिया कि मेरी अंतरिक्ष यात्रा केवल मेरी नहीं है ये मेरे देश की भी है। शुक्ला ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि परिक्रमा करते हुए हम हर दिन 16 बार सूर्यास्त और इतने ही बार सूर्योदय देखते हैं। हम 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहे हैं। ये बता रहा है कि हमारा देश कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है। वहां की चुनौतियों के बारे में पूछने पर शुक्ला ने बताया कि ग्रेविटी नहीं रहने के कारण सबकुछ तैरते रहता है। अभी बात करते समय पैर बांधे हुए हैं ताकि ऊपर तैर नहीं जाएं। माइक्रोग्रेविटी में बेसिक कार्य जैसे सोना, चलना, पानी पीना बेहद मुश्किल काम है।
पीएम मोदी ने शुक्ला से कहा कि भारत के गगनयान अभियान में, अपना स्पेस स्टेशन बनाने और चंद्रमा पर भारत के एस्ट्रोनॉट्स को उतारने मिशन में शुभांशु आपके अनुभव की मदद की जरूरत होगी तो अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने कहा कि वह वहां के हर अनुभव को स्पंज की तरह अवशोषित कर रहे हैं और भारत के अपने अभियानों में इनका इस्तेमाल करेंगे। युवाओं को संदेश के रूप में शुक्ला ने कहा कहा कि यदि आप अपना भविष्य बनाते हैं तो देश का भविष्य बनेगा। कभी हार मानकर छोड़िये मत, लगातार लगे रहिए सफलता जरूर मिलेगी। स्काई इज नेवर द लिमिट।
प्रधानमंत्री ने वहां किए जाने वाले वैज्ञानिक प्रयोगों के बारे में पूछा तो शुक्ला ने कहा कि भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बात सात यूनिक एक्सपेरिमेंट डिजाइन किए हैं, जिन्हें वो साथ लेकर गए हैं। पहला एक्सपेरिमेंट स्टेम सेल्स के ऊपर है। ग्रेविटी कम होने पर मसल लॉस होता है। एक्सपेरिमेंट ये है कि क्या कोई सप्लिमेंट देकर इस मसल लॉस को रोक सकते हैं या इसकी प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं? ऐसा हुआ तो ओल्ड एज में ये धरती पर मसल लॉस की समस्या को कम कर सकता है। इसके अलावा फूड सिक्योरिटी से जुटा प्रयोग भी है। पीएम ने विनोदी अंदाज में पूछा कि क्या उन्होंने गाजर का हलवा साथियों को खिलाया। शुभांशु ने बताया कि हाँ, वे भारत के स्वाद को साझा करना चाहते हैं।
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