नई दिल्ली: कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन इंडिया ने मंगलवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। विपक्ष ने उन पर सदन की कार्यवाही में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। इस प्रस्ताव पर 50 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर हैं, जिनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद शामिल हैं। प्रस्ताव की प्रति राज्यसभा सचिवालय को सौंपी गई।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने X पर कहा, “इंडिया समूह के सभी दलों ने मजबूरी में यह कदम उठाया है, क्योंकि सभापति बेहद पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्यवाही चला रहे हैं।”
तृणमूल सांसद सागरिका घोष ने इस कदम को लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी बताया। उन्होंने कहा, “संसद की हत्या की जा रही है। हमें जनता के मुद्दे उठाने नहीं दिए जा रहे हैं।”
क्या सफल होगा यह प्रस्ताव?
इस प्रस्ताव के पारित होने की संभावना कम है। तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि विपक्ष के पास राज्यसभा में पर्याप्त संख्या बल नहीं है। प्रस्ताव को पारित कराने के लिए राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सांसदों के साधारण बहुमत (50% + 1) की जरूरत होगी, और फिर इसे लोकसभा में भी पास कराना होगा। मौजूदा स्थिति को देखते हुए, जगदीप धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव का पारित होना लगभग असंभव है। हालांकि, विपक्ष ने इसे सिद्धांतों की लड़ाई बताया है।
संसद में हंगामा और अविश्वास प्रस्ताव की पृष्ठभूमि
इस अविश्वास प्रस्ताव से पहले संसद में भारी हंगामा हुआ। बीजेपी सांसदों ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और उद्योगपति जॉर्ज सोरोस के बीच कथित संबंधों को लेकर हमला बोला। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि उन्हें महंगाई, किसानों के एमएसपी और सांप्रदायिक हिंसा जैसे अहम मुद्दे उठाने से रोका जा रहा है।
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राज्यसभा में कहा कि “सोनिया गांधी और जॉर्ज सोरोस के रिश्ते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं।” कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बयान को झूठा बताया, लेकिन उनके जवाब को हंगामे के कारण बीच में ही रोक दिया गया।
इस मामले में सभापति धनखड़ पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि वे बीजेपी नेताओं को बोलने की अनुमति दे रहे हैं, जबकि विपक्ष की आवाज को दबा रहे हैं। खड़गे ने कहा, “सभापति विपक्ष की बात नहीं सुनते और बीजेपी के आरोपों को बढ़ावा देते हैं।”
हालांकि, संख्या बल के अभाव में विपक्ष का यह प्रस्ताव महज एक औपचारिकता मानी जा रही है।
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