सहयोगियों के प्रति प्रभाष जी ने मन में कभी रंज नहीं रखा : रामबहादुर राय

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के कलानिधि विभाग द्वारा आज ‘जनसत्ता के प्रभाष जोशी’ पुस्तक का लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया गया। पुस्तक का सम्पादन वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक तथा आईजीएनसीए के अध्यक्ष ‘पद्म भूषण’ रामबहादुर राय और संकलन वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा ने किया है।

पुस्तक के लोकार्पण समारोह में राम बहादुर राय [मध्य में] के साथ अन्य गणमान्य लोग
Written By : डेस्क | Updated on: October 16, 2025 11:05 pm

पुस्तक ‘जनसत्ता के प्रभाष जोशी’ का लोकार्पण समारोह 

कार्यक्रम की अध्यक्षता रामबहादुर राय ने की। इस अवसर पर वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार बनवारी जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने आधार वक्तव्य दिया, जबकि विशिष्ट वक्ता के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री एवं भारत सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अशोक वाजपेयी ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम के प्रारम्भिक चरण में आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ ने स्वागत भाषण दिया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में रामबहादुर ने कहा कि ‘जनसत्ता के प्रभाष जोशी’ पुस्तक प्रभाष जी को पुनः याद करने के लिए बनी है। नई पीढ़ी उनको जान सके, पहचान सके, समझ सके, इस उद्देश्य से बनी है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रभाष जी हिन्दी के ऐसे अकेले संपादक थे, जिन्होंने अंग्रेजी अख़बार भी निकाला। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस का चंडीगढ़ संस्करण निकाला, फिर जनसत्ता निकाला। उन्होंने कहा कि अपने सहयोगियों के प्रति प्रभाष जी ने मन में कभी रंज नहीं रखा। वे सहयोगियों को पूरी स्वतंत्रता देते थे। उन्होंने कहा कि प्रभाष जी के जीवन में निरंतरता थी, उस निरंतरता को हम कैसे समझते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। प्रभाष जी ने जो भी लिखा, कभी प्रतिक्रिया में नहीं लिखा, बल्कि पूरे विश्वास के साथ लिखा। प्रभाष जी की ज़रूरत आज भी है और हमेशा रहेगी। वे सफलता के पीछे नहीं गए, वे सार्थकता के पीछे गए।

विशिष्ट अतिथि बनवारी जी ने कहा कि प्रभाष जी जैसे विलक्षण व्यक्ति थे, वैसे व्यक्ति पर प्रकाशित पुस्तक का विलक्षण होना स्वाभाविक है। यह पुस्तक प्रभाष जी का आत्मीय संस्मरण है। यह पुस्तक सुरचित है, सुपठित है और यह बहुपठित भी हो, ऐसी मेरी कामना है। श्री बनवारी ने पत्रकारिता से इतर, प्रभाष जी के जीवन के रोचक पहलुओं के बारे में बताया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनके जीवन और लेखन में निरंतरता है और उनके लेखन के किसी एक कालखंड के आधार पर उनका मूल्यांकन करना उनके साथ अन्याय होगा।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि इस पुस्तक में प्रभाष जी, उनके अलग-अलग आयामों और उनकी पत्रकारिता के विविध आयामों को दर्शाने की कोशिश की गई है। आज जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है, आज जिस तरह के संपादक हम देखते हैं, वैसे में प्रभाष जी के बारे में जानना ऐसा लगता है कि हम किसी परीकथा को जान रहे हैं। लोग पूछेंगे कि क्या ऐसे भी संपादक होते थे! उन्होंने राग-द्वेष सबको परे रखकर, सिर्फ़ पत्रकारिता का धर्म निभाया।

विशिष्ट वक्ता डॉ. अशोक वाजपेयी ने प्रभाष जी की विलक्षण पत्रकारिता पर बात करते हुए कहा कि प्रभाष जी का जो स्थान है, उस पर जितनी चर्चा की जाए, वह कम है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में प्रो. रमेश चंद्र ने स्वागत भाषण में कहा कि यह पुस्तक इसलिए विशेष है कि यह पत्रकारिता के शिखर पुरुष प्रभाष जोशी पर केन्द्रित है। कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन मनोज मिश्रा ने किया। इस चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक राहुल देव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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