राहुल गांधी ने 16 दिनों तक चली इस यात्रा के दौरान 1,300 किलोमीटर की दूरी तय की। यह यात्रा बिहार के 22 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुज़री। यात्रा का मकसद मतदाता अधिकारों और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर जनता को जागरूक करना था।
भाषण और हमले
रैली में राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि “एटम बम” के बाद अब “हाइड्रोजन बम” आने वाला है—यह प्रतीकात्मक टिप्पणी उन्होंने वोट चोरी और लोकतंत्र के ख़तरे की ओर इशारा करते हुए की। तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि बिहार में भ्रष्टाचार और कुशासन की जड़ें इन्हीं से जुड़ी हैं।
मंच पर पप्पू यादव को जगह नहीं
रैली में एक और दृश्य सुर्खियों में रहा। जन अधिकार पार्टी (JAP) प्रमुख पप्पू यादव को मंच पर जगह नहीं दी गई। नाराज़ होकर उन्होंने सड़क पर ही कुर्सी डालकर बैठने का विरोध जताया। यह घटना मीडिया की ख़बरों में प्रमुखता से रही और महागठबंधन की आंतरिक राजनीति पर सवाल खड़े किए।
विपक्ष की ताकत का प्रदर्शन
रैली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जैसे नेताओं की मौजूदगी ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकजुटता का संदेश देने वाला कार्यक्रम बना दिया।
सत्ता पक्ष का पलटवार
इधर, बिहार के उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने इस यात्रा को “नौटंकी” करार दिया। उन्होंने इसे “जंगल राज के दो राजकुमारों” की राजनीति बताते हुए कहा कि कांग्रेस और राजद साथ मिलकर भी राज्य में कोई नया विकल्प पेश नहीं कर पाएंगे।
पटना की इस रैली ने बिहार की सियासत को गरमा दिया है। एक ओर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव लोकतंत्र बचाने और मतदाता अधिकारों का मुद्दा उठाकर भाजपा पर हमलावर दिखे, वहीं सत्ता पक्ष ने इसे महज़ राजनीतिक नाटक बताया। अब देखना ये है कि इस यात्रा का कितना असर आगामी बिहार विधानसभा चुनाव पर पड़ता है।
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