Raid 2 Movie Review: ईमानदारी की लड़ाई में दम है, लेकिन असर थोड़ा कम है

'Raid 2' में अजय देवगन एक बार फिर ईमानदार अफसर अमय पटनायक की भूमिका में नज़र आते हैं। फिल्म में राजनीति, भ्रष्टाचार और ईमानदारी के बीच की जंग को दिखाया गया है, लेकिन इसकी कहानी और ट्रीटमेंट पहले भाग की तुलना में फीका लगता है।

Written By : MD TANZEEM EQBAL | Updated on: May 1, 2025 10:54 pm

📅 रिलीज डेट: 1 मई 2025
रेटिंग: 3 / 5

कहानी का सार:

Raid 2 में अजय देवगन एक बार फिर IRS अधिकारी अमय पटनायक के किरदार में लौटे हैं। इस बार उनका सामना होता है भोज नामक एक काल्पनिक शहर के नेता दादा मनोहर भाई (रितेश देशमुख) से, जो जनता के बीच मसीहा के रूप में पूजे जाते हैं। अमय को शक है कि इस साफ-सुथरे दिखने वाले नेता की सफेदी के पीछे गहरे काले सच छिपे हैं। फिल्म एक बार फिर एक बड़े रेड अभियान की ओर बढ़ती है, जिसमें ईमानदारी, राजनीति और सिस्टम के टकराव को दिखाया गया है।

फिल्म की खास बातें (Positive Points):

  • अजय देवगन ने अपने किरदार में गहराई और गंभीरता बनाए रखी है।
  • फिल्म का सामाजिक संदेश — भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती और सिस्टम में ईमानदारी की जरूरत — अभी भी प्रासंगिक और ज़रूरी है।
  • सौरभ शुक्ला, अमित सियाल और यशपाल शर्मा जैसे सहायक कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं में जान डाली है।
  • कुछ संवाद और कोर्टरूम/रेड के सीन असरदार हैं और फिल्म की पकड़ बनाए रखते हैं।
  • कुछ राजनीतिक संदर्भ (जैसे वी.पी. सिंह का दौर, सोशल जस्टिस बनाम ईमानदारी) फिल्म में सोचने लायक बिंदु जोड़ते हैं।

Raid 2 फिल्म की कमज़ोरियां (Negative Points):

  • कहानी में नयापन की कमी है; पहले भाग जैसी उत्सुकता और रोमांच यहां कम महसूस होता है।
  • रितेश देशमुख को विलेन के रूप में पूरी तरह स्थापित नहीं किया गया — उनका किरदार सतही लगता है।
  • वाणी कपूर और सुप्रिया पाठक जैसी अभिनेत्रियों के रोल सीमित और स्क्रिप्ट से मजबूर लगते हैं।
  • बैकग्राउंड स्कोर कई जगह ज़रूरत से ज़्यादा भारी हो जाता है, जो सीन की गंभीरता से मेल नहीं खाता।
  • फिल्म कई बार सरकारी स्कीम के प्रचार जैसी लगने लगती है, जिससे उसका व्यंग्य और प्रभाव कमजोर पड़ जाता है।

फाइनल निष्कर्ष (Conclusion):

‘Raid 2’ में दमदार एक्टिंग, सशक्त थीम और कुछ असरदार सीन हैं, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती है — पहली फिल्म से तुलना। जहाँ पहली ‘Raid’ सच्चाई और रोमांच का मिश्रण थी, वहीं सीक्वल में वही बात दोहराई गई है लेकिन नयापन कम हो गया है।

फिर भी, यह फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है, खासकर अगर आपको राजनीति और सिस्टम के बीच की टकराहट में रुचि हो

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