राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह की भाषा नज़ाकत भरी थी, दीवाने थे पाठक : डॉ अनिल सुलभ

 हिन्दी के कथा-साहित्य में मुंशी प्रेमचंद्र की भाँति लोकप्रिय हुए महान कथा-शिल्पी राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह की भाषा नज़ाकत भरी थी। उनकी मोहित करने वाली लेखन-शैली ने उन्हें राष्ट्रीय ख्याति दिलाई। उन्हें 'शैली-सम्राट' कहा गया। उनकी झरना-सी मचलती, शोख़ और चुलबुली भाषा ने पाठकों को दीवाना बना दिया था। अपनी कहानियों में उन्होंने समय का सत्य, मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक सरोकारों को सर्वोच्च स्थान दिया।

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह की जयंती पर उन्हें दी गई श्रद्घांजलि अर्पित करते साहित्य सेवी
Written By : डेस्क | Updated on: September 10, 2025 11:24 pm

यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, हिन्दी-पखवारा और पुस्तक चौदास मेला के १० वें दिन, राजाजी की जयंती के अवसर आयोजित समारोह और लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि कहानी किस प्रकार पाठकों को आरंभ से अंत तक पढ़ने के लिए विवश कर सकती है, इस शिल्प को राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह जान गए थे। इसीलिए वे अपने समय के सबसे लोकप्रिय कहानीकार सिद्ध हुए।

सांप्रदायिक सौहार्द के पक्षधर

डा सुलभ ने कहा कि, राजा जी हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द के पक्षधर थे। अपने विपुल साहित्य में भी उन्होंने इसका ठोस परिचय दिया। उनकी कहानियों में उर्दू के भी पर्याप्त शब्द मिलते हैं। उनकी अत्यंत लोकप्रिय रही रचनाओं ‘राम-रहीम’ , ‘माया मिली न राम’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘गांधी टोपी’, ‘नारी क्या एक पहेली’, ‘वे और हम’, ‘तब और अब’, ‘बिखरे मोती’ आदि में इसकी ख़ूबसूरत छटा देखी जा सकती है। उन्होंने गद्य-साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में सार्थक लेखनी से हिन्दी को समृद्ध किया।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि राजा जी यद्यपि राजघराने से थे किंतु उनके साहित्य में ग़रीबों की पीड़ा और समाज की वेदना सबसे प्रखरता के साथ मुखर हुई। उनकी कृतियाँ ‘कानों में कंगना’, ‘दरिद्र नारायण’ और ‘राम रहीम’ की बारंबार चर्चा होती है। उनके संस्मरण भी पढ़ते हुए हृदय में गुदगुदी होती है।

जयंती पर आयोजित हुई लघुकथा-गोष्ठी 

इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में, डा शंकर प्रसाद ने ‘चंद्रशेखर’, डा मधु वर्मा ने ‘बोलती आँखें’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘हम-ख़याल’,विभारानी श्रीवास्तव ने ‘ग़ैरतदार’, प्रो समरेंद्र नारायण आर्य ने ‘संस्कार का महत्त्व’, डा शालिनी पाण्डेय ने ‘सुख’, पूनम कतरियार ने ‘मुक्ति-गाथा’, मीरा श्रीवास्तव ने ‘बदले विचार’, नीता सहाय ने ‘पराया दुःख’, अरविंद कुमार वर्मा ने ‘शंका’ , ईं अशोक कुमार ने ‘भय ही भूत’ तथा इन्दु भूषण सहाय ने ‘दूसरों में ख़ुशी’ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

सुप्रसिद्ध रंगकर्मी अभय सिन्हा, व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, डा प्रेम प्रकाश, रूद्र प्रकाश, ईशा कुमार, दुःख दमन सिंह, मुकेश कुमार, नन्दन कुमार मीत, कुमारी मेनका, रूबी झा, मनीषा कुमारी, उपेंद्र नाथ मिश्र, भास्कर कुमार, प्रिंस कुमार समेत अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

ये भी पढ़ें :-हिन्दी काव्य-साहित्य में तुलसी और भारतेन्दु ही लोकनायक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *