Ram Katha
भारतीय सिनेमा के प्रारंभ से पूर्व हिंदी नाटक मंचित हुआ करते थे, जिनमें आगा हश्र कश्मीरी (1879-1935) और नारायण प्रसाद बेताब (1872-1945) के पारसी नाटकों के अनुकरण पर लिखे गए भारतीय कथाओं पर आधारित नाटक प्रमुख हुआ करते थे। आगा हश्र कश्मीरी ने ‘सीता वनवास’, ‘भगीरथ गंगा’, ‘लव कुश’ और ‘श्रवण कुमार’ तथा नारायण ‘प्रसाद ‘बेताब’ ने ‘रामायण’ नाटक लिखे थे, जो रामकथा से किसी न किसी स्तर पर सम्बद्ध थे और ये सभी अत्यंत सफल हुए थे।
जहाँ तक सिनेमा का प्रश्न है तो भारतीय सिने जगत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’, थी, जिसके नायक महाराज हरिश्चंद्र भगवान राम के पूर्वज थे और कहने की आवश्यकता नहीं कि इस फिल्म ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर सिनेमा को मनोरंजन का सशक्त माध्यम बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभाई थी।
इस अवाक फिल्म की सफलता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय के मशहूर वार्नर ब्रदर्स ने सम्पूर्ण विश्व में रिलीज करने के लिए राजा हरिश्चंद्र फिल्म के 200 प्रिन्ट दादा साहब फाल्के से खरीदने का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया था, किन्तु यह प्रस्ताव दुर्भाग्यवश कार्यरूप में परिणत न हो सका। इससे भी दुखद बात यह हुई कि राजा हरिश्चंद्र फिल्म के प्रिन्ट नष्ट हो गए| इसके बाद दादा साहब फाल्के ने इसी फिल्म को सन 1917 में ‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र’ के नाम से पुनः परदे पर प्रस्तुत किया और यह फिल्म भी सफल रही।
इसके बाद दादा साहब फाल्के इसी वर्ष ‘लंका दहन’ फिल्म लेकर आए, जिसे भारतीय सिनेमा की पहली Ram Katha पर आधारित फिल्म माना जाना चाहिए। इस फिल्म की सफलता की कहानी इस बात से समझनी चाहिए कि चूंकि पहली बार भारत की धर्मप्राण जनता ने अपने आराध्य प्रभु राम, उनकी भार्या सीता और अनुज लक्ष्मण तथा सेवक हनुमान को फिल्मी परदे पर चलते-फिरते देखा था, इसलिए जनता इस फिल्म को देखने के लिए बेचैन थी और प्रायः सभी सिनेमा हॉल हाउसफुल हो गए थे। इस फिल्म के टिकट हासिल करने के लिए कई स्थानों पर दर्शकों में परस्पर लड़ाई हो गई थी और मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा घर में कई बार टॉस से इस बात का फैसला होता था कि इस फिल्म का टिकट किस दर्शक को मिलेगा।
Ram Katha की भारी-भरकम कमाई का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पहली बार किसी फिल्म की कमाई को ढोने के लिए बैलगाड़ी का प्रयोग करना पड़ा था और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सन 1931 से पहले अवाक या मूक फिल्में बन रही थीं, जिन्हें मराठी या उर्दू अथवा हिन्दुस्तानी के कलाकारों द्वारा सिनेमा हॉल में जाकर संगीत और संवाद से सजाया जाता था।
इस Ram Katha के तीन वर्ष पश्चात दादा साहब फाल्के 1920 में ‘सीता स्वयंवर’ फिल्म लेकर आते हैं और सन 1921 में जी.वी. साने की रामकथा पर आधारित तीन फिल्में ‘राम जन्म’, ‘सती सुलोचना’ और ‘वाल्मीकि’ प्रदर्शित होती हैं और तीनों ही सफलता का स्वाद चखती हैं| सन 1923 में दादा साहब फाल्के द्वारा निर्देशित फिल्म ‘राम मारुति युद्ध’ प्रदर्शित होती है। अगले वर्ष 1924 में वे ‘सीता शुद्धि’ और सन 1926 में एक साथ तीन रामकथा आधारित फिल्मों ‘राम राज्य विजय’ ‘धनुर्भंग’ और एवं ‘जानकी स्वयंवर’ एवं सन 1927 में ‘हनुमान जन्म’ और सन 1928 में ‘परशुराम’ फिल्म का निर्माण करते हैं और ये सभी पुनः सफल होती हैं।
सन 1930 में बाबूराव पेंटर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लंका’ प्रदर्शित होती है, अगले वर्ष 1931 से सवाक फिल्मों का दौर शुरू हो जाता है, इस वर्ष कांजीभाई राठौर निर्देशित फिल्म ‘हरिश्चंद्र’ और जे.जे. मदान की ‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र’ प्रदर्शित होती हैं और दर्शकों को लुभाने में सफल होती हैं। इसके बाद अगले वर्ष सन 1932 में एक फिल्म आती है, जिसे हिंदी में ‘अयोध्या का राजा’ और मराठी में ‘अयोध्येचा राजा’ नाम से प्रदर्शित किया जाता है। अपने समय की सुविख्यात प्रभात फिल्म्स कंपनी की यह पहली फिल्म थी।
यह भारत की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे दो भाषाओं में एक साथ प्रदर्शित किया गया था। मशहूर फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की भी यह पहली निर्देशित फिल्म थी। इस फिल्म ने हिंदी और मराठी फिल्मों के दर्शकों के दिलों पर बरसों तक राज किया। देवकी बोस द्वारा सन 1933 में निर्देशित फिल्म ‘रामायण’ और उनके द्वारा निर्देशित अगले वर्ष 1934 में प्रदर्शित ‘सीता’ में पृथ्वीराज कपूर ने राम की भूमिका निभाई थी।
सीता भारत की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे द्वितीय वेनिस फिल्म समारोह’ में प्रदर्शित करने के लिए चयनित किया गया था और इस फिल्म के राम अर्थात पृथ्वीराज कपूर तथा सीता अर्थात दुर्गा खोटे के अभिनय की विश्व भर में भूरि-भूरि सराहना हुई थी और निर्देशक देवकी बोस को इस फिल्म के लिए वेनिस फिल्म समारोह की जूरी द्वारा ऑनरेरी डिप्लोमा से पुरस्कृत किया गया था। सन 1936 में अहमद ईसा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सीता हरण’ में महजबीं ने सीता की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी थी।
रामकथा आधारित फिल्मों की यात्रा में एक नया और महत्त्वपूर्ण मोड़ तब आता है, जब सन 1942 में फिल्म निर्देशक विजयभट्ट ‘भरत मिलाप’ फिल्म लेकर आते हैं और इस फिल्म से हिंदी सिनेमा को चित्रपट के पहले राम के रूप में प्रेम अदीब तथा सीता के रूप में शोभना समर्थ मिलते हैं। विजय भट्ट अगले वर्ष 1943 में इसी जोड़ी के साथ ‘राम राज्य’ एवं 1948 में ‘रामबाण’ फिल्म लेकर आते हैं।
(प्रो. पुनीत बिसारिया बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी में हिंदी के प्रोफेसर हैं और फिल्मों पर लिखने के लिए जाने जाते हैं। वे द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं तथा गोल्डेन पीकॉक इंटरनेशनल फिल्म प्रोडक्शंस एलएलपी के नाम के फिल्म प्रोडक्शन हाउस के सीईओ हैं।)