कनाडा के प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को अपने इस्तीफे की घोषणा की। वे तब तक अपने पद पर बने रहेंगे जब तक पार्टी नया नेता नहीं चुन लेती। यह फैसला कनाडाई राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। ट्रूडो का जाना न केवल कनाडा की राजनीति बल्कि भारत-कनाडा संबंधों के भविष्य पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है।
खालिस्तानी विवाद और भारत-कनाडा संबंधों में तनाव
ट्रूडो का इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब भारत और कनाडा के संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं। खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर ट्रूडो ने भारत सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने दावा किया कि हत्या के पीछे भारत का हाथ है, हालांकि भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। ट्रूडो के पास इस मामले में कोई ठोस सबूत नहीं था, जिससे दोनों देशों के बीच अविश्वास और बढ़ गया।
उनकी विदाई के बाद यह सवाल उठता है कि क्या लिबरल पार्टी का नया नेतृत्व भारत के प्रति ट्रूडो जैसी ही नीति अपनाएगा, या संबंध सुधारने की कोशिश करेगा। वहीं, अगर कंज़र्वेटिव पार्टी सत्ता में आती है, तो विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव संभव है।
व्यापार और आर्थिक सहयोग पर असर
ट्रूडो के नेतृत्व में भारत-कनाडा व्यापार ने नई ऊंचाइयां छुईं। 2024 के अंत तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $8.4 अरब तक पहुंच गया। कनाडा ने भारत को खनिज, पोटाश और रसायन निर्यात किए, जबकि भारत ने फार्मास्युटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और कीमती पत्थरों का निर्यात किया।
ट्रूडो के इस्तीफे के बाद सवाल यह है कि नया नेतृत्व व्यापारिक सहयोग को किस दिशा में ले जाएगा। यदि लिबरल पार्टी सत्ता में रहती है, तो व्यापार संबंध जारी रह सकते हैं। लेकिन अगर कंज़र्वेटिव पार्टी सत्ता में आती है, तो आर्थिक सहयोग को नई प्राथमिकताएं दी जा सकती हैं, जिनका उद्देश्य तनाव कम करना हो सकता है।
खालिस्तान मुद्दे पर ट्रूडो की विवादित भूमिका
ट्रूडो पर लंबे समय से यह आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने कनाडा में खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा दिया। हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद भारत पर लगाए गए उनके आरोप इस विवाद को और गहराते गए। भारत ने कनाडा से स्पष्ट कहा था कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए न होने दे।
ट्रूडो के इस रुख से भारत-कनाडा के बीच केवल कूटनीतिक दूरियां ही बढ़ीं। उनके जाने के बाद यह देखना होगा कि नया नेतृत्व इस मुद्दे को कैसे संभालता है।
भारतीय समुदाय और आव्रजन नीतियों का प्रभाव
कनाडा में लगभग 4.27 लाख भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन ट्रूडो सरकार की नीतियां उनके लिए मुश्किलें लेकर आईं। स्टडी डायरेक्ट स्ट्रीम (SDS) वीज़ा कार्यक्रम को बंद करना और अंतरराष्ट्रीय छात्र परमिट में 35% कटौती करना भारतीय समुदाय के लिए चिंता का विषय बन गया।
कंज़र्वेटिव नेता पियरे पोइलीवरे का आव्रजन पर सख्त रुख भारतीय समुदाय को और प्रभावित कर सकता है। उन्होंने “योग्य छात्रों और कुशल कामगारों” को प्राथमिकता देने की बात कही है, जो भारतीय छात्रों और कामगारों के लिए नई चुनौतियां पेश कर सकता है।
आगे की राह
जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा कनाडा की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है। भारत-कनाडा संबंधों के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और आर्थिक महत्त्व को देखते हुए, कनाडा के अगले प्रधानमंत्री के लिए यह जरूरी होगा कि वे व्यापार, आव्रजन और कूटनीति में संतुलन बनाएं।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि लिबरल पार्टी का नया नेता भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में कदम उठाएगा या नहीं। साथ ही, अगर कंज़र्वेटिव पार्टी सत्ता में आती है, तो क्या दोनों देशों के बीच व्यापारिक और कूटनीतिक तनाव कम होगा? भारत और कनाडा दोनों की नजरें अब इस राजनीतिक बदलाव पर टिकी हुई हैं।
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