ऋषि विश्वामित्र : गायत्री मंत्र के रचयिता के जानें और योगदान

विश्वामित्र की यात्रा क्षत्रिय राजा से ब्रह्मर्षि बनने तक संघर्ष और तपस्या की प्रेरक गाथा है.

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: December 31, 2024 11:38 pm

ऋषि विश्वामित्र भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास के महान ऋषि माने जाते हैं। उनका जीवन त्याग, तपस्या और ज्ञान का अनूठा उदाहरण है। क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बनने की उनकी यात्रा अद्वितीय है और मानव प्रयास की असीम संभावनाओं को दर्शाती है।

ऋषि विश्वामित्र का परिचय:

ऋषि विश्वामित्र का जन्म कौशिक वंश में हुआ था। उनके पिता राजा गाधि थे, जिसके कारण उनका मूल नाम ‘कौशिक’ पड़ा। “विश्वामित्र” का अर्थ है “संपूर्ण विश्व का मित्र।” प्रारंभ में वे एक पराक्रमी राजा थे, लेकिन जीवन की एक घटना ने उन्हें राजसत्ता छोड़ तपस्वी बनने के लिए प्रेरित किया।

क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बनने की यात्रा:

विश्वामित्र की यात्रा क्षत्रिय राजा से ब्रह्मर्षि बनने तक संघर्ष और तपस्या की प्रेरक गाथा है।

वशिष्ठ के साथ विवाद:

एक बार विश्वामित्र ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने कामधेनु गाय देखी और उसे प्राप्त करने की इच्छा की। वशिष्ठ ने कहा कि आध्यात्मिक शक्ति शारीरिक बल से श्रेष्ठ है। यह बात सुनकर विश्वामित्र ने राजसी जीवन त्याग दिया और साधना में लग गए।

दोहा:

शक्ति नहीं तप बल बड़ा, कहे वशिष्ठ सुविचार।

क्षत्रिय से ब्राह्मण बने, विश्वामित्र उदार।

तपस्या और उपलब्धियां

1. गायत्री मंत्र की रचना:

ऋषि विश्वामित्र ने वेदों का सबसे पवित्र मंत्र ‘गायत्री मंत्र’ दिया, जो आज भी हर युग में प्रासंगिक है:

ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं।

भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।

2. त्रिशंकु स्वर्ग:

उन्होंने अपनी शक्ति से राजा त्रिशंकु के लिए स्वर्ग का निर्माण किया। यह उनकी अद्भुत योगशक्ति का प्रमाण है।

3. रामायण में योगदान:

रामायण में वे भगवान राम के गुरु के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने राम और लक्ष्मण को धनुर्विद्या सिखाई और राक्षसों का वध करने की शिक्षा दी।

4. तपस्या की परीक्षा:

देवताओं ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए अप्सरा मेनका को भेजा। हालांकि मेनका के साथ उनका एक पुत्र ‘शकुंतला’ का जन्म हुआ, लेकिन इस घटना ने उनके तप को @और दृढ़ बना दिया।

ब्रह्मर्षि बनने की परीक्षा:

ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मर्षि मानने से कई बार इनकार किया। अंतिम परीक्षा में विश्वामित्र ने क्रोध और अहंकार का त्याग कर अपने तप की पूर्णता प्राप्त की। वशिष्ठ ने अंततः उन्हें ‘ब्रह्मर्षि’ की उपाधि दी।

दोहा:

तप से सिद्धि मिली उसे, जो संयम साधे।

विश्वामित्र को ब्रह्मर्षि, वशिष्ठ ने आदे।।

ऋषि विश्वामित्र का महत्व

1. आध्यात्मिक संदेश

उन्होंने सिखाया कि मनुष्य अपने पुरुषार्थ और तपस्या से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

2. साहित्य में योगदान

उन्होंने भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने वाले कई धार्मिक और दार्शनिक ज्ञान दिए।

3. आदर्श तपस्वी

वे तप, संयम और आत्मबल के प्रतीक हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

निष्कर्ष

ऋषि विश्वामित्र का जीवन त्याग और तपस्या की प्रेरणादायक कथा है। उनकी गाथा सिखाती है कि साधारण मनुष्य भी असाधारण लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। भारतीय धर्म और संस्कृति में उनका योगदान सदैव अनुकरणीय रहेगा।

दोहा:

तप से सिद्धि कीजिए, गुरु वचनों में रम।

विश्वामित्र सम बन सकें, जीवन तप से तम।।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु हैं।)

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