ऋषि जमदग्नि का जीवन रहा कठोर अनुशासन का प्रतीक

भारतीय ऋषि परंपरा में ऋषि जमदग्नि एक विलक्षण तपस्वी, ब्रह्मज्ञानी और धर्म-प्रवर्तक माने जाते हैं। वे भृगु वंशीय महर्षि ऋचीक और सत्यवती के पुत्र थे। उनके पुत्र भगवान परशुराम थे, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: June 24, 2025 8:55 pm

ऋषि जमदग्नि का जीवन तप, त्याग, धर्म और कठोर अनुशासन का प्रतीक है। उनका आश्रम नर्मदा या रेवा नदी के तट पर स्थित था, जहाँ वे वेदाध्ययन, यज्ञ और ब्रह्मचर्य की शिक्षा दिया करते थे

महर्षि जमदग्नि ने घोर तप से कामधेनु गाय प्राप्त की थी। वह ऐसी चमत्कारी गाय थी जो यज्ञों में उपयोगी सभी सामग्री उत्पन्न कर सकती थी।

मंत्र (कामधेनु स्तुति):
“कामधेनुं नमस्यामि सर्वकामप्रदायिनीम्।
सर्वमङ्गलदायिन्यै नमः सुरभ्यै नमो नमः॥”

एक बार हैहय वंशी राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन ने आश्रम आकर उस कामधेनु को देखा और बलपूर्वक ले गया। परशुराम ने अपने पिता के सम्मान और धर्म की रक्षा हेतु अर्जुन का वध कर दिया।

2. माँ रेणुका की परीक्षा और परशुराम की भक्ति:

देवी रेणुका अत्यंत पतिव्रता और शुद्ध थीं। वे प्रतिदिन नदी से जल लाकर यज्ञशाला की अग्नि शुद्ध करती थीं। एक दिन उनके मन में जल में क्रीड़ा करते गंधर्व को देखकर एक क्षणिक विकार आया। योगबल से यह ऋषि को ज्ञात हो गया।

क्रोधित जमदग्नि ने अपने पुत्रों को आदेश दिया:
“अपवित्र हुई माता का वध करो।”
सबने मना किया, परंतु परशुराम ने आज्ञा पालन किया।

दोहा:
“आज्ञा माने जो पितु की, वह सच्चो पुत्र कहाय।
धर्म हेतु जो कठिन हो, ताहि सहज निभाय॥”

जमदग्नि ऋषि ने परशुराम को वर माँगने को कहा। उन्होंने माँ को पुनर्जीवित करने का वर माँगा। यह कर्तव्य, करुणा और क्षमा का अनुपम उदाहरण है।

बाद में, अर्जुन के पुत्रों ने परशुराम की अनुपस्थिति में आश्रम पर हमला किया और जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी। रेणुका विलाप करती रहीं

रेणुका का विलाप:
“हे तप के पुंज, हे धर्म के सूर्य, अब मैं कैसे जीवित रहूँ?”

जब परशुराम लौटे, तो उन्होंने प्रतिज्ञा की:
“मैं इस धरती से अधर्मी क्षत्रियों का नाश करूँगा!”

और उन्होंने 21 बार पृथ्वी पर क्षत्रियों का संहार किया।

तप, आज्ञा, विवेक और धर्म के चार स्तंभ: हैं।

तपस्या से शक्ति मिलती है, पर विवेक बिना वह शक्ति विनाशकारी हो सकती है।

आज्ञा का पालन आवश्यक है, पर धर्म के साथ संतुलन भी जरूरी है।

माता-पिता के प्रति समर्पण और कर्तव्य के मार्ग पर डटे रहना ही सच्चा धर्म है।

मूल शिक्षा :
तप से ऊँचा नहीं कुछ, न धन, न बल, न नाम।
जिनके तप से थर्र उठे, त्रिलोक और ब्रह्मधाम॥

ऋषि जमदग्नि की कथा केवल एक पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ सत्यों को प्रकट करती है—
– तप और तेज का संयम,
– पितृभक्ति की पराकाष्ठा,
– न्याय की धार और
– अधर्म से संघर्ष की भावना।

उनका जीवन हमें सिखाता है कि सत्य, संकल्प और साधना ही मनुष्य को ऋषित्व की ओर ले जाते हैं।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं।)

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