भारत के सपूत : जानें महाराणा प्रताप की पूरी कहानी

भारत देश में अनेक वीरों ने जन्म लेकर आजादी दिलाई है। महाराणा प्रताप, मेवाड़ के महान योद्धा और स्वतंत्रता के प्रतीक, भारतीय इतिहास के ऐसे नायक हैं जिनकी वीरता और देशभक्ति आज भी प्ररेणा देती है। उनका जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था। वे उदयपुर के राजा महाराणा उदयसिंह द्वितीय और रानी जयवंता बाई के पुत्र थे।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: December 18, 2024 12:05 am

महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास में इसलिए स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है क्योंकि उन्होंने कभी भी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। मुगल सम्राट अकबर ने कई बार उन्हें संधि के लिए प्रस्ताव भेजा, लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए हर बार इसे ठुकरा दिया।

“जो दूध राणा रो खात न कंठ धरू हूं,
जो राज राणा रो खात न मोल करू हूं।”
(राणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण भी न्योछावर करने का संकल्प लिया।)

हल्दीघाटी का युद्ध (1576)

18 जून 1576 को हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया, जिसमें महाराणा प्रताप और अकबर की सेना आमने-सामने थीं। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से 20,000 सैनिक थे, जबकि अकबर की ओर से 80,000 सैनिक। महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक की वीरता इस युद्ध में अमर हो गई। चेतक ने घायल अवस्था में भी महाराणा को युद्धभूमि से सुरक्षित निकाला। यह युद्ध ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए संघर्ष का प्रतीक स्थापित किया।

“जागो फिर एक बार, रणभेरी पुकार रही।”

“चेतक के कदमों में, भूमि अंगार रही।”

चेतक का बलिदान:

हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान चेतक ने महाराणा को दुश्मनों से बचाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। वह घायल अवस्था में 26 फीट चौड़ी नदी पार कर गया और उसके बाद प्राण त्याग दिए।

“राणा रो चेतक घोड़ो, रण को अजब साज।
रख राख्यो मेवाड़ को, कर गयो बलिदान।”

वनवास और संघर्ष:

हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को जंगलों में आश्रय लेना पड़ा। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में जीवन बिताया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। उनकी पत्नी और बच्चों ने भी घास की रोटियां खाकर दिन बिताए। यह संघर्ष उनके जीवन के स्वाभिमान और दृढ़ निश्चय का परिचायक है।

“घास की रोटी खाई, पर अकबर को शीश न झुकाया।”

उदयपुर की पुनः विजय:

महाराणा प्रताप ने धीरे-धीरे अपनी सेना को संगठित किया और मेवाड़ के अधिकांश हिस्सों को मुगलों से वापस जीत लिया। उनका जीवन संघर्ष और स्वतंत्रता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का अद्वितीय उदाहरण है।

मृत्यु और विरासत :

महाराणा प्रताप का देहांत 19 जनवरी 1597 को हुआ। अपने अंतिम समय तक वे स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे। उनकी वीरता, त्याग और स्वाभिमान आज भी प्रेरणादायक हैं।

“नहीं झुका, नहीं रुका, नहीं थका जो।
रणभूमि में अमर हुआ प्रताप वो।”

महाराणा प्रताप न केवल एक राजा थे, बल्कि स्वतंत्रता के लिए जूझने वाले हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा हैं। उनकी कहानी हमें आत्मसम्मान, त्याग, और देशभक्ति की शिक्षा देती है।

(मृदुला दुबे योग प्रशिक्षक और आध्यामिक गुरु हैं।)

ये भी पढ़ें :-लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पेश, विपक्ष ने किया विरोध

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *