हिंदी दिवस यानी पूरी तरह हिंदियाने का दिन। सौ फीसदी हिंदीपने से सोने-जागने, उठने-बैठने, खाने-पीने, चलने-फिरने और एकदूसरे को शुभकामनाएं देने का दिन। आज आप निःसंकोच हिंदीमय तरीके से सोच-विचार सकते हैं। उसी ठसक से अंगड़ाई और जम्हाई लेने की भी खुली छूट है। कोशिश करें कि आप सुबह से ही मोहल्ले में कुछ-कुछ हिंदी प्रेमी जैसे दिखें भी। बोलें तो लगे जैसे हिंदी के शब्दों की फुहार पड़ रही है। हिंदी के रस बरस रहे हैं। एक दिन के लिए ही सही अंग्रेजी जल भुनकर रह जाए।
हिंदी बड़ी भाग्यशाली
हर साल हिंदी दिवस आने के 15 दिन पहले से ही माहौल में हिंदी-हिंदी की आवाजें आनी लगती हैं। कोई हिंदी माह मनाने को तैयार तो कई हिंदी पखवाड़ा या हिंदी सप्ताह के आयोजन की जुगत में व्यस्त। कुछ न हो पाया तो हिंदी दिवस तो मनाकर ही छोड़ेंगे। हिंदी बड़ी भाग्यशाली है। दुनिया की और किसी भाषा को यह सौभाग्य नहीं मिला है कि उसकी शान में दिवस मनाया जाता हो।
बड़ी उदार है हिंदी
दूसरी भाषाओं की तुलना में हिंदी बड़ी उदार है। साल भर उसे पीटते रहो कोई बात नहीं। Hindi Diwas पर केवल एक दिन याद कर लो, बस बेचारी इसी में खुश। साल भर का कोटा पूरा। हिंदी की विशेषता है कि इसके शब्दों को आप चाहे जैसे बोल सकते हैं और चाहे जैसे लिख सकते हैं। अगर विद्वान टाइप कोई व्यक्ति गलत ठहराए तो आप कह सकते हैं कि हमारे यहां यही बोला या लिखा जाता है, यही सही है। फिर उसकी बोलती बंद हो जाएगी।
कुछ भी लिखो, सब सही
मैं एक हिंदी विद्वान से पूछ बैठा कि दंपति, दंपत्ति या दंपती में कौन सा शब्द सही है, वह लंबी सांस खींचकर बोले- जो अच्छा लगे लिख दो, सब सही हैं। सभी लिखे जा रहे हैं। हजारों शब्द अपने-अपने हिसाब से बोले और लिखे जाते हैं। कहीं दही खट्टी होती है तो कहीं खट्टा, कहीं ट्रक पलटता है तो कहीं पलटती है। एक बड़े ब्रांड के दूध की बोतल पर लिखा होता है- दूध कढ़ाई। अब वह कड़ाही को कढ़ाई लिख रहा तो कोई क्या कर लेगा। इसलिए हिंदी के शब्दों की वर्तनी के चक्कर में ज्यादा नहीं पड़ना चाहिए। क्या फर्क पड़ता है। बस लगना चाहिए कि हिंदी जैसा कुछ है।
हिंदी की ताकत और Hindi Diwas
हिंदी में बोलते या लिखते समय हिंदी का शब्द याद न आए तो किसी भी अन्य भाषा के शब्द को आराम से इस्तेमाल कर सकते हैं। हिंदी का बड़े नाम वाला एक अखबार तो शीर्षकों में अंग्रेजी शब्दों को ठेलकर हिंदी को लगातार नई ऊंचाई पर ले जा रहा है। संपादक भी खुश कि लोग अंग्रेजी शब्दों के बहाने कुछ-कुछ हिंदी भी सीख रहे हैं। राजभाषा की सेवा भी हो रही है। हिंदी की ताकत उसकी गालियाों में दिखती है। अंग्रेजीपने से भरपूर शिष्टाचार वाले दफ्तरों में जब बॉस किसी कर्मचारी को डांटता है तो हिंदी की गालियों का ही उच्चारण करता है। साला जैसी छोटी गाली के मुकाबले में दुनिया की किसी भी भाषा में इतनी मारक क्षमता वाला शब्द नहीं मिल सकता है। इसलिए भाइयो, आज हिंदी दिवस पर कुछ नहीं तो एकदूसरे को शुभकामनाएं तो दे ही देना। लगे हाथ मेरी शुभकामनाएं भी ले ही लीजिए।