अध्यात्म : नश्वरता के बोध से ही मिटेगा मोह और मिलेगी शांति

गौरव एक युवा व्यवसायी था, जो महत्वाकांक्षा और सफलता की दौड़ में निरंतर भाग रहा था। वह दिन-रात मेहनत करता, नए-नए लक्ष्य बनाता और उन्हें पाने के लिए खुद को झोंक देता। हर उपलब्धि के बाद उसे लगता कि अभी और अधिक पाने की जरूरत है—अधिक धन, अधिक प्रतिष्ठा, और अधिक ऐशो-आराम। लेकिन जितना वह पाता, उतना ही अधूरा महसूस करता।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: March 18, 2025 10:50 pm

एक रात, थकान से चूर होकर, वह अपने आलीशान बंगले की बालकनी में बैठा था। चांदनी रात थी, लेकिन उसे उस शांति का अनुभव नहीं हो रहा था। उसे लगा कि कहीं न कहीं कुछ कमी है, कोई गहरी बेचैनी जो हर उपलब्धि के बाद भी नहीं मिटती ।एक दिन, उसके एक मित्र ने उसे एक प्रसिद्ध संत के बारे में बताया, जो पास के आश्रम में रहते थे। गौरव को लगा कि शायद वहाँ जाने से उसे अपनी उलझन का कोई हल मिल सके। संत अत्यंत सरलता से एक कुटिया में रहते थे। जब गौरव ने अपनी बेचैनी और अधूरेपन की भावना उनके सामने रखी, तो संत मुस्कराए और बोले,”यदि तुम सच में शांति चाहते हो, तो इस संसार की नश्वरता को समझो।”

गौरव ने पूछा, “कैसे?”

संत ने पास रखी एक कांच की सुंदर कटोरी उठाई और उसे गौरव को देते हुए कहा, “इसे अपने पास रखो, इसका ध्यान रखना, लेकिन याद रखो—यह नश्वर है।”गौरव ने कटोरी को बड़े प्रेम से संभाल लिया। उसे यह समझ नहीं आया कि संत ने ऐसा क्यों कहा, लेकिन वह कुछ दिनों तक इस पर विचार करता रहा।

नश्वरता की अनुभूति:

हर दिन, जब भी वह कटोरी को देखता, उसे संत के शब्द याद आते

—”यह नश्वर है।” धीरे-धीरे उसका मोह कटोरी से कम होने लगा। पहले वह इसे बहुत संभालकर रखता था, लेकिन अब उसे लगने लगा कि यदि यह कभी टूट भी जाए, तो इसमें चिंता करने जैसा कुछ नहीं है। एक दिन, अनजाने में उसके हाथ से कटोरी गिर गई और टुकड़ों में बिखर गई। पहले तो उसे हल्का दुख हुआ, लेकिन तुरंत ही संत के शब्द उसके मन में गूंज उठे—”यह नश्वर था।” और अचानक, उसे एक अजीब सी शांति का अनुभव हुआ।

उसने सोचा, “यदि यह कटोरी नश्वर थी, तो क्या नश्वरता का यह सिद्धांत बाकी चीज़ों पर भी लागू होता है?” वह अपने व्यापार, धन, प्रसिद्धि और यहाँ तक कि अपने रिश्तों के बारे में सोचने लगा। उसे एहसास हुआ कि सब कुछ अस्थायी है—संपत्ति, सफलता, लोग, भावनाएँ—सब कुछ एक दिन खत्म हो जाएगा।

परिवर्तन का प्रारंभ:

अगले ही दिन वह फिर संत के पास गया और बोला, “गुरुदेव, मैं समझ गया! हर चीज़ अस्थायी है, फिर हम इनसे इतना क्यों चिपकते हैं?”

संत मुस्कराए और बोले,

“जब तुमने यह समझ लिया, तभी से तुम्हारी मुक्ति का द्वार खुल गया। अब जीवन को स्वीकार करो, बिना मोह और क्रोध के।” गौरव ने पूछा, “लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि हम जीवन में कोई लक्ष्य ही न रखें?”

संत बोले, “नहीं, लक्ष्य बनाना और मेहनत करना गलत नहीं है। लेकिन उनसे चिपकना, उन पर अपनी शांति और सुख को निर्भर करना, यही दुख का कारण है। जब तुम यह समझ जाओगे कि सफलता और असफलता दोनों ही अस्थायी हैं, तो तुम उन्हें स्वीकार कर सकोगे—बिना अहंकार और बिना निराशा के।”

एक नया दृष्टिकोण:

नश्वरता को समझने के बाद उस दिन से गौरव का जीवन बदल गया। उसने व्यापार करना बंद नहीं किया, लेकिन अब वह सफलता के पीछे पागल नहीं था। उसे जब भी उपलब्धि मिलती, वह उसे स्वीकार करता, लेकिन उस पर अहंकार नहीं करता। यदि कभी असफलता मिलती, तो वह दुखी नहीं होता, बल्कि इसे जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा मानता। धीरे-धीरे, वह अधिक शांत और संतुलित व्यक्ति बन गया। उसकी ऊर्जा अब केवल धन और प्रसिद्धि के पीछे नहीं दौड़ रही थी, बल्कि आत्मविकास और आंतरिक शांति की ओर भी प्रवाहित हो रही थी।

एक दिन, उसके एक मित्र ने पूछा, “तुम पहले की तरह महत्वाकांक्षी क्यों नहीं दिखते? क्या तुमने सपने देखना छोड़ दिया?”गौरव मुस्कराया और बोला, “मैं अभी भी सपने देखता हूँ, लेकिन अब मैं जानता हूँ कि वे भी नश्वर हैं। इसलिए मैं उनके पीछे भागता नहीं, बल्कि उन्हें सहजता से जीता हूँ।”

विपासना शिविर में अनित्यता का बोध जगाने का अभ्यास कराया जाता है। शरीर पर हो रही संवेदना को साक्षी होकर देखते हैं क्योंकि प्रत्येक संवेदना अनित्य स्वभाव वाली होती है। सुखद और दुखद दोनों ही संवेदना कुछ समय बाद बदल ही जाती हैं। ऐसा अनुभव कर चित्त की समता पुष्ट होती है।

निष्कर्ष:

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। सफलता, असफलता, सुख, दुख—सब कुछ नश्वर है। जब हम इस सत्य को गहराई से समझ लेते हैं, तो हम जीवन को सहजता से जीने लगते हैं, बिना अत्यधिक मोह और बिना अनावश्यक चिंता के। यही सच्ची शांति और मुक्ति का मार्ग है।

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