ऋषियों का क्रोध: केवल आवेग नहीं, बल्कि चेतावनी
1. दुर्वासा ऋषि का क्रोध – क्षणिक, पर गहन परिणाम देने वाला
प्रसंग: अम्बा, द्रौपदी, इंद्राणी — अनेकों को उन्होंने शाप दिए।
शिक्षा : वाणी और व्यवहार में विनम्रता आवश्यक है। कोई भी तपस्वी हो या राजा, अनुशासन तोड़ने पर परिणाम निश्चित हैं। क्षमा माँगने और नम्रता से ही शाप से भी वरदान निकले हैं।
2. वशिष्ठ ऋषि का क्रोध – जब तप का अपमान हो
प्रसंग: राजा विश्वामित्र ने कामधेनु को बलात् लेने का प्रयास किया।
क्रोध में: वशिष्ठ ने ब्रह्मदंड से विश्वामित्र की सेना को भस्म कर दिया।
शिक्षा: तप और धर्म की रक्षा के लिए संन्यासी भी वीर बन सकते हैं। बाहुबल के आगे ब्रह्मतेज की शक्ति अधिक होती है।
3. विश्वामित्र ऋषि का क्रोध – अहंकार और आत्मग्लानि से उपजा
प्रसंग: अपनी तपस्या में बाधा डालने वालों से, या त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने की ज़िद में
शिक्षा: जब क्रोध अहंकार से जुड़ जाता है, तब वह साधक को भ्रमित कर सकता है। विश्वामित्र का जीवन सिखाता है कि तपस्या ही अंततः शांति लाती है, क्रोध नहीं।
4. जमदग्नि ऋषि का क्रोध – धर्मपालन का कठोर रूप
प्रसंग : पत्नी रेणुका के मन में क्षणिक चंचलता देख, उन्होंने पुत्र परशुराम से वध करवा दिया।
शिक्षा : धर्म का पालन तपस्वी के लिए सर्वोच्च होता है, चाहे वह कठोर हो। परशुराम की आज्ञाकारिता और फिर पुनर्जीवन की कृपा, क्षमा का संदेश देती है।
5. भृगु ऋषि का क्रोध – परीक्षा स्वरूप
प्रसंग : भगवान विष्णु की परीक्षा हेतु पैर से आघात देना।
शिक्षा: भावों की शुद्धता और मर्म को समझने वाला ही सच्चा ईश्वर है। क्रोध कभी-कभी परीक्षण भी होता है, प्रतिक्रिया नहीं।
6. परशुराम का क्रोध – अन्याय के विरुद्ध युद्ध
प्रसंग : पिता की हत्या के पश्चात धरती को क्षत्रियों से 21 बार मुक्त किया।
शिक्षा: अन्याय के विरुद्ध प्रतिकार आवश्यक है, परंतु प्रतिशोध में न्याय का संतुलन न टूटे। परशुराम की कथा क्रोध की ऊर्जा को धर्म में रूपांतरित करने की प्रेरणा देती है। तो ऋषियों के क्रोध से क्या सीखें?
क्रोध का कारण सीख :
अधर्म या अनुशासनभंग धर्म की रक्षा हेतु क्रोध भी धर्म है
अहंकार या अभिमान अहंकार विनाश का मार्ग है
मन की चंचलता साधक के लिए भी आत्मनिरीक्षण ज़रूरी
ईश्वरीय परीक्षण क्रोध भी ज्ञान का साधन बन सकता है
बोधवाक्य :
“ऋषियों का क्रोध हमें दंड नहीं, दिशा देता है।”
“जब संत भी चेताते हैं, तो समझो, अंधकार गहराने लगा है।”
(मृदुला दूबे योग शिक्षक और आध्यात्म की जानकार हैं।)
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