Spirituality: ऋषि और दार्शनिक याज्ञवल्क्य किया था ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ का उद्घोष

याज्ञवल्क्य प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध ऋषि और दार्शनिक थे। वेदों और उपनिषदों के महान व्याख्याकार माने जाने वाले याज्ञवल्क्य का जीवन ज्ञान, वैराग्य और सत्य की खोज से प्रेरित था। उनकी शिक्षाएं और कथाएं न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन देती हैं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर
Written By : मृदुला दुबे | Updated on: November 28, 2024 12:11 am
1. गुरु वाद का प्रसंग: याज्ञवल्क्य के गुरु वैदिक ज्ञान के अद्वितीय विद्वान थे। एक बार गुरु ने उनसे पूछा कि वे अपने ज्ञान का उपयोग कैसे करेंगे ?
याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, “मैं इस ज्ञान का उपयोग केवल ब्रह्मज्ञान (परम सत्य) की प्राप्ति के लिए करूंगा।”
उनके इस उत्तर से उनकी वैराग्यपूर्ण दृष्टि और उच्च उद्देश्य का पता चलता है।
2. गुरु के साथ विवाद: एक प्रसंग के अनुसार, याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु से सीखा, लेकिन अपनी असाधारण विद्वत्ता के कारण गुरु से अधिक ज्ञान प्रदर्शित किया। इससे उनके गुरु अप्रसन्न हो गए और उन्हें शाप दिया। याज्ञवल्क्य ने विनम्रता और निष्ठा के साथ इस स्थिति का सामना किया और अपने ज्ञान को और अधिक गहराई से विकसित किया।
3. जनक के दरबार में ज्ञान-विमर्श: याज्ञवल्क्य राजा जनक (मिथिला के राजा) के प्रिय और सम्मानित विद्वान थे। राजा जनक के दरबार में एक विद्वत्सभा आयोजित हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि जो सबसे बड़ा ज्ञानी होगा, उसे महान सम्मान और पुरस्कार मिलेगा। याज्ञवल्क्य ने सभा में सब विद्वानों को तर्क और ज्ञान में पराजित किया। उनकी तार्किक क्षमता और आध्यात्मिक ज्ञान ने उन्हें सभा का विजेता बना दिया।
4. मैत्रेयी और कात्यायनी का प्रसंग : याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थीं।
1. कात्यायनी – एक साधारण गृहिणी, जो सांसारिक जीवन में रमी हुई थीं।
2. मैत्रेयी – ज्ञान की खोजी और आत्मज्ञान के प्रति समर्पित।
जब याज्ञवल्क्य ने वैराग्य लेने का निर्णय लिया, तो उन्होंने अपनी संपत्ति दोनों पत्नियों में बांटने का प्रस्ताव रखा।
मैत्रेयी ने उनसे पूछा, “क्या यह संपत्ति मुझे अमरत्व दिला सकती है?”
उन्होंने उत्तर दिया, “अमरत्व केवल आत्मज्ञान से प्राप्त होता है।”
मैत्रेयी ने सांसारिक संपत्ति त्यागकर आत्मज्ञान की ओर बढ़ने का निर्णय लिया।
उनका यह संवाद बृहदारण्यक उपनिषद में अमर है।
5. वैराग्य और ब्रह्मज्ञान: याज्ञवल्क्य ने अंततः सांसारिक जीवन त्याग दिया और संन्यास ग्रहण कर लिया। उनका ध्यान आत्मा और परमात्मा के एकत्व की गहरी समझ पर केंद्रित था। उन्होंने अपने जीवन को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति और अध्यात्मिक मार्गदर्शन में समर्पित किया।
6. “अहम् ब्रह्मास्मि” का उद्घोष: याज्ञवल्क्य ने वैदिक दर्शन में “अहम् ब्रह्मास्मि” का उद्घोष किया, जिसका अर्थ है: “मैं ब्रह्म (परम सत्य) हूं।”
यह विचार अद्वैत वेदांत का मुख्य आधार बना।
7. याज्ञवल्क्य का योगदान: उनका ज्ञान केवल वेदों तक सीमित नहीं था। उन्होंने धर्म, दर्शन और ध्यान के गहन विषयों पर प्रकाश डाला। उनकी शिक्षाएं अद्वैत वेदांत और भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के लिए अमूल्य हैं।
निष्कर्ष : याज्ञवल्क्य की कथा हमें न केवल आत्मा और ब्रह्म की समझ प्रदान करती है, बल्कि उनके जीवन की घटनाएं भी हमें प्रेरित करती हैं। वे ज्ञान, सत्य और वैराग्य का प्रतीक हैं। उनकी शिक्षाएं आज भी मानवता को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
(मृदुला दुबे योग शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु हैं.)

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