अध्यात्म : मूर्खता के लक्षणों को समझें, आत्मनिरीक्षण के लिए करें ये उपाय

मनुष्य के जीवन में बुद्धि और विवेक सबसे बड़ा वरदान हैं। परंतु जब यही बुद्धि अज्ञानता, अहंकार और अनुचित निर्णयों के नीचे दब जाती है, तब मूर्खता जन्म लेती है। मूर्खता केवल ज्ञान की कमी नहीं है, यह सोचने और समझने की शक्ति का अभाव भी है।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: April 15, 2025 6:12 pm

मूर्खता की परिभाषा:

मूर्ख वह नहीं जो जानता नहीं, बल्कि वह है जो जानकर भी गलत राह पर चलता है। मूर्खता में मनुष्य अपनी गलतियों को नहीं मानता और दूसरों की सलाह को तुच्छ समझता है। वह तर्क, विवेक और अनुभव की उपेक्षा करता है।

कबीरदास का दोहा:

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोई। जो दिल खोजा अपना, मुझसे बुरा न कोय।।

इस दोहे में कबीरदास जी ने बताया कि मूर्खता दूसरों में दोष खोजने से नहीं जाती, बल्कि आत्म-निरीक्षण से ही सही समझ आती है।

मूर्खता के लक्षण:

1. आत्म-महत्त्व की भावना – मूर्ख व्यक्ति स्वयं को सर्वज्ञ मानता है।

2. सुझावों की उपेक्षा – वह दूसरों की सलाह नहीं मानता।

3. अहंकार – अपनी मूर्खता को वह अपना गुण समझता है।

4. परिणामों की चिंता नहीं – बिना सोच-विचार के निर्णय लेना।

आइए अब अपने भीतर की मूर्खता को पहचानने और उसे रूपांतरित करने की प्रक्रिया शुरू करें — गहराई से, पर सहज रूप में।

यहाँ तीन भागों में बाँटा गया है:

भाग 1: आत्मनिरीक्षण के प्रश्न

(हर प्रश्न को शांति से पढ़िए, और उत्तर को मन में नहीं, हृदय में खोजिए।)

1. क्या मैं हमेशा अपनी बात मनवाने की कोशिश करता हूँ ?

2. जब कोई मेरी आलोचना करता है, तो क्या मैं शांत रहता हूँ या प्रतिक्रिया देता हूँ?

3. क्या मैं दूसरों को बदलना चाहता हूँ, पर खुद को नहीं ?

4. क्या मैं जानता हूँ कि मुझे क्या नहीं पता ?

5. क्या मैं वही गलतियाँ बार-बार करता हूँ, और फिर भी उन्हें सही मानता हूँ?

6. क्या मेरी बातें लोगों को जोड़ती हैं या तोड़ती हैं ?

7. क्या मैं अपने दुखों के लिए दूसरों को दोष देता हूँ ?

8. क्या मैं उस व्यक्ति को सुनता हूँ जिससे मैं सहमत नहीं हूँ ?

अगर इन प्रश्नों में से कई में “हाँ” है — तो यह कोई दोष नहीं, बल्कि चेतना का द्वार है।

 

भाग 2: ध्यान अभ्यास – “साक्षी बनो और किसी में भी दोष न देखो।

हर दिन केवल 10 मिनट यह अभ्यास करें:

1. शांत बैठिए। आँखें बंद करें।

2. अपना ध्यान श्वास पर लाइए। बस आते-जाते श्वास को देखिए।

3. अब अपनी सोच को देखिए —
कौन-सी बातें बार-बार चल रही हैं?
क्या मैं किसी पर क्रोधित हूँ?
क्या मैं खुद को बेहतर दिखाने की कोशिश कर रहा हूँ?
सब देखिए — बिना जजमेंट के।

आप देखेंगे कि मूर्खता एक परछाई की तरह से है जो सजगता आते ही चली जाती है।

हर सुबह स्वयं से एक व्रत लें:

“आज मैं अधिक सुनूँगा, कम बोलूँगा।
आज मैं अपने विचारों को सच नहीं मानूँगा, उन्हें देखूँगा।
आज मैं अपने भीतर के अंधकार को प्रेम से देखूँगा, और सीखने के लिए खुला रहूँगा।”

एक दोहा और:

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

 

कबीर का यह दोहा बताता है कि केवल पढ़ने से ज्ञान नहीं आता। जीवन की सच्ची समझ और विवेक ही वास्तविक बुद्धिमानी है। मूर्ख वह है, जो केवल शब्दों में उलझा रहता है।

मूर्खता के दुष्परिणाम:

मूर्खता के कारण व्यक्ति न केवल स्वयं का नुकसान करता है, बल्कि समाज और परिवार को भी कठिनाइयों में डाल देता है। शासन, शिक्षा, धर्म या किसी भी क्षेत्र में यदि मूर्ख व्यक्ति आ जाए, तो वहां विनाश निश्चित है।

उपसंहार :

मूर्खता कोई स्थायी स्थिति नहीं है। यदि व्यक्ति विनम्रता से सीखने को तैयार हो, तो वह मूर्ख से ज्ञानी बन सकता है। स्वयं की गलतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ना ही सच्ची बुद्धिमत्ता है।

एक अंतिम दोहा: मूरख संग न कीजिए, लोहा जल में डार।
सोय नहीं गलि पावई, चाहे जितना मार॥

अतः, हमें चाहिए कि हम मूर्खता से दूर रहें, और ऐसे व्यवहार और सोच को अपनाएं जो विवेकशीलता और सच्चे ज्ञान की ओर ले जाए।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकर हैं।)

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