बुद्ध की दृष्टि से मूर्खता: अज्ञान, अहंकार और आत्मप्रवंचना का जाल

“बुद्ध मूर्खता को केवल बुद्धि की कमी नहीं मानते थे, बल्कि अज्ञान (अविज्जा) और अहंकार के मेल से उत्पन्न एक मानसिक जड़ता के रूप में देखते थे।” बुद्ध ने कभी किसी को "मूर्ख" कहकर तिरस्कृत नहीं किया। उनके लिए मूर्खता एक आंतरिक अंधकार थी — ऐसा अंधकार जो अज्ञान की कोख से जन्म लेता है और भ्रम के दूध से पलता है।उन्होंने कहा, "यथार्थ को न देखने वाला ही मूर्ख है, चाहे वह कितना ही पढ़ा-लिखा क्यों न हो।"

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: May 20, 2025 7:17 pm

जीवन का सबसे बड़ा अंधकार तब होता है जब मन सत्य को देखने से इनकार कर देता है। जब अहंकार, लोभ और मोह की परतें आँखों पर छा जाती हैं, तब व्यक्ति देखने में समर्थ होते हुए भी अंधा बन जाता है। बुद्ध कहते हैं:
“मूर्ख वह नहीं जो नहीं जानता — मूर्ख वह है जो जानकर भी अनजाना बना रहता है।” आज हम बुद्ध की दृष्टि से उस “मूर्खता” को समझेंगे, जिसे उन्होंने “अविज्जा” (अज्ञान) कहा — और यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि यह अज्ञान कैसे दुःख, भ्रम और हिंसा का मूल बनता है। अंततः, हम जानेंगे कि बुद्ध ने इस जड़ता से मुक्ति का कौन-सा मार्ग सुझाया।

मूर्खता: एक मानसिक स्थिति

बुद्ध के अनुसार, मूर्खता एक ऐसी मानसिक दशा है जिसमें मन सत्य से मुँह मोड़कर भ्रम को पकड़ लेता है।
जिसने अनेक ग्रंथ कंठस्थ कर लिए हैं, वह ज्ञानी नहीं कहलाता यदि उसका जीवन विवेकशून्य है। वहीं, जिसने थोड़ी-सी बात सीखी है पर उसे ठीक से समझा और जिया है — वही सच्चा ज्ञानी है।

मूर्खता और अहंकार

बुद्ध ने मूर्खता का संबंध गहरे रूप से अहंकार से जोड़ा। मूर्ख व्यक्ति अपने विचारों को अंतिम सत्य मानता है, न वह सीखना चाहता है, न सुनना।

मूर्खता का पहला लक्षण है — कठोरता और आत्म-संतोष।

बुद्ध कहते हैं:
“मूर्ख अपने ही कर्मों से पीड़ित होता है। वह उस अमूल्य अवसर को खो देता है, जहाँ आत्मा रूपांतरण की ओर बढ़ सकती है।”

सच्चा ज्ञानी कौन?

बुद्ध की दृष्टि में सच्चा ज्ञानी वह है जो विनम्र होता है, शांत होता है, और सदा सीखने को तत्पर रहता है।

मूर्खता का सबसे बड़ा भेष होता है — दंभपूर्ण ज्ञान।

एक बार एक ब्राह्मण ने बुद्ध से पूछा:
“भगवन्, ज्ञान का लक्षण क्या है?”
बुद्ध मुस्कुराए और बोले:
“वह जो जानता है, वह मौन होता है। और जो नहीं जानता, वह बोलता रहता है।”

यहाँ बुद्ध ने स्पष्ट किया —
“ज्ञान मौन से आता है, और मूर्खता शोर से।”

अज्ञान से मुक्ति का मार्ग: अष्टांगिक पथ

बुद्ध ने कहा, मूर्खता से मुक्ति केवल ज्ञान नहीं, साक्षात्कार और सम्यक प्रयास से मिलती है। इसके लिए उन्होंने अष्टांगिक मार्ग बताया:

1. सम्यक दृष्टि (Right View)

2. सम्यक संकल्प (Right Intention)

3. सम्यक वाक् (Right Speech)

4. सम्यक कर्म (Right Action)

5. सम्यक आजीविका (Right Livelihood)

6. सम्यक प्रयास (Right Effort)

7. सम्यक स्मृति (Right Mindfulness)

8. सम्यक समाधि (Right Concentration)

इन आठ अंगों पर ध्यान देने से धीरे-धीरे अज्ञान का अंधकार छँटता है और अंतःकरण में प्रकाश उतरता है। मूर्खता, जो पहले निर्णयों को ढँक रही थी, अब पीछे हट जाती है।

एक बौद्ध कथा: देवदत्त की मूर्खता

बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त ने बुद्ध की लोकप्रियता से ईर्ष्यावश संघ का नेतृत्व करने की चेष्टा की। उसने बुद्ध को मारने के अनेक प्रयास किए, लेकिन हर बार असफल रहा। अंततः, उसे अपने ही कर्मों की आग में जलते हुए पश्चाताप के साथ मृत्यु को प्राप्त होना पड़ा।

बुद्ध ने कहा:
“देवदत्त को उसका अपना भ्रम और लोभ खा गया।”
यह कथा दर्शाती है कि ज्ञानी बनकर भी मूर्खता में डूबा जा सकता है, यदि मन निर्मल न हो।

मूर्खता को पहचानना ही पहला कदम

बुद्ध ने सिखाया —
“मूर्ख को मूर्ख कहना नहीं, उसकी मूर्खता को करुणा से देखना चाहिए।”

यदि व्यक्ति अपनी मूर्खता को स्वयं पहचान ले — तो वहीं से उसकी ज्ञान यात्रा आरंभ होती है।

“य: पण्डितं मन्यते मूढ एष — न स ज्ञानं, न स सम्मा पश्यति।”
(जो स्वयं को ज्ञानी मानता है पर जानता नहीं, वह वास्तव में मूर्ख है।)

जिसे अपने अज्ञान का आभास नहीं — वह अंधेरे में है।
लेकिन जो कहता है, “मैं नहीं जानता,” — वही जानने के सबसे निकट होता है।

बुद्ध की दृष्टि से, मूर्खता कोई स्थायी पहचान नहीं है — वह केवल एक आवरण है, जिसे साधना, ध्यान और जागरूकता के माध्यम से हटाया जा सकता है।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं। )

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