अंतरात्मा की ज्योति जलाने पर ही मिलेगा सच्चा सुख

कभी-कभी जीवन हमें ऐसे मोड़ पर ले आता है, जहाँ हमें एहसास होता है कि सच्चा सुख बाहर नहीं, बल्कि भीतर ही छुपा है। ऐसी ही एक कहानी थी बलराम की, जो अपने घमंड और संपत्ति के कारण अंधकार में जी रहे थे, लेकिन एक दिन उनकी आत्मा की ज्योति जाग उठी।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: March 26, 2025 8:49 am

बलराम गाँव के सबसे धनवान व्यक्ति थे। उनके पास बड़े-बड़े खेत, आलीशान हवेली और सैकड़ों नौकर थे। गाँव में उनका बहुत दबदबा था। लेकिन उनके हृदय में दया और करुणा का कोई स्थान नहीं था। वे हर किसी से कठोरता से बात करते, नौकरों को डाँटते और अपने धन के बल पर खुद को श्रेष्ठ मानते थे। गाँव में ही एक संत, महात्मा रामदास रहते थे।

रामदास साधारण वस्त्र पहनते, कुटिया में रहते और सभी को प्रेम, क्षमा और ध्यान का पाठ सिखाते। गाँव के लोग उनकी बहुत इज्जत करते थे, लेकिन बलराम को संतों की ये बातें व्यर्थ लगती थीं। वे सोचते, “जो खुद गरीब है, वह दूसरों को क्या सिखाएगा ?”

एक भूखे ब्राह्मण की परीक्षा:

एक दिन गाँव में एक निर्धन ब्राह्मण आया। वह कई दिनों से भूखा था और भोजन की तलाश में घूम रहा था। सबसे पहले वह संत रामदास की कुटिया पर पहुँचा। संत ने उसे स्नेह से बैठाया, भोजन कराया और कहा, “बेटा, जीवन में केवल धन ही नहीं, आत्मा की शुद्धता भी महत्वपूर्ण है। जिसने क्षमा करना, प्रेम देना और ध्यान करना सीख लिया, वही सच्चा धनी है।”

ब्राह्मण भोजन के बाद बलराम के घर पहुँचा। उसने द्वार पर जाकर हाथ जोड़कर कहा, “मालिक, मैं भूखा हूँ, क्या मुझे कुछ अन्न मिल सकता है?”

बलराम अपने नौकरों पर गुस्सा कर रहे थे। उन्होंने ब्राह्मण की ओर देखा और क्रोध में बोले, “मुफ्त में खाने के लिए आए हो? मेहनत करो, तभी पेट भरने का अधिकार है!” और यह कहकर उन्होंने ब्राह्मण को अपमानित कर भगा दिया।

रात्रि का रहस्यमयी स्वप्न:

उस रात बलराम ने एक विचित्र स्वप्न देखा। उन्होंने देखा कि वे मर गए हैं और यमराज के दरबार में खड़े हैं। वहाँ स्वर्ण सिंहासन पर यमराज विराजमान थे। उन्होंने कठोर स्वर में पूछा, “बलराम, तुमने अपने जीवन में क्या अर्जित किया?”

बलराम गर्व से बोले, “मैंने अपार धन-संपत्ति अर्जित की, ऊँचा सम्मान प्राप्त किया और मेरा नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हुआ।”

यमराज मुस्कुराए और बोले, “किन्तु क्या तुमने किसी भूखे को भोजन कराया? क्या तुमने किसी दुखी का दुःख बाँटा? क्या तुमने अपने भीतर का दीप जलाया?”बलराम स्तब्ध रह गए। तभी उन्होंने देखा कि संत रामदास के चारों ओर दिव्य प्रकाश फैला हुआ है, और वे शांत भाव से खड़े हैं। बलराम ने यमराज से पूछा, “यह प्रकाश कहाँ से आ रहा है?”

यमराज बोले, “यह उनकी आत्मा की शुद्धता का प्रकाश है। जिसने अपने मन को विकारों से मुक्त कर लिया, वही इस प्रकाश को प्राप्त कर सकता है।”
बलराम घबराकर बोले, “तो क्या मैं इस प्रकाश को प्राप्त नहीं कर सकता?”

यमराज बोले, “जब तक मन अहंकार, निंदा और क्रोध से भरा रहेगा, तब तक नहीं। लेकिन यदि तुम अपने हृदय को निर्मल बना लो, तो यह ज्योति तुम्हारे भीतर भी प्रकट हो सकती है।”

हृदय परिवर्तन:

अचानक बलराम की नींद खुल गई। वे पसीने से भीग चुके थे। पहली बार उन्होंने अपने भीतर झाँककर देखा। उन्हें एहसास हुआ कि उनका पूरा जीवन केवल बाहरी धन-संपत्ति अर्जित करने में बीता, लेकिन आंतरिक सुख उनसे कोसों दूर था।

अगली सुबह, वे सीधे संत रामदास की कुटिया पर पहुँचे। उन्होंने श्रद्धा से उनके चरणों में सिर झुका दिया और बोले, “गुरुदेव, मैं अंधकार में जी रहा था। मुझे क्षमा करें और मुझे सही मार्ग दिखाएँ।”

संत ने प्रेमपूर्वक कहा, “बेटा, जब तक मन में अज्ञान का पर्दा है, तब तक सच्ची शांति नहीं मिलेगी। क्षमा, प्रेम और ध्यान के माध्यम से तुम अपने भीतर का दीप जला सकते हो।”

उस दिन से बलराम का हृदय बदल गया। वे अब निर्धनों की सेवा करने लगे, निंदा और क्रोध छोड़ दिया और ध्यान का अभ्यास करने लगे। धीरे-धीरे उनके भीतर शांति आने लगी, और उनके चेहरे पर आत्मिक तेज झलकने लगा।

कहानी से शिक्षा:

मनुष्य के जीवन की सच्ची सफलता बाहरी उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता में है। जब हम क्षमा, प्रेम और ध्यान को अपनाते हैं, तब हमारी आत्मा का प्रकाश प्रकट होता है और हम वास्तविक शांति प्राप्त कर सकते हैं।

इसलिए, सच्चे सुख की तलाश बाहर नहीं, बल्कि अपने भीतर करनी चाहिए। जब हम भीतर का दीप जलाते हैं, तभी जीवन का वास्तविक आनंद प्राप्त होता है।

( मृदुला दुबे योग शिक्षक एवम् अध्यात्म की जानकर हैं। )

ये भी पढ़ें :-मोह : जानें इससे जुड़े आध्यात्मिक दृष्टिकोण को

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *