Untouchability : छुआछूत के 97 फीसदी मामले कोर्ट में लंबित, पढ़ें रिपोर्ट

हाल ही में मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट, 1955 (PCR Act) के अंतर्गत वर्ष 2022 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में देशभर में छुआछूत (Untouchability) से जुड़े मामलों की स्थिति से जुड़े चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जातियों और जनजातियों से जुड़े 97% से अधिक मामले अब तक अदालतों में लंबित हैं।

Written By : महिमा चौधरी | Updated on: July 16, 2025 10:56 pm

2022 में पूरे देश से केवल 13 नए मामले दर्ज हुए, जिनमें जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक से सबसे अधिक पांच-पांच छुआछूत (Untouchability) के मामले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र में दो और हिमाचल प्रदेश में एक मामला दर्ज किया गया, जबकि 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने कोई मामला रिपोर्ट नहीं किया। यह संख्या लगातार घट रही है। 2020 में 25 और 2021 में 24 मामले दर्ज हुए थे। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि अनुसूचित जातियों (Scheduled Caste) से जुड़े कुल 1186 मामलों में से सिर्फ 25 मामलों का निपटारा हो सका, वहीं अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) से जुड़े 87 मामलों में से केवल 6 मामलों का निष्पादन हुआ। SC मामलों में 97.8% और ST मामलों में 93.1%  मामले अदालतों में लंबित हैं।

पुलिस जांच के आंकड़े भी चिंताजनक हैं। अनुसूचित जातियों से जुड़े 49 मामलों में से केवल 12 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई, और 33 मामले वर्ष के अंत तक लंबित (pending) रहे। अनुसूचित जनजातियों से जुड़े दो मामलों में से किसी में भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कुल मिलाकर चार्जशीट दाखिल करने की दर सिर्फ 24.5% रही, और छुआछूत (Untouchability) के कई मामलों को सबूतों के अभाव में बंद कर दिया गया।

हालांकि, सरकार द्वारा कई सकारात्मक प्रयास भी किए गए। 23 राज्यों में पीड़ितों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराई गई। बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और केरल जैसे राज्यों में विशेष पुलिस थानों की स्थापना की गई। साथ ही 60,000 से अधिक पुलिस अधिकारियों को संवेदनशीलता प्रशिक्षण भी दिया गया। रिपोर्ट में अंतर्जातीय विवाह (inter caste marriage) को बढ़ावा देने वाली योजना का भी उल्लेख है, जिसके तहत पात्र जोड़ों को ₹2.5 लाख की राशि प्रोत्साहन के रूप में दी जाती है। वर्ष 2022 में महाराष्ट्र में 4100, कर्नाटक में 3519, हरियाणा में 1456 और केरल में 1587 जोड़ों ने इसका लाभ उठाया।

वित्तीय व्यय की बात करें तो वर्ष 2022-23 के लिए ₹600 करोड़ का अनुमानित बजट था, जिसे संशोधित कर ₹500 करोड़ किया गया। वास्तव में ₹392.70 करोड़ खर्च किए गए, जिनका उपयोग विशेष अदालतों, जागरूकता अभियान, पीड़ित सहायता और अंतर्जातीय विवाह योजनाओं में हुआ।

मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट (Ministry of Social Justice and Empowerment) की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि भले ही कानून और योजनाएं मौजूद हैं, लेकिन उनका प्रभाव ज़मीन पर कमजोर है। न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति, पुलिस की निष्क्रियता और कई राज्यों में रिपोर्टिंग की कमी, सामाजिक न्याय (social justice) के मार्ग में बड़ी बाधा बन रही हैं।

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