छठे नदी उत्सव का उद्घाटन
नदियां देश की जीवनरेखा और संस्कृति का आधार हैं, इस भाव को केन्द्र में रखते हुए आईजीएनसीए पिछले कई वर्षों से नदी उत्सव का आयोजन कर रहा है। इसके छठे संस्करण का उद्घाटन विद्वानों, कलाकारों, कार्यकर्ताओं और छात्रों की उत्साही जुटान के साथ हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल और अध्यक्षता की आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने। इस अवसर विशिष्ट अतिथि थे इस्कॉन के आध्यात्मिक नेता और गोवर्धन इकोविलेज के निदेशक गौरांग दास प्रभु और सामाजिक कार्यकर्ता साध्वी विशुद्धानंद उर्फ भारती दीदी।
इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने स्वागत भाषण दिया। वक्ताओं ने नदियों, आध्यात्मिकता और मानव सभ्यता के बीच स्थायी सम्बंधों पर अपने विचार साझा किए।
अपने उद्घाटन भाषण में, श्री सी.आर. पाटिल ने समुदायों को जीवित रखने और भारत के सांस्कृतिक चरित्र को आकार देने में नदियों के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने भावी पीढ़ियों के लिए नदियों के संरक्षण में सामूहिक ज़िम्मेदारी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, भारत नदियों का देश है। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ नदी गंगा भारत में ही बहती है। हमारा कर्तव्य है कि हम नदियों को गंदा न करें। उन्होंने कहा कि नदियों पर शॉर्ट टर्म, मिड टर्म और लॉन्ग टर्म योजनाओं के आधार पर तीन स्तरों पर कार्य हो रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘वॉटर विजन@2047’ के तहत इस दिशा में गंभीरता से काम हो रहा है।
रामबहादुर राय ने कहा कि नदियां केवल जलधारा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था और उत्तरदायित्व का प्रतीक हैं। उन्होंने स्मरण 1980 के दशक में अनुपम मिश्र जी के साथ दिल्ली में यमुना यात्रा का अनुभव बताते हुए कहा कि उस समय भी दिल्ली में यमुना में 26 नाले गिरते थे। यह नदियों के संकट की गंभीरता को दर्शाता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अब जिस प्रकार से काम हो रहा है, यमुना साफ-सुथरी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि आज जब यमुना की सफाई और तटबंध निर्माण की दिशा में ठोस कार्य हो रहे हैं, तो उसमें एक आशा दिखाई देती है।
गौरांग दास ने कहा कि नदियां केवल जलधारा नहीं, बल्कि शक्ति, ऊर्जा और जीवन की निरंतर प्रगति का प्रतीक हैं। गंगा की तरह, जो गंगोत्री से खाड़ी तक बाधाओं के बीच भी अपना मार्ग खोज लेती है, हमें भी जीवन की प्रतिकूलताओं में आशा और दिशा बनाए रखनी चाहिए।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि नदी संस्कृति को गहरे प्रभावित करती है। शहरी जीवनशैली ने नदी से हमारे जुड़ाव को दूर कर दिया। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे विकास की गति बढ़ी, जैसे-जैसे हम प्रकृति का दोहन करने लगे, प्रकृति से हमारा नाता टूट गया। प्रकृति से हमारा नाता उपभोक्ता का हो गया है। नदी उत्सव का उद्देश्य नदियों के प्रति भाव उत्पन्न करना, उत्साह उत्पन्न करना, श्रद्धा उत्पन्न करना और आस्था उत्पन्न करना है।
साध्वी विशुद्धानंद उर्फ भारती ठाकुर दीदी ने ईशान्य (उत्तर-पूर्व) भारत से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक की नदियों के साथ अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि लोगों को नदियों के साथ सार्थक संवाद स्थापित करना चाहिए और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली समृद्धि को पहचानना चाहिए।
तीन दिवसीय महोत्सव के पहले दिन ‘रिवरस्केप डायनेमिक्स, चेंजेंस एंड कंटिन्युटी’ (नदी परिदृश्य गतिशीलता: परिवर्तन और निरंतरता) विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिष्ठित विद्वानों और विशेषज्ञों ने नदियों के सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और कलात्मक आयामों पर अपने दृष्टिकोण साझा किए। सेमिनार के के लिए 300 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुए, जिनमें से 45 को विभिन्न सत्रों के दौरान प्रस्तुत किया जाएगा। इसे दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है।
सेमिनार के साथ-साथ, ‘माई रिवर स्टोरी’ डॉक्यूमेंट्री फिल्म फेस्टिवल का आयोजन हो रहा है, जिसमें ‘गोताखोर: डिसेपेयरिंग डाइविंग कम्यूनिटी’, ‘रिवर मैन ऑफ इंडिया’, ‘अर्थ गंगा’, ‘मोलाई – मैन बिहाइंड द फॉरेस्ट’, ‘कावेरी – रिवर ऑफ लाइफ’ और ‘लद्दाख- लाइफ अलॉन्ग द इंडस’ जैसी विचारोत्तेजक फिल्में प्रदर्शित की गईं। ये फिल्में पारिस्थितिक चिंताओं, पारम्परिक प्रथाओं और नदी प्रणालियों के साथ गहरे मानवीय सम्बंधों पर प्रकाश डालती हैं और इस ओर ध्यान आकर्षित करती हैं कि नदियां किस प्रकार जीवन और भू-दृश्य को आकार देती रहती हैं।
नदी उत्सव परम्परा और समकालीन प्रथाओं के बीच संवाद को गहराई से दिखाता है और यह सुनिश्चित करता है कि समुदाय अपनी नदी जड़ों से जुड़े रहें। उद्घाटन सत्र का समापन नदीप्रेमियों की ज़ोरदार भागीदारी और सार्थक विचार-विमर्श के साथ हुआ, जिसने अगले दो दिनों में होने वाले सत्रों, प्रदर्शनों और प्रदर्शनियों के लिए माहौल तैयार किया। सत्र के अंत में, जनपद सम्पदा प्रभाग के अध्यक्ष प्रो. के. अनिल कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उद्घाटन दिवस का समापन गुरु सुधा रघुरामन और उनकी टाम द्वारा नदियों पर शास्त्रीय गायन के साथ हुआ। सांस्कृतिक कार्यक्रम ने श्रोताओं का मन मोह लिया।
कार्यक्रम की एक विशेषता यह भी रही कि अतिथियों और कलाकारों को जो स्मृति चिह्न (मेमेंटो) दिए गए, वे मानव निर्मित न होकर, ड्रिफ्ट वुड हैं, यानी नदियों में बहने वाली वो लकड़ियां, जो पानी के प्रवाह से कट कर एक सुंदर आकार ग्रहण कर लेती हैं।
तीन दिनों का नदी महोत्सव 27 सितंबर 2025 तक जारी रहेगा, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां और चर्चाएं शामिल होंगी, जिनका उद्देश्य नदियों, पारिस्थितिकी और संस्कृति के बीच गहन सम्बंधों की पुष्टि करना है।
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