रम रहे हो सब में राम!
जगत में एक तेरा ही नाम
तुझे है बारं बार प्रणाम!
जगत में एक तेरा ही नाम
शील-क्षमा के उतुंग शिखर हो!
प्रेम का सागर वहां, जिधर हो!
तुम हो करुणा के धाम!
जगत में एक तेरा ही नाम।
सौम्य-शक्ति के मिलन बिन्दु ज्यों!
क्षितिज से जा मिल रहा सिन्धु हो!
नित गाता तुमको साम!
जगत में एक तेरा ही नाम।
पौरुष की परिभाषा तुम से!
सीता की अभिलाषा तुम से!
हर मन का तूही धाम!
जगत में एक तेरा ही नाम ।
तुझ से जो कोई नेह लगाता!
भव-सिन्धु से वह तर जाता!
तुम हो कृपा निधान!
जगत में एक तेरा ही नाम ।
– डा. अनिल सुलभ (अध्यक्ष, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन )