हास्य-व्यंग्य : झम्मन और सिरम्मन की राजनीतिक बकवास

झम्मन: बड़े उदास हो भाई ? सिरम्मन: मेरा दम घुट रहा है... झम्मन : खासे चंगे तो हो! सुबह- सुबह नौटंकी क्यों ? सिरम्मन: मैं बोल नहीं पा रहा हूं झम्मन: अजब झक्की हो..बोल तो रहे हो! टांय टांय.. सिरम्मन: तुम नहीं समझोगे। मैं वो नहीं बोल पा रहा जो बोलना चाहता हूं...

Written By : अजय शुक्ला | Updated on: November 5, 2024 11:42 am

हास्य-व्यंग्य

झम्मन: बोलो न क्या बोलना चाहते हो? आर्टिकल 19 तो तुम्हारे लिए ही रखा गया है संविधान में..

सिरम्मन: वो तुमने गाना सुना है…करूंगा मैं गंदी बात…गंदी गंदी गंदी बात

झम्मन: तो करो न!

सिरम्मन: करूं ? चलो, लेकिन मान लो मैं पूछूं कि तेरी ज़ात क्या है

झम्मन: तो मैं तेरी औकात बता दूंगा

सिरम्मन: और अगर मैं कहूं कि तेरे डीएनए में गड़बड़ है…

झम्मन: तो मैं हाथ में जूता निकाल लूंगा

सिरम्मन: और अगर यह कहूं कि झम्मन तेरा छद्म नाम है..असली नाम जुम्मन है। झम्मन नाम तो फर्जी है… लव जिहाद वाला, तो?

झम्मन: तो मैं तेरे सर पर जूता बजा दूंगा और पैरों पर हॉकी।

सिरम्मन: यही तो मैं नहीं चाहता।

झम्मन: तो क्या चाहते हो?

सिरम्मन: मैं गालियां देना चाहता हूं लेकिन यह भी चाहता हूं कि कोई मेरे हाथ पैर न तोड़े।

झम्मन: फिर तो एक ही रास्ता है…

सिरम्मन: क्या ?

झम्मन: तू नेता बन जा। चुनाव लड़। सदन में बैठ और फिर जीभर के बोल गंदी बात।

सिरम्मन: कितनी गंदी ?

झम्मन: जितनी चाहो। नेता के लिए कोई रोक नहीं है। गाली इज पॉवर। जीवन में ऊपर चढ़ने की सीढ़ी।

सिरम्मन: क्या गांधी जी भी गाली देते थे?

झम्मन: नहीं देते थे। तभी आज तक गाली खा रहा है बुड्ढा।

सिरम्मन: पंडित नेहरू तो देते होंगे ?

झम्मन: वो क्या देता! उसको जेल जाने और किताबें लिखने से फुरसत न थी। आज़ादी के बाद  वह देश का सत्यानाश (विकास) करने में लग गया। कहते तो यह भी हैं कि नए संसद भवन की छत पर नेहरू ने ही छेद किया है।

सिरम्मन: क्या मज़ाक करते हो? मुर्दा छेद कर सकता है?

झम्मन: आप हैं परले दरजे के मूर्ख। सूक्ष्म शरीर..आत्मा सब कुछ कर सकती है! इसीलिए न राम मरते हैं, न रावण। न गांधी नेहरू मरते हैं न गोडसे। समझे?

सिरम्मन: समझा। इसीलिए ये सब आज भी गाली खाते रहते हैं।

झम्मन: लेकिन साथ में यह भी समझ। गाली देने वाले से गाली खाने वाला बड़ा होता है।

सिरम्मन: ऐसा ?

झम्मन: बिलकुल। सतयुग में स्वामी ढपोरशंख नाम के एक संत हुए हैं। उनके रचित गप्पाष्टक में गाली महिमा का वर्णन किया गया है। संत जी को किलो किलो गाली रोज मिलती थी।

सिरम्मन: अब समझा। उस दिन सदन में गाली खाने वाला गुस्सा होने की बजाय खुश हो रहा था। कह रहा था…जितनी चाहो उतनी गाली दो…तुमको सॉरी बोलने की भी जरूरत नहीं।

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