Sarai ke Phool की चर्चा से पहले बताना चाहूंगा कि पिछले दस बीस सालों में और भी बहुत सारे नाम जुड़ गए हैं इस सूची में जिनमें पंकज मित्र का नाम प्रमुखता से लिया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त रतन, अनिता रश्मि, निर्मला पुतुल, सारिका भूषण, रीता गुप्ता , विनीता परमार, नीरज नीर, जेसिंता केरकेटा, वंदना टेटे जैसे लेखक- लेखिकाओं ने भी राष्ट्रीय फलक पर अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई है।
पिछले तीस सालों से लेखन के क्षेत्र में निरंतर क्रियाशील झारखंड की लेखिका का नाम है अनिता रश्मि। इनके आठ से अधिक संग्रह प्रकाशित हैं और कुछ रचनाएं साझा संकलन में भी शामिल हैं। इन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं। इनकी कहानियों का अनुवाद तेलुगु समेत कई भाषाओं में हो चुका है। आज चर्चा में पुस्तक है अनिता रश्मि की कहानियों का संग्रह “सरई के फूल”( Sarai ke Phool)। 222 पृष्ठ के इस संग्रह में बारह कहानियां हैं :
1.रघुआ टाना भगत
2.तिकिन उपाल का छैला
3.कहानी यहीं खत्म नहीं होती
4.एक और भीष्म प्रतिज्ञा
5.सरई के फूल
6. बिट्टो की बड़ी माँ
7.दो चुटकी निमक
8.डोमिसाइल
9.सुग्गा-सुग्गी का जोड़ा
10.सहिया नीलकंठ
11.घोड़वा नाच
12.धरती अबुआ बिरसा
इन कहानियों के शीर्षक से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अनिता की कहानियां झारखंड की मिट्टी, हवा, जंगल ,पहाड़,झरने, लोक आख्यानों और स्थानीय निवासियों की कहानियां हैं ।। ‘घोड़वा नाच” कहानी की इन पंक्तियों को देखिए “……..नजर-गुजर से बचाने के लिए सोनवा ने अपने इकलौते छउआ गनौरी के पैर, तलहथी, छाती ,माथे के बीचोंबीच काजल का टीका लगाया और सास से कह उठी-‘इके बेतराय लेउँ. ” सरल ,सहज भाषा में लिखी इस संग्रह के कहानियों के माध्यम से झारखंड में प्रयुक्त शब्दों, मुहावरों , रोजमर्रा के रीति रिवाजों, संस्कारों और आचार- विचार की भी बहुत सुंदर जानकारी प्राप्त होती है।
इन कहानियों को पढ़ते हुए कृष्णा सोबती और मेहरुन्निसा परवेज के कहानियों को याद किया जा सकता है। ये कहानियां इस क्षेत्र के जन जीवन, सभ्यता और लोगों के अंतर्वैयक्तिक संबंधों को समझने का एक दस्तावेज की तरह हैं। संग्रह किसी भी पुस्तक संग्रह की शोभा बढ़ाने योग्य है।
संग्रह–सरई के फूल, पृष्ठ-222, प्रकाशक:- हिन्द युग्म, (नोएडा) मूल्य-रु.150.
(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)
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