कोरोना काल को पूरी दुनिया के लेखकों, कवियों ने अपनी लेखनी में महत्वपूर्ण स्थान दिया. कई भारतीय भाषाओं में इस त्रासदी को लेकर उपन्यास लिखे गए. सैकड़ों कविताएं लिखी गईं. हिंदी में भी कई साझा संग्रह प्रकाशित हुए हैं.
हिंदी के प्रतिष्ठित कवि प्रेम रंजन अनिमेष के कविताओं का नवीनतम संग्रह “संक्रमण काल” हाल ही में प्रकाशित हुआ है. इसमें शामिल लगभग साढ़े पांच दर्जन कविताएं कोरोना काल की विभीषिका और उसके बाद की स्थिति पर ही केंद्रित हैं. भारत भूषण अग्रवाल सम्मान से सम्मानित कवि प्रेमरंजन अनिमेष बहुत समर्थ कथाकार भी है.
कवि अनिमेष ने इस संग्रह के समर्पण में लिखा है : ‘जाने-अनजाने उन सभी को जिन्हें जाना पड़ा इस संक्रमण काल में और उन्हें खोना पड़ा जिन्हें अपने अपनों को और हर एक के भीतर की जीवन संजीवनी के लिए .. ‘
रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से प्रकाशित एक सौ सन्तानवे पृष्ठ के इस संग्रह में कोरोना काल की जीवंत छवि भी है ,मनुष्य की भीतर की जिजीविषा भी है और इस संत्रास से बाहर निकल कर पुनर्जीवन की आशा भी !
इस संग्रह के बारे में हिंदी के यशस्वी कवि अरुण कमल जी कहते हैं कि ” पूरे संग्रह में कठिनतम परिस्थितियों के बीच दुर्धर्ष जीवन संघर्ष और आसन्न मृत्यु की परछाईं घूमती रहती है:
समय का दरिया
इस तरह बहा कि हर अगले घर में
कोई नहीं रहा(‘कहा अनकहा’).
या फिर : कोई एक जाता है
उसके साथ थोड़ा- थोड़ा
हर एक जाता है लेकिन समझ नहीं पाता है
वह जब शोक मनाता है तो अपना भी शोक मनाता है…(जाना अनजाना). यह कविता संग्रह कोरोना की त्रासदी पर केंद्रित किसी एक कवि का प्रायः पहला संग्रह है.
संग्रह की कुछ और महत्वपूर्ण कविताओं की ओर देखिये:
“हाथ धोना” :
‘ रह रह कर बार- बार
हाथ धो रहा आदमी
आगे से पीछे से
ऊपर नीचे से
दाहिना बाएं से बायां दायें से
फिर भी लगता
जैसे अभी ठीक से नहीं धुला …..’
कविताओं की भाषा सरल, बोधगम्य और सहज हैं पर मानवीय संवेदनाओं और भावनात्मक तरंगों से पूर्ण हैं. संग्रह पिछले दशक के कविता संग्रहों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है.

( पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)